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आसान विदेशी मुद्रा

आसान विदेशी मुद्रा

‘फेमा’ अधिनियम के संबंध में जारी अधिसूचना

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने एक अधिसूचना जारी कर विदेशी मुद्रा प्रबंधन (भारत के बाहर के किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिभूति का आदान-प्रदान अथवा उसे जारी करना) अधिनियम में अब तक किये गए 93 संशोधनों को एक ही अधिसूचना के अंतर्गत लाकर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम को सरल बना दिया है। विदित हो कि फेमा के मानदंडों को आसान बनाने से विदेशी निवेशकों के लिये देश में निवेश करना अपेक्षाकृत आसान हो जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • यह अधिनियम वर्ष 1999 से प्रभाव में आया था। वर्ष 1999 से अब तक इसमें 93 संशोधन हो चुके हैं।
  • कोई भी व्यक्ति जो भारत में निवेश करना चाहता आसान विदेशी मुद्रा है, इस अधिसूचना के माध्यम से यह जाने में सक्षम होगा कि वह किस कंपनी में तथा कैसे निवेश कर सकता हैं।
  • जारी नई अधिसूचना के तहत विदेशी निवेशों पर बनाए गए निम्नलिखित दो नियमों को एक साथ जोड़ दिया गया है-

→ FEMA 20 : इसे भारतीय कंपनी में किये गए विदेशी निवेश अथवा पार्टनरशिप अथवा सीमित देयता भागीदारी के रुप में जाना जाता है।
→ FEMA 24 : किसी पार्टनरशिप फर्म में हुए निवेश को FEMA 24 कहा जाता है।

  • इसमें में ‘लेट सबमिशन फी’ (late submission fee) का भी प्रावधान है। इसके अंतर्गत निवेशक को यह अनुमति होगी यदि उसे निवेश संबंधी सूचना जमा करने में कोई देरी होती है तो वह शुल्क का भुगतान करके इसके नियमों उल्लंघन करने से बचाव कर सकता है।
  • यदि इस संबंध में रिपोर्ट को समय पर जमा नहीं किया जाता तो ज़िम्मेदार व्यक्ति अथवा संस्थान को लेट सबमिशन फी का भुगतान करना होगा जिसका निर्धारण केंद्र सरकार से विचार-विमर्श के बाद रिज़र्व बैंक द्वारा किउया जाएगा।
  • इसका प्रभाव व्यापक होगा क्योंकि अब तक रिज़र्व बैंक के पास जो भी उल्लंघन संबंधी मामले आते थे उनमें 60-70% मामले रिपोर्टिंग में हुई देरी के ही होते थे।
  • इसके अतिरिक्त, गैर- प्रवासी भारतीय से किसी गैर- प्रवासी को किया गया निवेश स्वचालित मार्ग के तहत लाया जाएगा और इसे दर्ज किया जाएगा। रिज़र्व बैंक को इससे संबंधित अनेक आवेदन प्राप्त हो रहे थे अतः इसने यह निर्णय लिया कि ऐसे निवेशों के लिये विनियामक की पूर्वानुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।

फेमा क्या है?

  • आर्थिक सुधारों तथा उदारीकृत परिदृश्‍य के प्रकाश में फेरा को एक नए अधिनियम द्वारा प्रतिस्‍थापित किया गया था, इसी को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) 1999 कहा जाता है।
  • यह अधिनियम भारत में निवासी किसी व्‍यक्ति के स्‍वामित्‍वाधीन या नियंत्रण में रहने वाली भारत के बाहर की सभी शाखाओं, कार्यालयों तथा प्राधिकरणों पर लागू होता है।
  • फेमा की शुरुआत एक निवेशक अनुकूल विधान के रूप में की गई थी परन्तु यह एक अर्थ में पूर्णतया सिविल विधान है क्योंकि इसके उल्‍लघंन में केवल मौद्रिक शास्तियों तथा अर्थदंड का आसान विदेशी मुद्रा भुगतान करना ही शामिल है।
  • इसके तहत किसी व्‍यक्ति को सिविल कारावास का दंड तभी दिया जा सकता है यदि वह नोटिस मिलने की तिथि से 90 दिन के भीतर निर्धारित अर्थदंड का भुगतान न करे परन्तु यह दंड भी उसे कारण बताओ नोटिस तथा वैयक्तिक सुनवाई की औपचारिकताओं के पश्‍चात् ही दिया जा सकता है।
  • फेमा को एक कठोर कानून (यानी फेरा) से उद्योग अनुकूल विधान अपनाने के लिये उपलब्ध कराई गई संक्रमण अवधि माना जा सकता है।
  • फेमा में केवल अधिकृत व्‍यक्तियों को ही विदेशी मुद्रा या विदेशी प्रतिभूति में लेनदेन करने की अनुमति दी गई है। अधिनियम के अंतर्गत, ऐसे अधिकृत व्‍यक्ति का अर्थ अधिकृत डीलर, मनी चेंजर, विदेशी बैंकिंग यूनिट या कोई अन्‍य व्‍यक्ति जिसे उसी समय रिजर्व बैंक द्वारा प्राधिकृत किया गया हो, से है।
  • फेमा के मुख्य उद्देश्‍य हैं:

