मुद्रा व्यापार

प्रधान मंत्री मुद्रा योजना
बैंक ऑफ महाराष्ट्र कभी भी फोन कॉल/ई-मेल/एसएमएस के माध्यम से किसी भी उद्देश्य हेतु बैंक खाते के ब्यौरे नहीं मांगता।
बैंक सभी ग्राहकों से अपील करता है कि ऐसे किसी भी फोन कॉल/ई-मेल/एसएमएस का उत्तर न मुद्रा व्यापार दें, और किसी से भी, किसी भी उद्देश्य हेतु अपने बैंक खाते के ब्यौरे साझा न करें। किसी से भी अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड का सीवीवी/पिन साझा न करें।
श्रीलंका से स्थानीय मुद्रा व्यापार का विकल्प नहीं
भारत मौजूदा परिस्थितियों में श्रीलंका के साथ स्थानीय मुद्रा व्यापार को व्यावहारिक मान कर नहीं चल रहा है। इसकी वजह यह है कि भारत मानवीय आधार पर श्रीलंका को जिन आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति कर रहा है उनको छोड़कर फिलहाल वहां भारतीय सामानों की कोई मांग नहीं है।
इस चर्चा से अवगत एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'फिलहाल यह व्यावहारिक नहीं है। श्रीलंका के पास भारत को निर्यात करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। हम श्रीलंका को मदद करने पर ध्यान देना जारी रखेंगे।'
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गनाइजेशंस (फियो) के अध्यक्ष अजय सहाय ने कहा कि स्थानीय मुद्रा व्यापार के लिए एक प्रस्ताव पर सरकार की तरफ से चर्चा की गई थी।
उन्होंने कहा, 'हमने स्थानीय मुद्रा में व्यापार का प्रस्ताव दिया था। हमने कहा कि चूंकि व्यापार का संतुलन भारत के पक्ष में है लिहाजा हमारे पास ऐसी स्थिति होगी जिसमें पैसा हमारे खाते में होगा। चूंकि काफी कंपनियां भी श्रीलंका में मौजूद निवेश के अवसर पर विचार कर रहीं हैं ऐसे में उस पैसे का इस्तेमाल उनकी ओर से वहां पर निवेश के लिए किया जा सकता है। हालांकि, हम समझते हैं कि यह संकट की स्थिति जिसका हम सामना कर रहे हैं और हमारा ध्यान मानवीय मुद्दों पर होना चाहिए। कारोबार बाद में मुद्रा व्यापार भी हो सकता है।'
श्रीलंका 1948 में आजाद होने के बाद अब तक के अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। श्रीलंका को सबसे अधिक विदेशी मुद्रा की आमदनी विदेश से भेजे जाने वाले पैसे और वस्त्र निर्यात के बाद पर्यटन से होती है। कोविड की वजह से पर्यटन को बुरी तरह से धक्का लगा है।
मुद्रा व्यापार
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रुपये की गिरती कीमत और आरबीआई की भूमिका
हाल ही में रुपये की कीमत, डॉलर के मुकाबले और अधिक गिर गई है। इसका कारण है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अल्ट्रा-हॉकिश रेट में बढ़ोत्तरी जारी रखी है, जिससे डॉलर दो दशकों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।
भारतीय मुद्रा की यह गिरावट इस कारण भी है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा बाजार में एक प्रकार से हस्तक्षेप रखा है। इसने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में पिछले वर्ष के मुकाबले 14% की कमी की है। हालांकि, भारत बढ़ी हुई ऊर्जा-कीमतों के साथ भी नौ महीने के आयात को एक विदेशी मुद्रा कवर के साथ रखने की नियत रखता है, फिर भी बाजार अपने रिजर्व की गिरावट पर नजर रखेंगे, क्योंकि 2022-23 में चालू खाता घाटा, पिछले वर्ष के 4% की तुलना में लगभग तिगुना है।
विनिमय दर प्रबंधन के व्यापार लाभ मिश्रित हैं। डॉलर के मुकाबले रुपया गिरने के बावजूद निर्यात में तेजी नहीं आ रही है, क्योंकि व्यापारजनित विनिमय दर सपाट बनी हुई है। मांग की कमी के दौर में फ्लोटिंग रुपये के साथ निर्यात प्रतिस्पर्धा को बनाए नहीं रखा जा सकता है। साथ ही, व्यापार विखंडन और आपूर्ति की बाधा भी है।
एक डॉलर को खूंटी मानकर पकड़े रहने से आयातित मुद्रास्फीति सीमित हो सकती है, क्योंकि दुनिया का अधिकांश ऊर्जा व्यापार उस मुद्रा के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है। भारत अपने ऊर्जा आयात के लिए स्थानीय मुद्रा व्यापार विकसित करने की भी कोशिश कर रहा है।
भारत उन देशों की बढ़ती सूची में से एक है, जो निरंतर डॉलर की मजबूती का मुकाबला करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहे हैं। गिरती हुई मुद्रा से बढ़ी मुद्रास्फीति को ब्याज दरों के एडजस्टमेन्ट से भी ठीक किया जा सकता है। ऐसा कहा जा रहा है कि रुपये की कीमत को एक सुरक्षित स्तर तक रखने के लिए आरबीआई को अधिक आक्रामक मौद्रिक नीति की आवश्यकता होगी। आरबीआई के रुख को देखते हुए ऐसा लगता है कि फिलहाल रुपये का गिरना जारी रहेगा।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 24 सितम्बर, 2022
किन देशों में भारतीय करेंसी मान्य है और क्यों?
