रणनीति चुनना

खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली

खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली
एफआईआई की बिकवाली को चुनौती देती खुदरा घरेलू निवेशकों की लिवाली

Economy रुपये में गिरावट जारी, 37 पैसे और टूटकर 81.63 प्रति डॉलर पर

मुंबई: घरेलू शेयर बाजार में कमजोरी के रुख और विदेशों में डॉलर के मजबूत होने से अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में बृहस्पतिवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 37 पैसे की गिरावट के साथ 81.63 (अस्थायी) प्रति डॉलर पर बंद हुआ। बाजार सूत्रों ने कहा कि अमेरिका के मजबूत खुदरा बिक्री के आंकड़ों के बाद वहां के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा सख्त मौद्रिक नीति की गुंजाइश को देखते हुए डॉलर मजबूत हो गया।

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 81.62 पर खुला। कारोबार के दौरान रुपया 81.45 के दिन के उच्चस्तर और 81.68 के निचले स्तर को छूने के बाद अंत में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 37 पैसे की गिरावट के साथ 81.63 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। यह पिछले कारोबारी सत्र में 35 पैसों की गिरावट के साथ 81.26 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।

मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशल सर्विसेज के विदेशीमुद्रा एवं सर्राफा विश्लेषक गौरांग सोमैया ने कहा कि अमेरिका में खुदरा बिक्री में अक्टूबर में आठ माह की सबसे अधिक बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस बीच, दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कमजोरी या मजबूती को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.26 प्रतिशत बढ़कर 106.55 हो गया।

वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.40 प्रतिशत घटकर 92.49 डॉलर प्रति बैरल रह गया। वहीं, बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 230.12 अंक की गिरावट के साथ 61,750.खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली 60 अंक पर बंद हुआ। शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे। उन्होंने बुधवार को 386.06 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। (एजेंसी)

एफआईआई की बिकवाली को चुनौती देती खुदरा घरेलू निवेशकों की लिवाली

शेयर बाजार 18 जून 2022 ,18:45

एफआईआई की बिकवाली को चुनौती देती खुदरा घरेलू निवेशकों की लिवाली

एफआईआई की बिकवाली को चुनौती देती खुदरा घरेलू निवेशकों की लिवाली

भारतीय पूंजी बाजार के लिए एफआईआई या एफपीआई का महत्व किसी से छुपा नहीं है। ये विदेशी निवेशक पिछले तीस साल से अधिक समय से शेयर बाजार की दिशा तय कर रहे हैं। हमने देखा है कि किस तरह इनकी बिकवाली शेयर बाजार को गिरावट में और लिवाली तेजी लाती है। हम अब अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में बढ़ोतरी की घोषणा के असर को समझते हैं। आज परिस्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं। बाजार का दिशा निर्धारण करने वाले एफआईआई या एफपीआई, जो मुख्य रूप से शीर्ष पांच सौ कंपनियों में निवेश करते थे, अब बाजार का रुख तय नहीं कर रहे हैं।

शेयर बाजार में उनकी भागीदारी से शेयरों की कीमतों पर असर पड़ता है लेकिन उनकी बिकवाली अब पहले की तरह बाजर पर हावी नहीं हो पाती है। अब घरेलू संस्थागत निवेशकों का प्रभाव क्षेत्र बढ़ रहा है और उसकी भूमिका भी इसी के साथ बढ़ रही है।

घरेलू म्युचुअल फंड उद्योग का परिसंपत्ति प्रबंधन या एयूएम करीब 37.22 लाख करोड़ रुपये है। इसमे हाल में सूचीबद्ध हुई एलआईसी का करीब चालीस लाख करोड़ का एयूएम शामिल नहीं है।

घरेलू म्युचुअल फंड का बढ़ता एयूएम सक्रिय निवेश आधार के कारण है। ये निवेशक प्रणालीगत निवेश योजना यानी एसआईपी के जरिये लगातार नियमित निवेश कर रहे हैं। औसत मासिक एसआईपी संग्रह 2020-21 के प्रति माह आठ हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 में दस हजार करोड़ रुपये प्रतिमाह से चालू वित्त वर्ष के पहले दो माह में बारह हजार करोड़ रुपये प्रतिमाह हो गया।

