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आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है

आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है

जानिए क्यों है रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की आवश्यकता..

वैश्विक मुद्रा बाजार के कारोबार में डालर की हिस्सेदारी 88.3 प्रतिशत है। इसके बाद यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग का स्थान आता है। वहीं रुपये की हिस्सेदारी मात्र 1.7 प्रतिशत है। दुनियाभर का 40 प्रतिशत ऋण डालर में जारी किया जाता है। डालर का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका के बाहर मौजूद है। डालर पर अत्यधिक निर्भरता के कारण वर्ष 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट भी दुनिया के समक्ष है। ऐसे में रुपये की वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी में वृद्धि के लिए भारतीय मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण आवश्यक है।

हाल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भारतीय मुद्रा यानी रुपये में करने के लिए सरकार ने विदेश व्यापार नीति में बदलाव किया है। अब सभी तरह के पेमेंट बिलिंग और आयात-निर्यात में लेन-देन का निपटारा रुपये में हो सकता है। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण से देश को चौतरफा लाभ होंगे

रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का महत्व

सीमापार लेन-देन में रुपये का उपयोग भारतीय व्यापार के लिए जोखिम को आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है कम करेगा। मुद्रा की अस्थिरता से सुरक्षा न केवल व्यवसाय करने की लागत को कम करती है, बल्कि यह व्यवसाय के बेहतर विकास को भी सक्षम बनाती है, जिससे भारतीय व्यापार के विश्व स्तर पर बढ़ने की संभावना में सुधार होता है। यह विदेशी मुद्रा भंडार रखने की आवश्यकता को भी कम करता है। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार विनिमय दर की अस्थिरता को प्रबंधित करने में मदद करता है, लेकिन वह अर्थव्यवस्था पर एक लागत लगाता है। विदेशी मुद्रा पर निर्भरता कम करने से भारत बाहरी झटकों के प्रति कम संवेदनशील हो जाएगा।

व्यापार की अत्यधिक देनदारियों के बावजूद अंततः भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ ही होगा। भारत का अपनी मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय उधार लेने में सक्षम होना भी इसके विशिष्ट लाभ में सम्मिलित है। भारत के दीर्घकालिक विकास के लिए इसके फर्मों को विदेशियों से स्वतंत्र उधार लेने में सक्षम होना जरूरी है, ताकि वे अपने व्यवसाय को वित्तपोषित कर सकें। फर्मों द्वारा रुपये में अंतरराष्ट्रीय उधार लेना विदेशी मुद्रा की तुलना में अधिक सुरक्षित होगा। यह राजस्व स्रोत (जो रुपया है) के मुद्रा मूल्यवर्ग और कंपनियों के ऋण (जो विदेशी मुद्रा है) के मुद्रा मूल्यवर्ग के बीच एक बेमेल के जोखिम को कम करेगा।

ऐसे बेमेल जोखिम से अंततः फर्म दिवालियापन तक पहुंच सकते हैं। मुद्रा संकट की यह स्थिति थाइलैंड और इंडोनेशिया जैसी अर्थव्यवस्था में देखी भी गई है। जब कोई मुद्रा पर्याप्त रूप से अंतरराष्ट्रीय हो जाती है तो उस देश के नागरिक और सरकार अपनी मुद्रा में कम ब्याज दरों पर विदेश में बड़ी मात्रा में उधार लेने में सक्षम हो जाते हैं। रुपये का व्यापक अंतरराष्ट्रीय उपयोग भारत के बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्रों को भी अधिक व्यवसाय प्रदान करेगा। रुपये में परिसंपत्तियों की अंतरराष्ट्रीय मांग घरेलू वित्तीय संस्थानों में व्यापार लाएगी, क्योंकि रुपये में भुगतान को अंततः भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा ही नियंत्रित किया जाएगा। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण से देश की विशिष्ट आर्थिक प्रभाव में अभूतपूर्व वृद्धि हो जाएगी।

