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अधीर व्यापारियों के लिए

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Buy Fresenius SE & Co KGaA Shares - FRE

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#D-FRE - ट्रेडिंग शर्तें Fresenius SE & Co KGaA स्टॉक CFDs

OptionsStandard-Fixed & FloatingBeginner-Fixed & FloatingDemo-Fixed & Floating
फिक्स्ड स्प्रेड इन पिप्स 4 4 4
Floating Spread
in pips
4 4 4
आर्डर डिस्टेंस इन पिप्स 8 8 8
स्वैप इन पिप्स
(लॉन्ग/शार्ट)
-0.33 / अधीर व्यापारियों के लिए -0.10 -0.33 / -0.10 -0.33 / -0.10
Available
volumes
>=1.00 stock >=1.00 stock >=1.00 stock
अनुबंध आकार 1 stock 1 stock 1 stock
लोट साइज -/- -/- -/-
1 पिप मूल्य
पर 1 STOCK
0.01 EUR 0.01 EUR 0.01 EUR
Options Standard-Fixed Micro-Fixed Demo-Fixed PAMM-Fixed
फिक्स्ड स्प्रेड इन पिप्स 4 4 4 0
आर्डर डिस्टेंस इन पिप्स 8 8 8 8
स्वैप इन पिप्स
(लॉन्ग/शार्ट)
-0.33 / -0.10 -0.33 / -0.10 -0.33 / -0.10 -0.33 / -0.10
Available
volumes
0.01 – 10000 lot 0.01 – 10000 lot 0.01 – 10000 lot 0.01 – 10000 lot
अनुबंध आकार 1 stock 1 stock 1 stock 1 stock
लोट साइज 100 contr. 100 contr. 100 contr. 100 contr.
1 पिप मूल्य
पर 1 lot
1 EUR 1 EUR 1 EUR 1 EUR
Options Standard-Floating Micro-Floating Demo-Floating PAMM-Floating
Floating Spread
in pips
4 4 4 4
आर्डर डिस्टेंस इन पिप्स 8 8 8 8
स्वैप इन पिप्स
(लॉन्ग/शार्ट)
-0.33 / -0.10 -0.33 अधीर व्यापारियों के लिए / -0.10 -0.33 / -0.10 -0.33 / -0.10
Available
volumes
0.01 – 10000 lot 0.01 – 10000 lot 0.01 – 10000 lot 0.01 – 10000 lot
अनुबंध आकार 1 stock 1 stock 1 stock 1 stock
लोट साइज 100 contr. 100 contr. 100 contr. 100 contr.
1 पिप मूल्य
पर 1 lot
1 EUR 1 EUR 1 EUR 1 EUR

आप कमीशन आकार देख सकते हैं कमीशन तालिका

लाभांश की तारीखों

आवधिकता घोषणा तारीख एडजस्टमेंट
दिनांक
रिकॉर्ड डेट Payment date डिविडेंड
एडजस्टमेंट
22.02.2022 16.05.2022 17.05.2022 13.06.2022 0.66 EUR

आय कैलेंडर

Q1 Q2 Q3 Q4
04.05.2022 02.08.2022 01.11.2022

ट्रेड शेयर CFDs और IFC मार्केट्स के साथ CFD ट्रेडिंग के लाभों की खोज

  • MetaTrader4 & MetaTrader5 -1:20 लिवरेज (मार्जिन 5%)
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  • खुले CFD पदों के धारकों लाभांश समायोजन लाभांश भुगतान राशि के बराबर प्राप्त करते हैं।
  • अधिक जानकारी के लिए " शेयर CFDs लाभांश की तिथियां " पेज।

ट्रेडिंग हॉर्स FRE

Fresenius SE & Co KGaA

Fresenius SE & Co KGaA उत्पादों और अधीर और अधीर चिकित्सा देखभाल के लिए सेवाएं प्रदान करता है और भी अस्पताल प्रबंधन और चिकित्सा केन्द्रों के इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता है. कंपनी 1912 में स्थापित किया गया था और बुरा Homburg, जर्मनी में मुख्यालय है.