देश में मार्च 2020 के दौरान डीमैट अकांउट की संख्या पांच करोड़ से कम थी, जो अब 9.47 करोड़ हो गई है। इससे पता चलता है कि शेयरों के दाम टूटने से निवेशकों का रुझान निवेश में बढ़ा।

साल 2008 में वैश्विक डेट संकट के कारण एफआईआई बिकवाल बने हुए थे। इसके बाद 2012 से 2014 के बीच ये शुद्ध लिवाल बने रहे जबकि घरेलू फंड शुद्ध बिकवाल बने रहे। साल 2015-2018 के बीच एफआईआई जारी रही लेकिन बिकवाली का उतना अधिक जोर नहीं रहा। दूसरी तरफ घरेलू फंड लिवाली में जुटे रहे।

साल 2009 के दस साल बाद यानी 2019 दोनों लिवाल बने रहे जबकि 2020 में एफआईआई निवेश में लगे रहे और घरेलू फंड निकासी करते रहे। गत साल एफपीआई ने 92,000 करोड़ रुपये की निकसी की जबकि घरेलू निवेशकों ने 94,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया।

इस साल एफआईआई पूरी तरह बिकवाल बने हुए हैं। उन्होंने गत शुक्रवार को बाजार बंद होने तक बाजार से 2.67 लाख करोड़ रुपये की निकासी की है। इस तरह उन्होंने इस साल मात्र साढ़े पांच माह में ढाई लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि निकाल ली।

इसे घरेलू निवेशकों ने चुनौती देते हुए बाजार में शुक्रवार तक 2.15 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया है।

अमेरिका में मुद्रास्फीति चालीस साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, जो दुनिया खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली भर के शेयर बाजारों के लिए चिंता का सबब है। महंगाई पर काबू पाने के लिए अमेरिकी फेड रिजर्व ने हाल ही में ब्याज दरों में 75 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है और जुलाई में होने वाली अगली बैठक में भी इसकी तरह की बढ़ोतरी के संकेत दिए हैं।

बैलेंस शीट में संकुचन जारी है और फंड महंगा होता जा रहा है। ऐसे में एफआईआई अपने जोखिम को कम करने के लिए भारतीय बाजार से तेजी से पूंजी निकाल रहे हैं। ऐसे माहौल में भी एफआईआई को अभी भारतीय बाजार में अधिक लाभ हो रहा है और उन्हें निकलने का आसान रास्ता मिल रहा है।

( केजरीवाल रिसर्च एंड इनवेस्टमेंट सर्विसेज के संस्थापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

मुख्य आर्थिक सलाहकार बोले: 'रुपया अपना ध्यान रखने में सक्षम, भारत नहीं कर रहा रुपये का बचाव'

इस साल रुपये की कीमत में लगातार गिरावट का रुख देखी गई है। अगस्त में रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर 80.15 प्रति डॉलर पर आ गया था। हालांकि, मंगलवार तक रुपये ने जोरदार वापसी की और डॉलर के मुकाबले अपने महीने भर के अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर 79.15 के भाव पर बंद हुआ।

मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरन ने रुपये के हालात पर दिया बयान।

मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने मंगलवार को कहा कि भारत अपनी मुद्रा रुपये का बचाव नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) रुपये के उतार-चढ़ाव को चरणबद्ध और बाजार के रवैये के अनुरूप रखने के लिए जरूरी कदम उठा रहा है।

नागेश्वरन ने यहां एक कार्यक्रम में कहा कि भारतीय रुपये के प्रबंधन का तरीका अर्थव्यवस्था की बुनियाद को दर्शाता है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत अपने रुपये का बचाव नहीं कर रहा है। मुझे नहीं लगता है कि देश की बुनियाद ऐसी है जहां हमें अपनी मुद्रा का बचाव करना पड़े। रुपया अपना ध्यान रखने में खुद सक्षम है।’’