जब विदेशी रुपये पर भरोसा करेंगे तो वे मुद्रा विनिमय के माध्यम और विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में इसे रखने के लिए तैयार होंगे। जब कोई मुद्रा किसी अन्य देश के लिए आरक्षित मुद्रा बन जाती है तो मुद्रा जारी करने वाला देश इसे उसके पक्ष में विनिमय के लिए लीवरेज के रूप में उपयोग कर सकता है। रुपये के अंतराष्ट्रीयकरण के प्रयास इस समय क्यों : भारत में रुपये के अंतराष्ट्रीयकरण के प्रयास तब हो रहे हैं, जब डालर की तुलना में रुपया कमजोर हो रहा है। और रुपया को मजबूत करने के लिए आरबीआइ को भारी मात्रा में डालर की बिकवाली करनी पड़ रही है। ऐसे में आरबीआइ प्रयास कर रहा है कि जहां तक संभव हो अन्य वैसे देश जो इस समय विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में दबाव का सामना कर रहे हैं, उनसे निर्यात सेटलमेंट रुपये में हो। इस तरह के सुझाव एसबीआइ के रिसर्च में भी दी गई थी।

एसबीआइ के इन सुझावों को आरबीआइ और केंद्रीय वित्त मंत्रालय क्रियान्वित करते हुए नजर आ रहे हैं। इससे पहले पिछली सदी के सातवें दशक में कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान जैसे खाड़ी देशों में रुपया स्वीकार किया गया था। तब भारत के पूर्वी यूरोप के साथ भी भुगतान समझौते थे। हालांकि 1965 के आपपास इन व्यवस्थाओं को समाप्त कर दिया गया था। इससे स्पष्ट है कि आरबीआइ के ये प्रयास सफल हो सकते हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों के पूर्व 2019 तक भारत ईरान से रुपये में या अनाज तथा दवाओं जैसे महत्वपूर्ण उत्पादों के बदले तेल खरीदता रहा है।

यूक्रेन संकट के दौरान खुद रूस ने ही भारत को स्थानीय करेंसी में व्यापार करने का आफर दिया था और भारत और रूस के बीच अभी जो पेट्रोलियम का व्यापार हो रहा है, वह चीन की करेंसी युआन के जरिये हो रहा है। लेकिन अब भारत खुद अपनी करेंसी में व्यापार कर सकता है। इस वित्त वर्ष 2022-23 में भारत द्वारा रूस से लगभग 36 अरब डालर का तेल खरीदे जाने की संभावना है। इससे स्पष्ट है कि भारत रूस को जो 36 अरब डालर देने वाला था, वह अब नहीं देना होगा। इसकी जगह भारत रूस को अपनी मुद्रा यानी रुपया में भुगतान करेगा। वहीं रूस को भारत में व्यापार के लिए भारतीय मुद्रा भंडार मिलेगा, जो अंततः भारतीय बांड के लिए स्वागतयोग्य मांग प्रदान करेगा।

किन देशों के साथ खुल सकते हैं दरवाजे

रूस के अलावा ईरान, अरब देश और यहां तक कि श्रीलंका जैसे देशों के लिए भी भारत के दरवाजे खुल सकते हैं। ईरान और रूस के खिलाफ व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हैं। लिहाजा अब वे दोनों आसानी से बिना प्रतिबंधों का उल्लंघन किए भारत के साथ तीव्र व्यापार रुपये में कर सकते हैं। वहीं श्रीलंका जैसे देश, जिनका डालर खत्म हो चुका है, उनके लिए भारत से रुपये में सामान खरीदना एक वरदान जैसा होगा। कुल मिलाकर भारत का उद्देश्य है कि 2047 तक रुपये को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के रूप में स्थापित करना। सरकार चाहती है कि जब देश आजादी की 100वीं वर्षगांठ मनाए तब भारतीय करेंसी बुलंदियों पर हो।

केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने हाल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भारतीय मुद्रा यानी रुपये में करने के लिए विदेश व्यापार नीति में बदलाव किया है। इससे सभी तरह के पेमेंट, बिलिंग और आयात-निर्यात में लेन-देन का निपटारा रुपये में हो सकता है। इस बारे में विदेश व्यापार महानिदेशलय (डीजीएफटी) ने भी एक नोटिफिकेशन जारी किया है। सरल भाषा में कहें तो यह रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया की तरफ भारत सरकार का पहला कदम है।अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि के बाद लगातार कमजोर आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है हो रहे रुपये और घटते विदेशी मुद्रा भंडार के बीच आरबीआइ ने इस ओर कदम बढ़ाएं हैं। अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपया अक्टूबर में 1.8 प्रतिशत फिसला है, जबकि 2022 में अब तक रुपया 11 प्रतिशत कमजोर हुआ है। क्या है रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण: रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सीमा पार लेन-देन में स्थानीय मुद्रा का उपयोग किया जाता है। इसमें आयात-निर्यात के लिए रुपये को प्रोत्साहन देने के अतिरिक्त अन्य चालू खाता एवं पूंजी खाता लेन-देन में भी इसका उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।जहां तक रुपये का संबंध है तो यह चालू खाते में पूरी तरह परिवर्तनीय है, लेकिन पूंजी खाते में आंशिक रूप से। चालू और पूंजी खाता भुगतान संतुलन के दो घटक हैं। चालू खाते के घटकों में वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात और आयात तथा विदेश में निवेश से आय शामिल हैं। वहीं पूंजी खाते के घटकों में सभी तरह के विदेशी निवेश और एक देश की सरकार द्वारा दूसरे देश को ऋण देना शामिल हैं। इस तरह तकनीकी तौर पर रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का अर्थ है “पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता को अपनाना”। पूरी तरह से परिवर्तनीय पूंजी खाते का मतलब है कि विदेश में किसी भी संपत्ति को खरीदने के लिए आप कितने रुपये को विदेशी मुद्रा में परिवर्तित कर सकते हैं, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं हो।

अमेरिकी डॉलर को रौंद रही रूस-चीन की स्ट्रैटजी: पुतिन ने सस्ता तेल बेचा, जिनपिंग ने सस्ता कर्ज बांटा; भारत भी अहम किरदार

24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला करते ही रूस पर प्रतिबंधों की बाढ़ आ गई। अमेरिकी डॉलर में कारोबार न कर पाने का संकट खड़ा हो गया। रूसी करेंसी रूबल की वैल्यू धड़ाम हो गई। रूस की इकोनॉमी तबाह होने की भविष्यवाणियां होने लगीं, लेकिन पुतिन तो जैसे इसी मौके के इंतजार में थे। उन्होंने जिनपिंग के साथ एक ऐसी स्ट्रैटजी को एक्टिवेट कर दिया, जिसकी तैयारी दोनों पिछले कई सालों से कर रहे थे। ये स्ट्रैटजी दुनिया से अमेरिका डॉलर के दबदबे को खत्म कर सकती है।

भास्कर एक्सप्लेनर में हम रूस-चीन की उसी स्ट्रैटजी को आसान भाषा में जानेंगे, लेकिन उससे पहले 2 सवालों के जवाब जान लेना जरूरी है.

सवाल- 1: अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी कैसे बन गई?

जवाबः 1944 से पहले तक ज्यादातर देश अपनी मुद्रा को सोने के मूल्य के आधार पर तय करते थे। यानी उस देश की सरकार के पास सोने का जितना भंडार है, बस उतनी ही मूल्य की करेंसी जारी करते थे।

1944 में न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर यानी करेंसी एक्सचेंज रेट को तय किया, क्योंकि उस वक्त अमेरिका के पास सबसे ज्यादा सोने का भंडार था।

1944 से ही अमेरिकी डॉलर दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडार पर राज कर रहा है। (फाइल फोटो)

इसका असर एक छोटे से उदाहरण से समझिए। मान लीजिए भारत को पाकिस्तान की करेंसी पर भरोसा नहीं है। वो उससे डॉलर में कारोबार कर सकता था, क्योंकि उसे पता था कि अमेरिकी डॉलर डूबेगा नहीं और जरूरत पड़ने पर अमेरिका डॉलर के बदले सोना दे देगा।