→ विदेशी व्यापार तथा भुगतानों को आसान बनाना
→ विदेशी मुद्रा बाजार का अनुरक्षण और संवर्धन करना।

आसान विदेशी मुद्रा

Foreign Exchange

देश के पास विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। रुपये की कीमत में गिरावट आ रही है। साथ ही देश का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। यह सभी बातें आपस में कैसे जुडी हुई हैं? इनमें परिवर्तन होने पर हमारी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है? चलिए इस पूरे मुद्दे को समझते हैं।

विदेशी मुद्रा भंडार

दरअसल विदेशी मुद्रा भंडार में केंद्रीय बैंक, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं। इनमें विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ(FCA), स्वर्ण भंडार, विशेष आहरण अधिकार (SDR) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ रिज़र्व ट्रेंच शामिल होती हैं। जरूरत पड़ने पर विदेशी मुद्रा भंडार से विदेशी ऋण का भुगतान आसानी से किया जा सकता है।

पिछले कुछ महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार में यह गिरावट पिछले 10 महीनों से आ रही है। अगस्त 2021 के अंत में हमारे केंद्रीय बैंक के पास 640.70 अरब डालर विदेशी मुद्रा भंडार आसान विदेशी मुद्रा था, जोकि जून 2022 के अंत में गिर कर 588.31 अरब डॉलर हो गया है। विदेशी मुद्रा भंडार पिछले 14 महीनों आसान विदेशी मुद्रा के निम्न स्तर पर है। जैसा कि निचे चित्र दिखया गया है।

देश के पास ज्यादातर विदेशी मुद्रा भंडार, विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति(FCA) के रूप में ही होता है। यह परिसंपत्तियां एक या एक से अधिक मुद्रा के रूप में भी हो सकती है। लेकिन इन विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों का मूल्यांकन डॉलर में ही किया जाता है। अगस्त 2021 के अंत में देश के पास 578.41 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां थी जोकि मौजूदा समय में घटकर 524.74 अरब डॉलर हो गयी है।

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने का असर रुपये की कीमत पर पड़ता है। विदेशी मुद्रा भंडार कम होने पर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में भी कमी आएगी जैसा कि मौजूदा समय में देखा जा रह है। कल सोमवार को रुपये की कीमत गिर कर 79.43 रुपये प्रति डॉलर के निम्न स्तर पर आ गयी है। रुपये के गिरने पर भारत द्वारा किये जाने वाले वस्तुओं के आयात मूल्य में वृद्धि आसान विदेशी मुद्रा हो जाएगी और निर्यात मूल्य में कमी आएगी क्योंकि रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले कम हो रही है। जिसके कारण व्यापार घाटा बढ़ेगा जैसा कि मौजूदा समय में देखा गया है। जून के महीने में व्यापार घाटा बढ़कर अब तक के रिकार्ड स्तर 25.6 अरब डॉलर हो गया है।

हालांकि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने सोमवार को रुपये की कीमत को स्थिर रखने के लिए कुछ देशों जैसे रूस और श्रीलंका के साथ व्यापार रुपये में करने की अनुमति दे दी है, जिससे काफी हद तक रुपये की कीमत पर असर पड़ेगा। क्योंकि भारत सबसे ज्यादा कच्चे तेल का आयात करता है। रूस तेल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है।

भारत तेल की कुल आपूर्ति का बड़ा हिस्सा रूस से आयात करता है। ऐसा संभव हो सकता है कि रूस के साथ रुपये में व्यापार करने पर रुपये की कीमत में और गिरावट न आए और विदेशी मुद्रा भंडार पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़े। लेकिन भारत को अब भी यूरोप और एशिया के कई देशों के साथ डॉलर में ही व्यापार करना होगा।

विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने पर रुपये की कीमत में मजबूती आती है। जिसके परिणामस्वरूप देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और रुपये की कीमत में स्थिरता बनी रहती है। साथ ही विदेश में निवेश करने वाले लोगों को भी बहुत ज्यादा फायदा पहुँचता है।

RBI Action: वैश्विक मंदी की अटकलों के बीच विदेशी मुद्रा लाने के नियम किए गए आसान, चिंता में क्यों है आरबीआइ

RBI action to boost indian economy वैश्विक मंदी की अटकलों के बीच आरबीआइ ने बड़े फैसले लिए हैं। आरबीआइ (Reserve Bank of India) ने देश में विदेशी मुद्रा लाने के नियमों को आसान बना दिया है। जानें क्‍यों चिंतित है केंद्रीय रिजर्व बैंक.