क्या आप जानते हैं कि दुनिया का लगभग 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है? दुनिया भर के लगभग 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमेरिका के बाहर होता है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है. यही कारण है कि डॉलर को 'अंतरराष्ट्रीय व्यापार करेंसी' भी कहा जाता है.
डॉलर को पूरी दुनिया में इंटरनेशनल करेंसी कहा जाता है. कोई भी देश डॉलर में भुगतान लेने को तैयार हो जाता है. लेकिन क्या इस तरह का सम्मान भारत की मुद्रा रुपया को मिलता है. जी हाँ, भले ही ‘रुपये’ मुद्रा व्यापार को डॉलर जितनी आसानी से इंटरनेशनल ट्रेड में स्वीकार ना किया जाता हो लेकिन फिर भी कुछ ऐसे देश हैं जो कि भारत की करेंसी में आसानी से पेमेंट स्वीकार करते हैं. आइये इस लेख में इन सभी देशों के नाम जानते हैं.
भारतीय रुपया नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और मालदीव के कुछ हिस्सों में अनौपचारिक रूप से स्वीकार किया जाता है. हालाँकि भारतीय रुपये को लीगल करेंसी के रूप में जिम्बाब्वे में स्वीकार किया जाता है.
भारत की करेंसी को इन देशों में करेंसी के रूप में इसलिए स्वीकार किया जाता है क्योंकि भारत इन देशों को बड़ी मात्रा में वस्तुएं निर्यात करता है. यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि जब कोई करेंसी "अंतरराष्ट्रीय व्यापार करेंसी" बनती है तो उसके पीछे सबसे बड़ा मूल कारण उस देश का 'निर्यात' होता है 'आयात' नहीं.
इस लेख में यह बताना जरूरी है कि नीचे दिए गए देशों में जिम्बाब्वे को छोड़कर किसी अन्य देश ने भारत की मुद्रा को ‘लीगल टेंडर’ अर्थात वैधानिक मुद्रा का दर्जा नहीं दिया है लेकिन भारत के पड़ोसी देश केवल आपसी समझ (mutual understanding) के कारण एक दूसरे की मुद्रा को स्वीकार करते हैं. इन देशों में मुद्रा का लेन देन मुख्यतः इन देशों की सीमाओं से लगने वाले प्रदेशों और उनके जिलों में ही होता है.
आइये अब विस्तार से जानते हैं कि किन-किन देशों में भारतीय रुपया मान्य/स्वीकार किया जाता है और क्यों?
1. जिम्बाब्वे: वर्तमान में जिम्बाब्वे की अब अपनी मुद्रा नहीं है. वर्ष 2009 में दक्षिणी अफ्रीकी देश ने अपनी स्थानीय मुद्रा, जिम्बाब्वे डॉलर को त्याग दिया था क्योंकि इस देश में हाइपर-इन्फ्लेशन के कारण देश की मुद्रा के मूल्य में बहुत कमी आ गयी थी. इसके बाद इसने अन्य देशों की मुद्राओं को अपने देश की करेंसी के रूप में स्वीकार किया है. वर्तमान में इस देश में अमेरिकी डॉलर, ऑस्ट्रेलियाई डॉलर, चीनी युआन, भारतीय रुपया, जापानी येन, दक्षिण अफ़्रीकी रैंड और ब्रिटिश पाउंड का इस्तेमाल किया जाता है. इस देश में भारत की मुद्रा रुपया को लीगल करेंसी के रूप में वर्ष 2014 से इस्तेमाल किया जा रहा है.
2. नेपाल: भारत के एक रुपये की मदद से नेपाल के 1.60 रुपये खरीदे जा सकते है. भारत के नोट नेपाल में कितनी बड़ी मात्रा में इस्तेमाल किये जाते हैं इसका अंदाजा सिर्फ इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जब 2016 में भारत ने नोट्बंदी की थी तब वहां पर लगभग 9.48 अरब रुपये मूल्य के भारतीय नोट चलन में थे. भारत के व्यापारी को एक भारतीय रुपये के बदले ज्यादा नेपाली मुद्रा मिलती है इसलिए भारत के व्यापारी नेपाल से व्यापार करने को उत्सुक रहते हैं.
यदि दोनों देशों के बीच व्यापार की बात करें तो वित्त वर्ष 2017-18 के पहले 11 महीनों के दौरान नेपाल से भारत में भेजा गया कुल निर्यात लगभग 42.34 अरब रुपये का था जबकि भारत द्वारा नेपाल को इसी अवधि में लगभग 731 अरब रुपये का निर्यात भेजा गया था.