ये व्यवस्था करीब 3 दशक चली। 1970 की शुरुआत में कई देशों ने डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी। ये देश अमेरिका को डॉलर देते और उसके बदले में सोना लेते थे। इससे अमेरिका का स्वर्ण भंडार खत्म होने लगा।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

डॉलर की मजबूती की आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है एक बड़ी वजह थी। दरअसल 1945 में अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने सऊदी के साथ एक करार किया। करार की शर्त ये थी कि उसकी सुरक्षा अमेरिका करेगा और बदले में सऊदी सिर्फ डॉलर में तेल बेचेगा। यानी अगर देशों को तेल खरीदना है, तो उनके पास डॉलर होना जरूरी है।

फिलहाल दुनिया का 80% व्यापार डॉलर में होता है और दुनिया का करीब 60% विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में है।

सवाल- 2: डॉलर की पावर के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए कैसे अरबों कमाता है?

जवाबः SWIFT नेटवर्क के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए अरबों कमाता है। मान लीजिए अडाणी ग्रुप को पाकिस्तान के किसी कारोबारी से 10 हजार डॉलर की सूरजमुखी खरीदना है। SWIFT नेटवर्क के जरिए ये ट्रांजैक्शन 5 स्टेप में होगा…

स्टेप-1:आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है सबसे पहले अडाणी ग्रुप अपने भारतीय बैंक को 10 हजार डॉलर के बराबर भारतीय रुपए भेजेगा।

स्टेप-2: भारतीय बैंकों का अमेरिकी बैंक में खाता होता है। वहां से वो डॉलर में एक्सचेंज करके पेमेंट करने को कहेंगे।

स्टेप-3: भारतीय खाते वाला अमेरिकी बैंक दूसरे पाकिस्तानी खाते वाले अमेरिकी बैंक में पैसा ट्रांसफर करेगा।

स्टेप-4: दूसरा अमेरिकी बैंक पाकिस्तानी बैंक में पैसे ट्रांसफर कर देगा।

स्टेप-5: पाकिस्तानी बैंक से कारोबारी 10 हजार डॉलर के बराबर पाकिस्तानी रुपए निकाल सकता है।

SWIFT नेटवर्क आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है में फिलहाल 200 से ज्यादा देशों के 11,000 बैंक शामिल हैं। जो अमेरिकी बैंकों में अपना विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। अब सारा पैसा तो व्यापार में लगा नहीं होता, इसलिए देश अपने एक्स्ट्रा पैसे को अमेरिकी बॉन्ड में लगा देते हैं, जिससे कुछ ब्याज मिलता रहे। सभी देशों को मिलाकर ये पैसा करीब 7 ट्रिलियन डॉलर है। यानी भारत की इकोनॉमी से भी दोगुना ज्यादा। इस पैसे का इस्तेमाल अमेरिका अपनी ग्रोथ में करता है।

अब आते हैं अपने प्रमुख सवाल पर। यानी डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन-रूस की स्ट्रैटजी क्या है? सबसे पहले बात रूस की.

रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ब्रासीलिया की एक बैठक में साथ-साथ मौजूद।

रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल और गैस का उत्पादन करने वाला देश है और उसके सबसे बड़े खरीदार यूरोपीय देश हैं। रूस ने प्राकृतिक गैस खरीदने वाले यूरोपीय संघ के देशों से कहा कि वो डॉलर या यूरो के बजाय बिल का भुगतान रूबल में करें।

यानी जो देश पहले रूस से गैस खरीदने के लिए अमेरिकी बैंक में डॉलर रिजर्व रखते थे, उन्हें अब रूसी सेंट्रल बैंक में रूबल रिजर्व रखना पड़ रहा है। इसी तरह बाकी चीजों के निर्यात के लिए भी रूस अनफ्रेंडली देशों से रूबल में पेमेंट करने की मांग कर रहा है।