गौरतलब है कि इस साल रुपये की कीमत में लगातार गिरावट का रुख देखी गई है। अगस्त में रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर 80.15 प्रति डॉलर पर आ गया था। हालांकि, मंगलवार तक रुपये ने जोरदार वापसी की और डॉलर के मुकाबले अपने महीने भर के अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर 79.15 के भाव पर बंद हुआ।

मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा, ‘‘रिजर्व बैंक यह सुनिश्चित कर रहा है कि रुपया जिस भी दिशा में जा रहा है, वह ज्यादा तेज रफ्तार से न हो और उसकी गति बाजार के हिसाब से ही हो। इसके अलावा यह ध्यान भी रखा जा रहा है कि इन कदमों से आयातकों या निर्यातकों पर किसी तरह का बोझ न पड़े।’’

विदेशी मुद्रा भंडार में हाल में आई गिरावट को लेकर नागेश्वरन ने कहा, "वैश्विक स्तर पर जोखिम से बचाव का रुख विदेशी पूंजी को भारत आने से रोक रहा है। निश्चित रूप से इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ रहा है।" आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह में 3.007 अरब डॉलर घटकर 561.04 अरब डॉलर रह गया।

अगस्त में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस महंगाई की एक वजह आधार प्रभाव भी रही है। इसके अलावा खरीफ की फसलों की बुआई के आंकड़ों को भी बाजार गलत ढंग से ले रहा है। सरकार की तरफ से जारी खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त में खुदरा महंगाई दर बढ़कर सात प्रतिशत हो गई जबकि जुलाई में यह 6.71 प्रतिशत पर थी।

विस्तार

मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने मंगलवार को कहा कि भारत अपनी मुद्रा रुपये का बचाव नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) रुपये के उतार-चढ़ाव को चरणबद्ध और बाजार के रवैये के अनुरूप रखने के लिए जरूरी कदम उठा रहा है।

नागेश्वरन ने यहां एक कार्यक्रम में कहा कि भारतीय रुपये के प्रबंधन का तरीका अर्थव्यवस्था की बुनियाद को दर्शाता है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत अपने रुपये का बचाव नहीं कर रहा है। मुझे नहीं लगता है कि देश की बुनियाद ऐसी है जहां हमें अपनी मुद्रा का बचाव करना पड़े। रुपया अपना ध्यान रखने में खुद सक्षम है।’’

गौरतलब है कि इस साल रुपये की कीमत में लगातार गिरावट का रुख देखी गई है। अगस्त में रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर 80.15 प्रति डॉलर पर आ गया था। हालांकि, मंगलवार तक रुपये ने जोरदार वापसी की और डॉलर के मुकाबले अपने महीने भर के अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर 79.15 के भाव पर बंद हुआ।

मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा, ‘‘रिजर्व बैंक यह सुनिश्चित कर रहा है कि रुपया जिस भी दिशा में जा रहा है, वह ज्यादा तेज रफ्तार से न हो और उसकी गति बाजार के हिसाब से ही हो। इसके अलावा यह ध्यान भी रखा जा रहा है कि इन कदमों से आयातकों या निर्यातकों पर किसी तरह का बोझ न पड़े।’’

विदेशी मुद्रा भंडार में हाल में आई गिरावट को लेकर नागेश्वरन ने कहा, "वैश्विक स्तर पर जोखिम से बचाव का रुख विदेशी पूंजी को भारत आने से रोक रहा है। निश्चित रूप से इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ रहा है।" आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह में 3.007 अरब डॉलर घटकर 561.04 अरब डॉलर रह गया।

अगस्त में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस महंगाई की एक वजह आधार प्रभाव भी रही है। इसके अलावा खरीफ की फसलों की बुआई के आंकड़ों को भी बाजार गलत ढंग से ले रहा है। सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त में खुदरा महंगाई दर बढ़कर सात प्रतिशत हो गई जबकि जुलाई में यह 6.71 प्रतिशत पर थी।