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। डालर के मुकाबले लगातार रुपये की घटती कीमत, देश में बढ़ते कारोबार घाटे (निर्यात के मुकाबले आयात पर ज्यादा खर्च) और वैश्विक मंदी की अटकलों के बीच आरबीआइ ने आसान विदेशी मुद्रा देश में विदेशी मुद्रा लाने के नियमों को आसान बना दिया है। केंद्रीय बैंक ने इस बारे में पांच अहम कदम उठाकर पहली बार यह संकेत दिया है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) द्वारा भविष्य में भी पैसा निकाले जाने की संभावना है और इससे रुपये की कीमत और गिरावट आ सकती है।

Banks Auto Debit Facility features and benefits (Jagran File Photo)

चिंता में क्यों हैं आरबीआइ

1-चालू वित्त वर्ष डालर के मुकाबले रुपया 4.1 प्रतिशत गिरा

2-अप्रैल-जून की तिमाही में 61 अरब डालर का हुआ कारोबारी घाटा

3-शेयर बाजार से बाहर निकल रहे हैं विदेशी संस्थागत निवेशक

4-विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 593 अरब डालर पर आया

SBI raises Rs 10000 cr from maiden infra bonds (Jagran File Photo)

ईसीबी से कर्ज लेने की सीमा को किया दोगुना

यह भी आश्चर्यजनक है कि अभी कुछ समय पहले तक कारपोरेट घरानों की तरफ से वाह्य वाणिज्यिक कर्ज (ईसीबी) को लेकर बहुत उत्साह नहीं दिखाने वाले आरबीआइ ने अब ईसीबी से कर्ज लेने की सीमा को दोगुना कर दिया है।

केंद्रीय बैंक द्वारा उठाए गए कदम

  • विदेशों से ज्यादा कर्ज ले सकेंगे कारपोरेट
  • घरेलू ऋण बाजार में ज्यादा निवेश कर सकेंगे विदेशी निवेशक
  • प्रवासी भारतीयों से विदेशी मुद्रा में ज्यादा जमा जुटा सकेंगे बैंक

घरेलू मुद्रा बाजार को बचाकर आसान विदेशी मुद्रा रखने के निर्देश

IRCTC Indian Railway Train Cancelled Today Full list in Hindi (Jagran File Photo)

केंद्रीय बैंक ने यह भी कहा है कि वह पूरे हालात पर नजर रखे है और उसकी पूरी कोशिश आसान विदेशी मुद्रा है कि वैश्विक स्तर पर जो हालात बन रहे हैं उससे घरेलू मुद्रा बाजार को बचाकर रखा जा सके। जो उपाय किए गये हैं उसमें बैंकों को प्रवासी भारतीयों से ज्यादा से ज्यादा विदेशी मुद्रा में जमा राशि जुटाने को कहा गया है।

बैंकों को दिया सुझाव

अभी प्रवासी भारतीयों के लिए लागू विदेशी मुद्रा वाली जमा स्कीमों (एफसीएनआरबी) के तहत बैंक कितनी ब्याज दर दे सकते हैं इसको लेकर सख्त नियम लागू है। इन स्कीमों के तहत जमा की परिपक्वता अवधि के हिसाब से कितना ब्याज दिया जा सकता है, इसकी सीमा तय की गई है। अब केंद्रीय बैंक ने बैंकों से कहा है कि वो 31 अक्टूबर, 2022 तक ब्याज दरों की उक्त सीमा के इतर जमा राशि आकर्षित कर सकते हैं।

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एफपीआइ के लिए खोले दरवाजे

इसी तरह से ऋण बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआइ) के लिए निवेश के दरवाजे और खोल दिए गए हैं। अभी एफपीआइ के लिए कंपनियों के ऋण प्रपत्रों में कम से कम एक वर्ष के लिए निवेश करने की शर्त लागू है। इस नियम को बदलते हुए केंद्रीय बैंक ने कहा है कि एफपीआइ कारपोरेट ऋण प्रपत्रों के तहत कमर्शियल पेपर, गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर्स (एनसीडी) आदि में एक वर्ष से कम अवधि के लिए भी निवेश कर सकते हैं।