जून 2022 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने BRICS देशों की करेंसी का एक नया इंटरनेशनल रिजर्व बनाने की बात कही थी। पुतिन के इस प्रपोजल पर फिलहाल विचार किया जा रहा है। BRICS देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका हैं।

डॉलर को युआन से रिप्लेस करने के लिए चीन की कोशिशें

SWIFT की ही तरह चीन के सेंट्रल बैंक पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने CIPS नाम का सिस्टम बनाया है। इस पेमेंट सिस्टम से करीब 103 देशों के 1300 बैंक जुड़ चुके हैं। पिछले साल इस सिस्टम के जरिए 80 ट्रिलियन युआन (चीन की करेंसी) से ज्यादा का ट्रांजैक्शन हुआ। जनवरी 2022 में युआन दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा ट्रांजैक्शन वाली करेंसी बन गई। उससे आगे सिर्फ US डॉलर, यूरो और ब्रिटिश पाउंड थे।

युआन रिजर्व को बढ़ावा देने के लिए चीन ने 40 से ज्यादा देशों के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट किया है। इस एग्रीमेंट के तहत 2 देशों को व्यापार करने कि लिए हर बार SWIFT सिस्टम की जरूरत नहीं। एक फिक्स अमाउंट का ट्रेड वो देश अपनी करेंसी में कर सकते हैं।

इसके अलावा सऊदी अरब से भी युआन में तेल बेचने की बात हो रही है। यानी जो देश तेल खरीदने के लिए अभी डॉलर रिजर्व रखते हैं, वो युआन में रिजर्व रखेंगे। इससे डॉलर का दबदबा कम होगा।

रूस-चीन की इस कोशिश में भारत का किरदार

डॉलर के दबदबे को कम करने की चीन-रूस की कोशिश में भारत भी एक किरदार निभा रहा है। यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद भारत और रूस ने डॉलर को दरकिनार करते हुए रुपए और रूबल में आपसी कारोबार शुरू किया।

14 सितंबर को फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के प्रेसिडेंट ए. शक्तिवेल ने कहा है कि भारत ने रूस के साथ रुपए में कारोबार के लिए SBI को आथोराइज किया है। 7 सितंबर को रिजर्व बैंक और फाइनेंस मिनिस्ट्री ने बैंक से इंपोर्ट और एक्सपोर्ट ट्रांजैक्शन को रुपए में करने का बढ़ावा देने की बात कही थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे रुपए को मजबूती मिलेगी।

आर्टिकल में आगे बढ़ने से पहले एक पोल पर हम आपकी राय जानना चाहते हैं.

आगे का रास्ता.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन और रूस की कोशिशें नुकसान तो पहुंचा रहीं, लेकिन बड़ा इम्पैक्ट आने में काफी वक्त लगेगा। डॉलर के खिलाफ इस अभियान में रूस और चीन को दूसरे देशों के साथ की दरकार है।

हालांकि, एक्सपर्ट्स युआन को डॉलर की जगह फिट नहीं पाते। इसकी सबसे बड़ी वजह चीन की सरकार है। यहां आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है लोकतंत्र नहीं है, जिस वजह से इंस्टीट्यूशन में ट्रांसपेरेंसी भी नहीं है। कोई भी देश ऐसी किसी करेंसी को रिजर्व नहीं रखना चाहेगा, जिसके डूबने का खतरा ज्यादा हो।

References…

ऐसे ही नॉलेज बढ़ाने वाले एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

Taliban Currency Ban: तालिबान ने अफगानिस्तान में बैन की विदेशी मुद्रा, इस्तेमाल करने वालों पर होगी कार्रवाई

Taliban Currency Ban: अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है. इस बीच तालिबान ने विदेशी मुद्रा पर बैन लगा दिया है.