रुपए में गिरावट का मतलब

इसके साथ-साथ हमारा व्यापार घाटा भी अभूतपूर्व तरीके से बढ़ गया। व्यापार घाटे की वृद्धि का सीधा असर डॉलरों की मांग पर पड़ा और रुपए का अवमूल्यन होता गया। लेकिन पिछले लगभग दो वर्षों से सरकार के ऐसे कई प्रयास देखने को मिल रहे हैं, जिससे आयातों पर हमारी निर्भरता आने वाले समय में कम हो सकती है। आत्मनिर्भर भारत योजना के परिणाम अब सामने आ रहे हैं और दवा उद्योगों के लिए कच्चा माल, सेमीकंडक्टर, इलैक्ट्रिक वाहन, टेलीकॉम उत्पादों सहित कई प्रकार के उत्पाद अब भारत में बनने लगे हैं…

लंबे समय से स्थिर रुपए में पिछले दिनों अचानक गिरावट आने लगी है, जिसके कारण देश में चिंता व्याप्त हो रही है। गौरतलब है कि रुपए और डॉलर का विनिमय दर 6 दिसंबर 2021 को 75.30 रुपए प्रति डॉलर थी, जो 25 अप्रैल 2022 को 76.74 रुपए और 24 मई 2022 को 77.6 रुपए प्रति डॉलर तक पहुंच गई थी। देखना होगा कि कोरोना की शुरुआत (अप्रैल 2020) में यह विनिमय दर 76.50 रुपए प्रति डॉलर थी जो बेहतर होती हुई जनवरी 11, 2022 तक आते-आते 74.00 रुपए प्रति डॉलर के आसपास तक पहुंच गई। लेकिन हाल ही में रुपए में आई गिरावट ने वो लाभ समाप्त कर दिया है। लेकिन अभी भी डॉलर अप्रैल 2020 के स्तर के लगभग 1.4 प्रतिशत ही ऊपर है।

महंगाई का खतरा

पिछले कुछ समय से दुनिया भर में महंगाई बढ़ती जा रही है। गौरतलब है कि अप्रैल माह में अमरीका, इंगलैंड और यूरोपीय संघ में महंगाई की दर क्रमशः 8.3 प्रतिशत, खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली 7.0 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत रही। इसी क्रम में भारत में भी अप्रैल माह में खुदरा महंगाई की दर 7.79 प्रतिशत रिकार्ड की गई, जो पिछले 4-5 वर्षों की तुलना में काफी अधिक मानी जा रही है। रुपए में आ रही गिरावट देश में महंगाई की समस्या को और अधिक बढ़ा सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा की एक रपट के अनुसार रुपए में एक प्रतिशत की गिरावट हमारी महंगाई को 0.15 प्रतिशत बढ़ा सकती है, जिसका असर अगले 5 माह में दिख सकता है। समझा जा सकता है कि भारत बड़ी मात्रा में पैट्रोलियम उत्पादों का आयात करता है, और पिछले काफी समय से कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें काफी बढ़ चुकी हैं। ऐसे में रुपए की गिरावट, भारतीय उपभोक्ताओं के लिए पैट्रोलियम कीमतों को और अधिक बढ़ा सकती है, जिसके कारण कच्चे माल, औद्योगिक ईंधन, परिवहन लागत आदि भी बढ़ सकती है। रिजर्व बैंक इस बात को समझता है कि रुपए की कीमत में गिरावट भारी महंगाई का सबब बन सकती है।

ग्रोथ पर भी लग सकता है ब्रेक

इतिहास साक्षी है कि तेज महंगाई ग्रोथ पर भी प्रतिकूल असर डालती है। ऐसा इसलिए है कि एक ओर महंगाई को थामने और दूसरी ओर वास्तविक ब्याज दर को भी धनात्मक रखने के लिए रिजर्व बैंक को रेपो रेट को बढ़ाना पड़ता है। ब्याज दरों में वृद्धि ग्रोथ की राह को और मुश्किल बना देती है, क्योंकि उससे उपभोक्ता मांग, व्यावसायिक और इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश सभी पर प्रतिकूल असर डालता है। इसीलिए रिजर्व बैंक को सरकार द्वारा निर्देश है कि वे मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत (जमा-घटा 2 प्रतिशत) के स्तर तक सीमित रखे। यानी मुद्रास्फीति की दर को किसी भी हालत में 6 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ने देना है।