कैसे खरीदें Fresenius SE & Co KGaA स्टॉक

Fresenius SE & Co KGaA स्टॉक खरीदने के लिए व्यापारियों को इन चरणों का पालन करना चाहिए:

  • Fresenius SE & Co KGaA स्टॉक में कितना निवेश करें:तय कितना Fresenius SE & Co KGaA शेयर में निवेश करने के लिए. क्या आप खोने के लिए तैयार कर रहे हैं की तुलना में अधिक निवेश कभी नहीं.
  • खाता खोलें:खाता खोलने के लिए आपको जाना चाहिए'खाता खोलें' पेज और फॉर्म के सभी आवश्यक फ़ील्ड भरें.
  • खरीदें Fresenius SE & Co KGaA स्टॉक ट्रेडिंग प्लेटफार्म का उपयोग कर:Aखाता खोलने के बाद आप MetaTrader या NetTradeX ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म का उपयोग करके Fresenius SE & Co KGaA शेयरों CFDs व्यापार कर सकते हैं।

FRE स्टॉक उद्धरण

रियल-टाइम उद्धरण व्यापारियों को शेयरों के व्यापार के लिए प्रभावी कीमतों का विश्लेषण करने और ठीक करने में मदद करते हैं। देखें FRE शेयर बोली (पिछले, बंद, खोलने, उच्च और कम कीमतों) और हमारे साथ व्यापार शुरू.

मोदी राज की मेहरबानी- अमीरों के 3 लाख करोड़ लोन माफ़ हुए, मंत्री ने ट्वीट तक नहीं किया

मोदी सरकार के चार सालों में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ के लोन माफ़ किए हैं. यह भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना है. सख़्त और ईमानदार होने का दावा करने वाली मोदी सरकार में तो लोन वसूली ज़्यादा होनी चाहिए थी, मगर हुआ उल्टा. एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई. The post मोदी राज की मेहरबानी- अमीरों के 3 लाख करोड़ लोन माफ़ हुए, मंत्री ने ट्वीट तक नहीं किया appeared first on The Wire - Hindi.

मोदी सरकार के चार सालों में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ के लोन माफ़ किए हैं. यह भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना है. सख़्त और ईमानदार होने का दावा करने वाली मोदी सरकार में तो लोन वसूली ज़्यादा होनी चाहिए थी, मगर हुआ उल्टा. एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली (फोटो: पीटीआई )

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली (फोटो: पीटीआई )

मोदी राज के चार साल में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ रुपये के लोन माफ कर दिए हैं. क्या वित्त मंत्री ने आपको बताया कि उनके राज में यानी अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच तीन लाख करोड़ रुपये के लोन माफ किए गए हैं?

यही नहीं इस दौरान बैंकों को डूबने से बचाने के लिए सरकार ने अपनी तरफ से हज़ारों करोड़ रुपये बैंकों में डाले हैं, जिस पैसे का इस्तेमाल नौकरी देने में खर्च होता, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा देने में खर्च होता वो पैसा चंद उद्योगपतियों पर लुटा दिया गया.

इंडियन एक्सप्रेस में अनिल ससी की यह ख़बर पहली ख़बर के रूप में छापी गई है. भारत का स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा का जो कुल बजट है उसका दोगुना लोन बैंकों ने माफ कर दिया.

2018-19 में इन तीनों मद के लिए बजट में 1 लाख 38 हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है. अगर लोन वसूल कर ये पैसा स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर ख़र्च होता तो समाज पहले से कितना बेहतर होता.

अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच बैंकों ने मात्र 44,900 करोड़ रुपये की वसूली की है. बाकी सब माफ. इसे अंग्रेज़ी में राइट ऑफ कहते हैं. ये आंकड़ा भारतीय रिज़र्व बैंक का है.अधीर व्यापारियों के लिए अधीर व्यापारियों के लिए

जबकि भाजपा ने अप्रैल महीने में ट्वीट किया था कि 2016 में इन्सॉलवेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के कारण 4 लाख करोड़ रुपये लोन की वसूली की गई है. रिज़र्व बैंक का डेटा कहता है कि 44,900 करोड़ रुपये की वसूली हुई है.

उस वक्त भी पत्रकार सन्नी वर्मा ने अपनी रिपोर्ट में इस बोगस दावे का पर्दाफाश किया था. जबकि हकीकत यह है कि मोदी राज में जितनी वसूली हुई है उसका सात गुना तो माफ कर दिया गया.

गनीमत है कि इस तरह की खबरें हिन्दी के अखबारों में नहीं छापी जाती हैं इसलिए जनता का एक बड़ा हिस्सा इन अखबारों के ज़रिए बेवकूफ बन रहा है.

तभी मैं कहता हूं कि हिन्दी के अखबार हिन्दी पाठकों की हत्या कर रहे हैं. उनके यहां बेहतरीन पत्रकारों की फौज है मगर ऐसी ख़बरें होती ही नहीं जिनमें सरकार की पोल खोली जाती हो.