By: abp news | Updated at : 03 Nov 2021 11:09 AM (IST)

तालिबानी लीडर (फाइल फोटो)

Taliban Ban Foreign Currency: अफगानिस्तान में तालिबान ने मंगलवार को विदेशी मुद्राओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, जिससे पहले से ही संघर्ष कर रही अर्थव्यवस्था में बड़े समस्या की आशंका है. आपको बताते चलें कि आतंकवादी संगठन तालिबान ने अगस्त के मध्य में सत्ता पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद से ही अफगानिस्तान की राष्ट्रीय मुद्रा का अवमूल्यन होना शुरू हो गया था और देश के भंडार विदेशों में जमा हो गए थे.

अर्थव्यवस्था के चरमराने से परेशान बैंकों के पास नगदी की कमी हो रही है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अब तक तालिबान प्रशासन को सरकार के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है. इस बीच, देश के अंदर कई लेन-देन अमेरिकी डॉलर में किए जाते हैं और दक्षिणी सीमा व्यापार मार्गों के करीब के क्षेत्रों में पाकिस्तानी रुपये का उपयोग किया जाता है. लेकिन, अब एक प्रेस बयान में तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने घोषणा की कि अब से घरेलू व्यापार के लिए विदेशी मुद्रा का उपयोग करने वाले पर मुकदमा चलाया जाएगा.

उन्होंने कहा "देश में आर्थिक स्थिति और राष्ट्रीय हितों की आवश्यकता है कि सभी अफगान हर लेन-देन में अफगानी मुद्रा का उपयोग करें." प्रवक्ता ने तालिबान के मंसूबे को लोगों को बताते हुए यह भी कहा कि "इस्लामिक अमीरात सभी नागरिकों, दुकानदारों, व्यापारियों, व्यापारियों और आम जनता को निर्देश देता है कि अब से अफगानी में सभी लेन-देन करें और विदेशी मुद्रा का उपयोग करने से सख्ती से परहेज करें."

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Published at : 03 Nov 2021 11:09 AM (IST) Tags: Afghanistan Taliban currency ban dollar हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi

विदेशी मुद्रा व्यापार, क्रिप्टोकरेंसी का ऐतिहासिक विकल्प?

यदि आप अभी बाहर शुरू कर रहे हैं विदेशी मुद्रा व्यापारयह महत्वपूर्ण है कि आप इस मुद्रा बाजार के आधार को समझें और यह कैसे काम करता है। विदेशी मुद्रा विदेशी और विनिमय शब्दों का एक संकुचन है। यह एक विदेशी मुद्रा बाजार है जहां निवेशक मुद्रा जोड़े खरीद और बेच सकते हैं। दूसरे शब्दों में, यह एक मुद्रा बाजार है.

विदेशी मुद्रा व्यापार में प्रवेश करने वाले निवेशकों को विदेशी मुद्रा व्यापारी कहा जाता है। वे निजी व्यापारी (छोटे निवेशक) या पेशेवर (संस्थागत निवेशक, बैंक, कंपनियां, आदि) हो सकते हैं। यहाँ का एक उदाहरण है फ्रेंच भाषी व्यापारीमुद्रा जोड़े का व्यापार करने में सक्षम होने के लिए, खुदरा व्यापारियों को ऑनलाइन दलालों के माध्यम से जाना जाता है जिसे "कहा जाता है" विदेशी मुद्रा दलाल ”। मुद्राओं में विशेषज्ञता वाले ये दलाल उनके लिए बाजार से बातचीत करेंगे।

विदेशी मुद्रा कहां से आती है?

मुद्रा विनिमय एक अवधारणा है जो लंबे समय से चारों ओर है। इसके अलावा, कई ट्रेडिंग सिस्टम जैसे ब्रेटन वुड्स सिस्टम और गोल्ड स्टैंडर्ड फॉरेक्स से पहले मौजूद थे। उत्तरार्द्ध 1971 के आसपास बनाया गया था, उस समय की आर्थिक परिस्थितियों के बाद जिसने ब्रेटन वुड्स समझौते को समाप्त कर दिया। वहाँ से, कई देशों की मुद्राओं की विनिमय दर विदेशी मुद्रा पर प्रस्तावों और मांगों द्वारा निर्धारित की गई थी।

यह कैसे काम करता है?