रुपए को थामने में रिजर्व बैंक की भूमिका

पिछले लंबे समय से भारत में रुपए की अन्य करैंसियों के साथ विनिमय दर, बाजार द्वारा निर्धारित होती रही है। सैद्धांतिक तौर पर सोचा जाए तो डॉलर और अन्य महत्त्वपूर्ण करैंसियों की मांग और आपूर्ति के आधार पर रुपए की विनिमय दर तय होती है। पिछले कुछ समय से हमारे आयात अभूतपूर्व तौर पर बढ़े हैं। हालांकि इस बीच हमारे निर्यात भी रिकार्ड स्तर तक पहुंच चुके हैं, लेकिन आयातों में तेजी से वृद्धि होने के कारण हमारा व्यापार घाटा काफी बढ़ चुका है। अपने देश में पोर्टफोलियो निवेश भी बड़ी मात्रा में आता रहा है। लेकिन पिछले काफी समय से पोर्टफोलियो निवेशक देश से भारी मात्रा में निवेश वापस ले गए हैं। इसका असर हमारे शेयर बाजारों पर तो पड़ा है, डॉलरों की आपूर्ति भी उससे प्रभावित हुई है। जब भी रुपए में गिरावट शुरू होती है तो सट्टेबाज इत्यादि भी पैसा बनाने की तरकीबें शुरू कर देते हैं और अपनी गतिविधियों से बाजार में डॉलर की कृत्रिम कमी कर देते हैं। रिजर्व बैंक भारत के विदेशी मुद्रा भंडारों का संरक्षक तो है ही, साथ ही साथ उसके पास करैंसी की विनिमय दर को स्थिर रखने का भी दायित्व होता है। ऐसे में जब बाजार में सट्टेबाज और बाजारी शक्तियां रुपए को कमजोर करने की कोशिश करती हैं तो रिजर्व बैंक महंगाई को थामने, मौद्रिक स्थिरता और ग्रोथ के लिए आवश्यक वातावरण बनाने के अपने दायित्व के मद्देनजर विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है और आवश्यकता पड़ने पर अपने विदेशी मुद्रा भंडारों से डॉलर बेचते हुए डॉलरों की आपूर्ति बढ़ा देता है और बाजार में सट्टेबाजों द्वारा उत्पन्न डॉलरों की कृत्रिम कमी का समाधान कर देता है।

रुपए का क्या है भविष्य?

रुपए के मूल्य के बारे में सदैव दो प्रकार की राय सामने आती है। एक प्रकार के विशेषज्ञों का मानना है कि रुपए में अवमूल्यन अवश्यंभावी है और इसलिए रिजर्व बैंक को रुपए के मूल्य को थामने हेतु अपनी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को दाव पर लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इससे विदेशी मुद्रा भंडार घट जाएंगे और रुपए में सुधार भी नहीं होगा। इसलिए रुपए को अपने हाल पर छोड़ देना चाहिए। ऐसे विशेषज्ञों का तर्क यह है कि भारत में आयातों के बढ़ने की दर निर्यातों के बढ़ने की दर से हमेशा ज्यादा रहती है, इसलिए डॉलरों की अतिरिक्त मांग डॉलर की कीमत को लगातार बढ़ाएगी। उनका यह तर्क है कि जब-जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी, तब-तब रुपए में गिरावट अवश्यक होगी। दूसरे प्रकार के विशेषज्ञों का यह मानना है कि डॉलरों की अतिरिक्त मांग यदाकदा उत्पन्न होती है और फिर से परिस्थिति सामान्य हो जाती है। ऐसे में बाजारी शक्तियां रुपए में दीर्घकालीन गिरावट न लाने पाएं, इसलिए रिजर्व बैंक का विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप महत्त्वपूर्ण है। पूर्व में भी रिजर्व बैंक द्वारा खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली अपने भंडार में से डॉलरों की बिक्री से रुपए को थामने में मदद मिली है। स्थिति सामान्य होने पर रिजर्व बैंक पुनः डॉलरों की खरीद कर अपने विदेशी मुद्रा भंडारों की भरपाई कर लेता है। इसलिए रुपए के स्थिरीकरण के प्रयास से विदेशी मुद्रा भंडारों का दीर्घकाल में कोई नुकसान नहीं होता।