मोदी सरकार के मंत्री एनपीए के सवाल पर विस्तार से नहीं बताते हैं. बस इस पर ज़ोर देकर निकल जाते हैं कि ये लोन यूपीए के समय के हैं. जबकि वो भी साफ-साफ नहीं बताते कि 7 लाख करोड़ के एनपीए में से यूपीए के समय का कितना हिस्सा है और मोदी राज के समय का कितना हिस्सा है.

भक्तों की टोली भी झुंड की तरह टूट पड़ती है कि एनपीए तो यूपीए की देन है. क्या हमारा आपका लोन माफ होता है? फिर इन उद्योगपतियों का लोन कैसे माफ हो जाता है?

पांच साल से उद्योगपति चुप हैं. वे कुछ नहीं बोलते हैं. नोटबंदी के समय भी नहीं बोले. उद्योगपति चुप इसलिए कि उनके हज़ारों लाखों करोड़ के लोन माफ हुए हैं? तभी वे जब भी बोलते हैं, मोदी सरकार की तारीफ़ करते हैं.

कायदे से मोदी राज में तो लोन वसूली ज्यादा होनी चाहिए थी. वो तो सख़्त और ईमानदार होने का दावा करती है. मगर हुआ उल्टा. एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई.

21 सरकारी बैंकों ने संसद की स्थायी समिति को जो डेटा सौंपा है उसके अनुसार इनकी लोन रिकवरी रेट बहुत कम है, जितना लोन दिया है उसका मात्र 14.2 प्रतिशत लोन ही रिकवर यानी वसूल हो पाता है.

अब आप देखिए. मोदी राज में एनपीए कैसे बढ़ रहा है. किस तेज़ी से बढ़ रहा है. 2014-15 में एनपीए 4.62 प्रतिशत था जो 2015-16 में बढ़कर 7.79 प्रतिशत हो गया.

दिसंबर 2017 में एनपीए 10.41 प्रतिशत हो गया. यानी 7 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपये.

इस राशि का मात्र 1.75 लाख करोड़ रुपये नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में गया है. यह जून 2017 तक का हिसाब है. उसके बाद 90,000 करोड़ रुपये का एनपीए भी इस पंचाट में गया. यहां का खेल भी हम और आप साधारण लोग नहीं समझ पाएंगे.

इस ख़बर में बैंक के किसी अधिकारी ने कहा है कि लोन को माफ करने का फैसला बिजनेस के तहत लिया गया होता है. भाई तो यही फैसला किसानों अधीर व्यापारियों के लिए के लोन के बारे में क्यों नहीं करते हैं?

जिनकी नौकरी जाती है, उनके हाउस लोन माफ करने के लिए क्यों नहीं करते हो? ज़ाहिर है लोन माफ करने में सरकारी बैंक यह चुनाव ख़ुद से तो नहीं करते होंगे.

एनपीए का यह खेल समझना होगा. निजीकरण की वकालत करने वाली ये प्राइवेट कंपनियां प्राइवेट बैंकों से लोन क्यों नहीं लेती हैं? सरकारी बैंकों को क्या लूट का खजाना समझती हैं?

क्या आप जानते हैं कि करीब 8 लाख करोड़ रुपये का एनपीए कितने उद्योगपतियों या बिजनेस घरानों का है? गिनती के सौ भी नहीं होंगे. तो इतने कम लोगों के हाथ में 3 लाख करोड़ रुपये जब जाएगा तो अमीर और अमीर होंगे कि नहीं.

जनता का पैसा अगर जनता में बंटता तो जनता अमीर होती. मगर जनता को हिंदू-मुस्लिम और पाकिस्तान दे दो और अपने यार बिजनेसमैन को हज़ारों करोड़.

यह खेल आप तब तक नहीं समझ पाएंगे जब तक खुद को भक्त मुद्रा में रखेंगे. मोदी राज के चार साल में 3 लाख 16 हज़ार करोड़ रुपये का लोन माफ हुआ है. यह लोन माफी जनता की नहीं हुई है.

एनपीए के मामले में मोदी सरकार बनाम यूपीए सरकार खेलने से पहले एक बात और सोच लीजिएगा. इस खेल में आप उन्हें तो नहीं बचा रहे हैं जिन्हें 3 लाख करोड़ रुपये मिला है? ये समझ लेंगे तो गेम समझ लेंगे.

(यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा पर प्रकाशित हुआ है.)