किसी भी विदेशी मुद्रा व्यापारी जो विदेशी मुद्रा बाजार में उतरना चाहता है, उसे पता होना चाहिए कि यह कैसे काम करता है और बुनियादी शर्तें। मुद्रा जोड़ी प्रमुख तत्व है जो मुद्रा व्यापार में भाग लेती है। इसमें आधार मुद्रा और काउंटर मुद्रा (उदाहरण के लिए EUR / USD) शामिल हैं।

विदेशी मुद्रा पर व्यापार का सिद्धांत समझने में काफी सरल है। मुद्राओं का आदान-प्रदान करने के लिए, व्यापारी एक मुद्रा जोड़ी खरीदता है जब बोली ऊपर जाती है और फिर नीचे जाने पर उसे बेचती है। जानकारी के लिए, विदेशी मुद्रा उद्धरण प्रतिपक्ष के खिलाफ आधार मुद्रा का मूल्यांकन है।

व्यापारी इसलिए भौतिक मुद्रा नहीं खरीदते और बेचते हैं, लेकिन मुद्राएं। यह विदेशी मुद्रा लेनदेन विदेशी मुद्रा लेनदेन या ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से होता है। विदेशी मुद्रा पर कई मुद्रा जोड़े का कारोबार होता है। सबसे प्रसिद्ध अमेरिकी डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, यूरो, जापानी येन और स्विस फ्रैंक हैं।

कैनेडियन डॉलर और ऑस्ट्रेलियाई डॉलर जैसी छोटी मुद्राओं के अन्य समूहों का भी विदेशी मुद्रा पर कारोबार किया जाता है। हालांकि, वे 10% से कम विदेशी मुद्रा लेनदेन का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो वास्तव में व्यापारियों के लिए फायदेमंद नहीं है।

एक दलाल काफी बस एक दलाल है। यह एक मध्यस्थ है जो विक्रेता के प्रस्ताव और कमीशन के बदले खरीदार की मांग से मेल खाता है। इसलिए यह विक्रेता और खरीदार के बीच लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है.

व्यापार के क्षेत्र में, विदेशी मुद्रा दलाल एक व्यक्ति या एक कंपनी है जो खुदरा व्यापारियों को वित्तीय बाजारों तक पहुंच प्रदान करती है। यह क्लाइंट्स द्वारा रखी गई मुद्राओं के ऑर्डर को खरीदने और बेचने के लिए ट्रेडिंग अकाउंट का उपयोग करता है। कुछ साइटें विभिन्न मानदंडों पर दलालों की तुलना करती हैं, इसलिए आप एक पढ़ सकते हैं सहूलियत एफएक्स समीक्षा

विदेशी मुद्रा: बिटकॉइन का एक अच्छा विकल्प?

व्यापारियों के लिए उल्लेखनीय लाभ

अन्य वित्तीय बाजारों की तुलना में, विशेष रूप से बिटकॉइन, विदेशी मुद्रा में खुदरा व्यापारियों और पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण फायदे हैं। यह वास्तव में एक है मुक्त बाजारक्योंकि इसके लिए क्लियरिंग फीस या ब्रोकरेज फीस की आवश्यकता नहीं है। बिटकॉइन (0,1% से कम) की तुलना में विदेशी मुद्रा में लेनदेन की लागत भी कम होती है। हालांकि, आपको पता होना चाहिए कि हर बार जीतना संभव नहीं है और यह तेजी से व्यवस्थित लाभ के साथ एक शहरी मिथक है। 10% रिटर्न पहले से ही उत्कृष्ट है और अधिकांश पेशेवरों को औसत मासिक रिटर्न 1 से 10% तक है, 20% पर कुछ चोटियों या असाधारण मामलों में 40% तक भी।

यह भी जान लें कि फॉरेक्स एक दिन में 24 घंटे खुला बाजार है (सप्ताहांत को छोड़कर), जो आपको किसी भी समय व्यापार करने की अनुमति देता है और कई बार आपको सूट करता है। दलालों द्वारा दिए गए उत्तोलन प्रभाव से आपको अपने लेनदेन को बढ़ाने और अपनी आय को गुणा करने का अवसर मिलता है।

जोखिम क्या हैं?

