भग्न संरचना

रनीश एवं हिमांशु साह
भुगतान और निपटान प्रणाली पर समिति (CPSS)
भुगतान और भग्न संरचना निपटान प्रणाली पर समिति (CPSS) G10 देशोंके केंद्रीय बैंकों से बनीएक समिति थी जोकुशल भुगतान और निपटान प्रणाली में योगदान करने भग्न संरचना और एक मजबूत बाजार बनाने के प्रयास में भुगतान, निपटान, और समाशोधन प्रणालियों की निगरानी करती थी। आधारिक संरचना।सीपीएसएस का नाम बदलकर 2014 में फिर से जोड़ा गया और पेमेंट्स एंड मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर (सीपीएमआई) की समिति बनी।
चाबी छीन लेना
- भुगतान और निपटान प्रणाली (CPSS) समिति G10 देशों के केंद्रीय बैंकों की एक समिति थी।
- सीपीएसएस ने भुगतान और निपटान में विकास की निगरानी की, और कुशल भुगतान और निपटान प्रणाली में योगदान के लक्ष्य के साथ सिस्टम को साफ किया।
- 2014 में, भुगतान और मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर (CPMI) की समिति बनने के लिए CPSS का नाम बदल दिया गया और इसे फिर से जोड़ा गया।
भुगतान और निपटान प्रणाली पर समिति (CPSS) को समझना
जून 2014 में, ग्लोबल इकोनॉमी मीटिंग (GEM) के गवर्नर्स में, सदस्यों ने भुगतान और निपटान प्रणाली (CPSS) पर समिति का नाम बदलने के साथ-साथ इसके भग्न संरचना जनादेश और चार्टर को अद्यतन करने के लिए चुना, ताकि अधिक बारीकी से संरेखित किया जा सके। सीपीएसएस की वास्तविक गतिविधियों के साथ नाम, जनादेश और चार्टर।इसे अबCPMI के रूप में जाना जाता है।
सीपीएसएस 1990 में बनाया गया था;इसकी देखरेख ग्लोबल इकोनॉमी मीटिंग (GEM) द्वारा की गई और इसके सचिवालय को बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स द्वारा भग्न संरचना होस्ट किया गया। इसका इतिहास 1930 के दशक तक फैला हुआ है।
सीपीएसएस ने आवश्यक समूहों द्वारा विशिष्ट अध्ययनों के माध्यम से अपना काम किया, जैसा कि आवश्यक था, और अपने निष्कर्षों पर रिपोर्ट प्रकाशित की। समिति भग्न संरचना ने कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों के साथ संबंध बनाकर जी 10 देशों के बाहर भी अपना काम बढ़ाया।
सर्दियों में घूमने के लिए बेहतरीन जगह है 'दक्षिण भारत के आगरा' नाम से मशहूर बीजापुर
बीजापुर भग्न संरचना में स्थित इब्राहिम रोजा मकबरे को देखकर भग्न संरचना ही ताजमहल बनाने की प्रेरणा ली गई थी। यहां मकर संक्राति पर भारी भीड़ जुटती है। तो आज चलते हैं इसके ऐतिहासिक-सांस्कृतिक सफर पर.
बेंगलुरु से करीब 530 किलोमीटर दूर स्थित कर्नाटक राज्य के जिला बीजापुर का प्राचीन नाम विजयपुर है। आदिल वंश की राजधानी रहे इस शहर का इतिहास अपने स्वर्णिम अतीत की याद दिलाता है। कन्नड़ भाषा बोलता यह शहर पर्यटकों का भरपूर स्वागत करता है। साफ-सुथरी सड़कों और भग्न संरचना मुगलकालीन स्थापत्य कला वाले इस शहर में नवंबर से फरवरी के बीच र्यटन के मद्देनजर मौसम खुशगवार रहता है।
क्यों है दक्षिण भारत का आगरा?
In Pics: सरगुजा के महेशपुर में खुदाई के दौरान मिले प्राचीन मूर्तियां और मंदिरों के अवशेष, देखें तस्वीरें
छत्तीसगढ़ में पुरातात्विक महत्व की कई ऐतिहासिक, प्रसिद्ध जगहें मौजूद हैं. उनमें से एक सरगुजा का महेशपुर है. विश्व की सबसे प्राचीन नाट्यशाला और अभिलेख के लिए विख्यात रामगढ़ के पास रेण नदी के तटवर्ती क्षेत्र में 8वीं सदी ईसवी से 13वीं सदी ईसवी के मध्य की कला संस्कृति का अभूतपूर्व उन्नति हुआ है. प्राचीन समय के टूटे-फूटे अवशेष सरगुजा भग्न संरचना जिले के महेशपुर और कलचा-देवगढ़ तक फैली हुई हैं. शैव, वैष्णव और जैन धर्म से संबंधित कलाकृतियां और प्राचीन टीलों की संख्या की दृष्टि से महेशपुर पुरातात्त्विक दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण है.
अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत है- कटारमल सूर्य मंदिर
रनीश एवं हिमांशु साह
कटारमल का सूर्य मंदिर-उत्तर भारत की मध्य कालीन वास्तुकृतियों में विशिष्ट स्थान रखता है। अल्मोड़ा नगर से 13 किमी की दूरी पर बसे कोसी कस्बे से डेढ़़ किमी0 की पैदल चढ़ाई चढ़ कर अथवा कोसी बाजार से लगभग दो किमी आगे से मोटर मार्ग से भी कटारमल पहॅुचा जा सकता है जहां एक टीले पर सूर्य मंदिर समूह स्थित है। इसे बड़ा आदित्य भी कहा जाता है।
कटारमल के सूर्य मंदिर का नाम उत्तर भारत के सूर्य उपासकों में ही नहीं अन्य मतावलम्बियों में भी बड़ी श्रद्धा के साथ लिया जाता है। मध्यकाल की वास्तुकला और स्थापत्य के प्रतीक मूल मंदिर को आठवीं, नवी शती के मध्य बनवाया गया था। कुमाऊँ के सांस्कृतिक इतिहास में इस मंदिर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस क्षेत्र में कत्यूरियों का उदय एक शक्तिशाली राजवंश के रूप में हुआ। उन्होंने न केवल अपनी तलवार के बल पर एक विशाल राजवंश की नींव रख उसका विस्तार किया अपितु उन्हानें मूर्तिकला और देवालय निर्माण के प्रति भग्न संरचना भी अभूतपर्व रूचि प्रदर्शित की। जागेश्वर तथा भग्न संरचना बैजनाथ मंदिर कत्यूरियों के काल में ही बने जिनकी मूर्तिकला और मंदिर निर्माण शैली भग्न संरचना भी दर्शनीय है। उनके काल में सूर्य सहित विभिन्न सम्प्रदायों के अनेकों मंदिरों का निर्माण हुआ।