नेपाल ने दिसम्बर 2018 से 100 रुपये से बड़े मूल्य के भारतीय नोटों को बंद कर दिया है लेकिन 200 रुपये से कम के नोट बेधड़क स्वीकार किये जा रहे हैं.
3. भूटान: इस देश की मुद्रा का नाम ‘नोंग्त्रुम’ (Ngultrum ) है. यहाँ पर भारत की मुद्रा को भी लेन-देन के लिए स्वीकार किया जाता है. भूटान के कुल निर्यात का लगभग 78% भारत को निर्यात किया जाता है. सितम्बर 2018 तक भूटान की ओर से भारत को तकरीबन 14,917 मिलियन नोंग्त्रुम का आयात भेजा गया था जबकि इस देश द्वारा भारत से लिया गया निर्यात लगभग 12,489 मिलियन नोंग्त्रुम था. भारत का पड़ोसी देश होने के कारण इस देश के निवासी भारत की मुद्रा में जमकर खरीदारी करते हैं क्योंकि इन दोनों देशों की मुद्राओं की वैल्यू लगभग बराबर है और इसी कारण दोनों मुद्राओं के बीच विनिमय दर में उतार चढ़ाव से होने वाली हानि का कोई डर नहीं होता है.
4. बांग्लादेश: इस देश की मुद्रा का नाम टका है. वर्तमान में भारत के एक रुपये के बदले बांग्लादेश के 1.14 टका खरीदे जा सकते हैं. वित्तीय वर्ष 2017-18 (जुलाई-जून) में भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय व्यापार तकरीबन 9 अरब डॉलर के पार चला गया था. बांग्लादेश के द्वारा भारत को किया जाने वाला व्यापार भी लगभग 900 मिलियन डॉलर के करीब पहुँच गया था. इस प्रकार स्पष्ट है कि बांग्लादेश में भारत का रुपया बहुत बड़ी मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है.
5. मालदीव: ज्ञातव्य है कि 1 भारतीय रुपया 0.21 मालदीवियन रूफिया के बराबर है. मालदीव के कुछ हिस्सों में भारत की करेंसी रुपया को आसानी स्वीकार किया जाता है. भारत ने 1981 में मालदीव के साथ सबसे पहली व्यापार संधि पर हस्ताक्षर किए थे. विदेश व्यापार निदेशालय (डीजीएफटी) की हालिया अधिसूचना के अनुसार, मालदीव को भारत का 2017-18 में कुल निर्यात लगभग 217 मिलियन डॉलर था, जो पिछले वर्ष में लगभग $197 मिलियन था.
इस प्रकार ऊपर लिखे गए लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत की मुद्रा को उसके पडोसी देशों में आसानी से स्वीकार किया जाता है. इसके पीछे मुख्य कारण इन देशों की एक दूसरे पर व्यापार निर्भरता है. हालाँकि रुपये को लीगल टेंडर का दर्जा सिर्फ जिम्बाब्वे ने दिया है.
रुपये में विदेशी व्यापार की मंजूरी से मुद्रा पर दबाव घटेगाः विशेषज्ञ
मुंबई, 12 जुलाई (भाषा) रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार लेनदेन की अनुमति देने से व्यापार सौदों के निपटान के लिए विदेशी मुद्रा की मांग घटने के साथ घरेलू मुद्रा की गिरावट रोकने में भी मदद मिलेगी। विशेषज्ञों ने यह बात कही।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गत सोमवार को बैंकों से कहा कि भारतीय रुपये में बिल बनाने, भुगतान और आयात-निर्यात सौदों को संपन्न करने के अतिरिक्त इंतजाम रखें। भारत से निर्यात बढ़ाने और रुपये में वैश्विक कारोबारी समुदाय की बढ़ती रुचि को देखते हुए यह कदम उठाया गया है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, "इस व्यवस्था से रुपये पर दबाव कम होगा क्योंकि आयात के लिए डॉलर की मांग नहीं रह जाएगी।"
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने एक रिपोर्ट में कहा कि इस कदम से डॉलर की मांग पर दबाव तात्कालिक रूप से कम हो जाना चाहिए।
बार्कलेज के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) राहुल बजोरिया ने कहा कि रुपये की मौजूदा कमजोरी के बीच यह कदम संभवतः व्यापार सौदों के रुपये में निपटान को बढ़ावा देकर विदेशी मुद्रा की मांग घटाने के लिए उठाया गया है।
आरबीआई ने कहा है कि व्यापार सौदों के निपटान के लिए संबंधित बैंकों को साझेदार देश के एजेंट बैंक का विशेष रुपया वोस्ट्रो खातों की जरूरत होगी।
सीआर फॉरेक्स एडवाइजर्स के प्रबंध निदेशक अमित पबरी ने कहा कि वोस्ट्रो खातों के जरिये रुपये में विदेशी सौदों के भुगतान की मंजूरी देना खास तौर पर रूस के साथ व्यापार को फायदा पहुंचाने के लिए उठाया गया कदम है।
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के सौम्यजीत नियोगी के मुताबिक, आरबीआई की यह घोषणा पूंजी खाते की परिवर्तनीयता के उदारीकरण की राह प्रशस्त करती है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
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