व्यापार की दुनिया में, नुकसान के जोखिम भारी हो सकते हैं। आपको पता होना चाहिए कि सबसे अच्छा रिटर्न प्राप्त करने के लिए, हमें मुद्राओं के मूल्य की प्रशंसा और मूल्यह्रास पर खेलना चाहिए। दरअसल, मुद्राओं की विनिमय दर स्थायी उतार-चढ़ाव में होती है, जिससे लेनदेन करना कभी-कभी जोखिम भरा हो जाता है। इसके अलावा, विदेशी मुद्रा में निवेश करके पैसा बनाने के लिए, सभी पक्षों से पदों को खोलने का कोई सवाल ही आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है नहीं है। इसके विपरीत, आपको कम व्यापार करना होगा, लेकिन अधिक कुशलता से, जिसके लिए आपको विदेशी मुद्रा व्यापार की दुनिया के बारे में अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए।

रिकॉर्ड स्‍तर पर विदेशी मुद्रा भंडार, कोरोना काल में भी क्‍यों हो रहा इजाफा?

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 3.436 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई और यह 493 ( करीब 37 लाख करोड़ रुपये) अरब डॉलर हो गया है.

विदेशी मुद्रा भंडार में 3.436 अरब डॉलर की वृद्धि

aajtak.in

  • नई दिल्‍ली,
  • 06 जून 2020,
  • (अपडेटेड 06 जून 2020, 6:14 PM IST)
  • विदेशी मुद्रा भंडार 493 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर
  • RBI साप्ताहिक आधार पर इसके आंकड़े पेश करता है

कोरोना संकट के बीच देश की इकोनॉमी को लेकर लगातार निगेटिव आंकड़े आ रहे हैं. इस माहौल में एक राहत की खबर मिली है. दरअसल, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है.

रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 29 मई को समाप्त हुए सप्‍ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 3.43 अरब डॉलर बढ़ा है. इस बढ़ोतरी के साथ विदेशी मुद्रा भंडार 493.48 अरब डॉलर (37 लाख करोड़ रुपये) के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. आपको बता दें कि आरबीआई साप्ताहिक आधार पर विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़े पेश करता है. देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती का प्रतीक माना जाता है.

क्‍या है इसके मायने?

इस बढ़ोतरी का मतलब ये हुआ कि सरकारी खजाने में व्‍यापार की लेनदेन के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की कमी नहीं है. दरअसल, विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं ताकि जरूरत पड़ने पर वह अपनी देनदारियों का भुगतान कर सके. यह भंडार एक या एक से अधिक मुद्राओं में रखे जाते हैं. आमतौर पर भंडार डॉलर या यूरो में रखा जाता है.

कोरोना संकट में भी क्‍यों बढ़ा भंडार

यह बढ़ोतरी ऐसे वक्त में हुई है, जब देश की इकोनॉमी कोरोना और लॉकडाउन की वजह से पस्‍त नजर आ रही है. लेकिन सवाल है कि कोरोना संकट के बाद भी यह बढ़ोतरी क्‍यों हुई है. इसे समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि मई के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिली है. इसके अलावा लॉकडाउन की वजह से ईंधन की डिमांड भी कम रही है.

कहने का मतलब ये हुआ कि कच्‍चे तेल की सस्‍ती और कम खरीदारी हुई है. इस वजह से सरकार को कम डॉलर भुगतान करने पड़े हैं. जाहिर सी बात है कि कम डॉलर भुगतान की वजह से बचत हुई है और विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा हो गया है. बढ़ोतरी का ये सिलसिला बीते कुछ हफ्तों से चल रहा था लेकिन इस बार का इजाफा रिकॉर्ड स्‍तर पर है.

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