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निवेश की शर्तें की आसान

सरकारी प्रतिभूतियों में भी एफपीआइ के लिए निवेश की मौजूदा शर्त को आसान कर दिया गया है। अभी इस श्रेणी में एक वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले प्रपत्रों में एफपीआइ के कुल निवेश का 30 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा नहीं लगाया जा सकता। अब इस नियम को हटा दिया गया है यानी अब एफपीआइ ज्यादा राशि सरकारी प्रतिभूतियों में कम अवधि के लिए भी निवेश कर सकेंगे।

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कंपनियों को अब विदेश से डेढ़ अरब डालर तक लेने की छूट

एक अहम फैसला ईसीबी को लेकर किया गया है। अभी कंपनियों को आटोमोटिक रूट के जरिये विदेश से 75 करोड़ डालर लेने की छूट है। इस सीमा को बढ़ाकर 1.5 अरब डालर कर दिया गया है। ईसीबी के तहत पहली बार भारतीय कंपनियों को विदेशों से इतनी बड़ी मात्रा में कर्ज लेने की छूट मिली है। यह नियम 31 दिसंबर, 2022 तक लागू होगी। इसके अलावा बैंकों से कहा गया है कि वे भी विदेशों से ज्यादा कर्ज ले सकेंगे ताकि जो कंपनियां ईसीबी से सीधे उधारी नहीं ले सकते हैं, उन्हें वो ज्यादा विदेशी मुद्रा में कर्ज दे सकें। यह नियम 31 अक्टूबर, 2022 तक लागू होगा।

Uniparts India IPO subscription status know full deatils in hindi (Jagran File Photo)

केंद्रीय बैंक ने कहा, विकास संभावनाओं पर नहीं पड़ेगा कोई असर

इन नियमों को लागू करते हुए आरबीआइ ने कहा है कि वैश्विक स्तर पर मंदी के बादल छाए हैं। वित्तीय बाजार में जोखिम बढ़ा है और उभरती बाजार की अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर लगातार गिरावट का दबाव है। केंद्रीय बैंक भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर सकारात्मक है और मानता है कि भारत की विकास संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ा है। हालांकि बढ़ते कारोबारी घाटे और चालू खाता घाटे का बढ़ता स्तर चिंताजनक है। यह भी कहा है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 593.3 अरब डालर है। डालर के मुकाबले रुपया बुधवार को 79.30 के स्तर पर बंद हुआ है।

भारत में विदेशी मुद्रा भंडार 2.9 अरब डॉलर बढ़कर 550.14 अरब डॉलर पर

देश का विदेशी मुद्रा भंडार में 25 नवंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान लगातार तीसरे हफ्ते बढ़त में रहा

भारत में विदेशी मुद्रा भंडार 2.9 अरब डॉलर बढ़कर 550.14 अरब डॉलर पर

देश का विदेशी मुद्रा भंडार में 25 नवंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान लगातार तीसरे हफ्ते बढ़त में रहा. सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार 2.9 अरब डॉलर बढ़कर 550.14 अरब डॉलर पर पहुंच गया. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने शुक्रवार को यह जानकारी दी.

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आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 18 नवंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.54 अरब डॉलर बढ़कर 547.25 अरब डॉलर पर पहुंच गया था. अगस्त, 2021 के बाद देश के विदेशी मुद्रा भंडार में इस सप्ताह सबसे तेज वृद्धि हुई है.

गौरतलब है कि अक्टूबर, 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया था. वैश्विक घटनाक्रमों के बीच केंद्रीय बैंक के रुपये की विनियम दर में तेज गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा भंडार का आसान विदेशी मुद्रा उपयोग करने की वजह से इसमें कमी आई है.

केंद्रीय बैंक ने कहा कि कुल मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा माने जाने वाली विदेशी मुद्रा आस्तियां (एफसीए) 25 नवंबर को समाप्त सप्ताह में तीन अरब डॉलर बढ़कर 484.28 अरब डॉलर हो गईं.

इसके अलावा स्वर्ण भंडार का मूल्य आलोच्य सप्ताह में 7.3 करोड़ डॉलर की गिरावट के साथ 39.938 अरब डॉलर रह गया.

आंकड़ों के अनुसार, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 2.5 करोड़ डॉलर घटकर 17.88 अरब डॉलर रह गया. आंकड़ों के अनुसार, समीक्षाधीन सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में रखा देश का मुद्रा भंडार भी 1.4 करोड़ डॉलर घटकर 5.03 अरब डॉलर रह गया.

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