प्रश्न यह है कि क्या शनैः-शनैः रुपए का अवमूल्यन अवश्यंभावी है अथवा रुपए को मजबूत करने की रणनीति बनाना असंभव है। पिछले काफी समय से सरकारों द्वारा मुक्त व्यापार की नीति अपनाई गई और यह प्रयास हुआ कि कम से कम आयात शुल्कों पर आयात को अनुमति दी जाए। चीन समेत कई देशों द्वारा देश में आयातों की डंपिंग के चलते हमारे उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और आयातों पर हमारी निर्भरता बढ़ती गई। इसके साथ-साथ हमारा व्यापार घाटा भी अभूतपूर्व तरीके से बढ़ गया। व्यापार घाटे की वृद्धि का सीधा असर डॉलरों की मांग पर पड़ा और रुपए का अवमूल्यन होता गया। लेकिन पिछले लगभग दो वर्षों से सरकार के ऐसे कई प्रयास देखने को मिल रहे हैं, जिससे आयातों पर हमारी निर्भरता आने वाले समय में कम हो सकती है। आत्मनिर्भर भारत योजना के परिणाम अब सामने आ रहे हैं और दवा उद्योगों के लिए कच्चा माल, सेमीकंडक्टर, इलैक्ट्रिक वाहन, टेलीकॉम उत्पादों सहित कई प्रकार के उत्पाद अब भारत में बनने लगे हैं। आयातों में होने वाली कमी से डॉलर की मांग घट सकती है। उधर भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदने और उसका भुगतान रुपयों में करने के कारण डॉलरों की मांग में और कमी हो सकती है और इसका परिणाम रुपए की बेहतरी के रूप में देखा जा सकेगा।

खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली

US Treasury removes India

अमेरिकी ट्रेजरी विभाग (अमेरिकी वित्त मंत्रालय) ने 11 नवंबर 2022 को इटली, मैक्सिको, थाईलैंड और वियतनाम के साथ भारत को अपनी मुद्रा निगरानी सूची से हटा दिया है।

ट्रेजरी विभाग ने कांग्रेस को अपनी द्विवार्षिक रिपोर्ट के अनुसार चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान सात अर्थव्यवस्थाएं हैं जो अभी भी मुद्रा निगरानी सूची का हिस्सा हैं।

भारत को पहली बार 2018 में मुद्रा निगरानी सूची में रखा गया था और बाद में उसे इस सूची से हटा दिया गया था, लेकिन अप्रैल 2021 में इसे फिर से सूची में डाल दिया गया था ।

ट्रेजरी विभाग के रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन देशों को सूची से हटा दिया गया है, वे लगातार दो रिपोर्टों में , तीन मानदंडों में से केवल एक को पूरा कर पाए हैं।

मुद्रा निगरानी सूची क्या है?

संयुक्त राज्य अमेरिका के 2015 के अधिनियम के तहत ट्रेजरी विभाग को संयुक्त राज्य अमेरिका के कांग्रेस (अमेरिकी संसद) को एक अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है।

इस रिपोर्ट में उन संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों का उल्लेख किया जाता है जो जान - बूझकर अपने मुद्रा की कीमत काम रखते हैं ताकि व्यापार में उनको अनुचित लाभ मिले।

मुद्रा हेरफेर का मतलब है कि देश जानबूझकर अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में अपनी मुद्रा का मूल्य कम रखता है ताकि उसके निर्यात किए गए सामान की कीमत कम रखी जा सके और इसलिए उसके निर्यात को बढ़ावा मिल सके।

2015 के अधिनियम में तीन मानदंडों में से दो को पूरा करने वाली अर्थव्यवस्था को निगरानी सूची में रखा गया है। ये मानदंड इस प्रकार हैं:

  • उस देश का संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक बड़ा व्यापार अधिशेष होगा।
  • वह देश लगातार विदेशी मुद्रा बाजार में 12 महीनों में से कम से कम छह महीनों में विदेशी मुद्रा की खरीद करता हो और विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2% से अधिक हो।
  • देश का चालू खाता अधिशेष सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 3% हो।

2. 2030 तक 2 ट्रिलियन डॉलर के निर्यात लक्ष्य को पूरा करेगा भारत: पीयूष गोयल

16 अक्टूबर 2022 को चेन्नई में आयोजित एक्सपोर्टर्स कॉन्क्लेव में बोलते हुए, केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत वस्तुओं और सेवाओं के 2 ट्रिलियन अमरीकी डालर,निर्यात लक्ष्य को 2030 तक प्राप्त कर लेगा।

2021-22 में भारत का कुल निर्यात 671.81 अरबडॉलर था। भारत ने 2021-22 में 417.81 अरब डॉलर के सामान का निर्यात किया और 2021-22 में सेवा क्षेत्र का निर्यात 254 अरब डॉलर था।

चालू वित्त वर्ष में पहले छह महीनों (अप्रैल-सितंबर 2022) में भारत से माल का निर्यात 229.05 अरब डॉलर था।

पीयूष गोयल ने यह भी कहा कि 2047 तक, देश 30 ट्रिलियन अमरीकी डालर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा और निर्यात का हिस्सा 25 प्रतिशत होगा ।

2021-22 में, देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में निर्यात का हिस्सा 21.4% था ।भारत के कुल जीडीपी में निर्यात किए गए माल का हिस्सा 2021-22 में 13.3% था जबकि सेवा क्षेत्र का हिस्साका 8.1% था।

एक्सपोर्ट कॉन्क्लेव का आयोजन भारतीय निर्यात संगठन का संघ (फियो) द्वारा किया गया था।

भारतीय निर्यात संगठन का संघ (फियो)

इसकी स्थापना 1965 में केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय द्वारा भारत में एक शीर्ष निर्यात प्रोत्साहन निकाय के रूप में की गई थी।

यह भारत से निर्यात को बढ़ावा देने में लगे सभी हितधारकों को एक साथ लाने और समन्वय करने के लिए काम करता है।

यह भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुदाय औरकेंद्र , राज्य सरकारों, वित्तीय संस्थानों, बंदरगाहों, रेलवे, भूतल परिवहन और निर्यात व्यापार सुविधा में लगे सभी के बीच महत्वपूर्ण इंटरफेस प्रदान करता है

मुख्यालय: नई दिल्ली

फियो के अध्यक्ष: डॉ ए शक्तिवेली

3. वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले छह महीनों में भारतीय व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात में 15.54% की वृद्धि दर्ज की गई

केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय द्वारा 3 अक्टूबर 2022 को जारी आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 के पहले छह महीनों (अप्रैल-सितंबर) में भारत से भारतीय माल का निर्यात $ 229.05 बिलियन था। इसने पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 15.54% की वृद्धि दर्ज की।

वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले महीनों (अप्रैल-सितंबर) के दौरान व्यापारिक वस्तुओं का आयात $ 378.53 बिलियन था, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 37.89% की वृद्धि

वित्त वर्ष 2022-23 के पहले छह महीनों (अप्रैल-सितंबर) में व्यापार घाटा (आयात-निर्यात) 149.47 अरब डॉलर था।

2021-22 में माल निर्यात और आयात

पिछले वर्ष की तुलना में 43.18% की वृद्धि दर के साथ 2021-23 में भारत से कुल व्यापारिक माल निर्यात 417.81 अरब डॉलर का रिकॉर्ड था।

2021-22 में भारत का माल आयात पिछले वर्ष की तुलना में 54.71% की वृद्धि के साथ $610.22 बिलियन था।

वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले छह महीनों (अप्रैल-सितंबर) के दौरान भारत से शीर्ष निर्यात किए गए सामान

सभी आंकड़े मिलियन डॉलर (1 मिलियन = 10 लाख) हैं

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