देश दुनियां – राष्ट्रपति मुर्मू को पत्र लिखकर अधीर रंजन ने मांगी माफी, जानें पत्र में क्या लिखा?

नई दिल्ली, 29 जुलाई: कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर माफी मांगी है। उन्होंने कहा कि यह स्लिप ऑफ टंग था। मैं आपसे माफी मांगता हूं और आपसे इसे स्वीकार करने का अनुरोध करता हूं। दरअसल, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने बीते बुधवार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को मीडिया से बातचीत में ‘राष्ट्रपत्नी’ कहकर संबोधित किया था। जिसके बाद संसद में काफी हंगामा देखने को मिला था।

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे अपने पत्र में कहा कि, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मेरी जुबान फिसल गई थी। मैं माफी मांगता हूं और आपसे इसे स्वीकार करने का अनुरोध करता हूं। अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बारे में की गई अपनी एक टिप्पणी पर स्पष्टीकरण देते हुए गुरुवार को कहा कि उनसे गलती हो गई क्योंकि वह हिंदी भाषा बहुत अच्छी तरह नहीं जानते। चौधरी ने यह भी कहा था कि उन्होंने राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगा है और उनसे मिलकर माफी मांगेंगे।

वहीं मीडिया से बातचीत में अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति के लिए ”राष्ट्रपत्नी” शब्द का इस्तेमाल किया था। कांग्रेस नेता ने बयान पर सफाई देते हुए कहा था कि ”चूकवश” उनके मुंह से यह शब्द निकल गया था जबकि बीजेपी ने इसे कांग्रेस नेता की तरफ से जानबूझकर राष्ट्रपति का किया गया अपमान बताया। बीजेपी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से इसके लिए देश व राष्ट्रपति से माफी मांगने की मांग की।

चौधरी ने कहा, ‘देश का राष्ट्रपति जो भी हो, चाहे वह ब्राह्मण हो, या आदिवासी, हमारे लिए राष्ट्रपति हैं। पद की गरिमा का पूरा सम्मान है। कल पत्रकारों से बातचीत में यह शब्द चूकवश निकल गया। उसी समय पत्रकार ने मुझे कहा कि आप ‘राष्ट्रपति’ कहना चाहते हैं। मैंने कहा कि (यह शब्द) चूकवश निकल गया, इसे नहीं दिखाएंगे तो बेहतर होगा। इसके बाद भी पत्रकार ने इस वीडियो को चलाया।’

मोदी राज की मेहरबानी- अमीरों के 3 लाख करोड़ लोन माफ़ हुए, मंत्री ने ट्वीट तक नहीं किया

मोदी सरकार के चार सालों में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ के लोन माफ़ किए हैं. यह भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना है. सख़्त और ईमानदार होने का दावा करने वाली मोदी सरकार में तो लोन वसूली ज़्यादा होनी चाहिए थी, मगर हुआ उल्टा. एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई. The post मोदी अधीर व्यापारियों के लिए राज की मेहरबानी- अमीरों के 3 लाख करोड़ लोन माफ़ हुए, मंत्री ने ट्वीट तक नहीं किया appeared first on The Wire - Hindi.

मोदी सरकार के चार सालों में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ के लोन माफ़ किए हैं. यह भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना है. सख़्त और ईमानदार होने का दावा करने वाली मोदी सरकार में अधीर व्यापारियों के लिए तो लोन वसूली ज़्यादा होनी चाहिए थी, मगर हुआ उल्टा. एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली (फोटो: पीटीआई )

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली (फोटो: पीटीआई )

मोदी राज के चार साल में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ रुपये के लोन माफ कर दिए हैं. क्या वित्त मंत्री ने आपको बताया कि उनके राज में यानी अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच तीन लाख करोड़ रुपये के लोन माफ किए गए हैं?

यही नहीं इस दौरान बैंकों को डूबने से बचाने के लिए सरकार ने अपनी तरफ से हज़ारों करोड़ रुपये बैंकों में डाले हैं, जिस पैसे का इस्तेमाल नौकरी देने में खर्च होता, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा देने में खर्च होता वो पैसा चंद उद्योगपतियों पर लुटा दिया गया.

इंडियन एक्सप्रेस में अनिल ससी की यह ख़बर पहली ख़बर के रूप में छापी गई है. भारत का स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा का जो कुल बजट है उसका दोगुना लोन बैंकों ने माफ कर दिया.

2018-19 में इन तीनों मद के लिए बजट में 1 लाख 38 हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है. अगर लोन वसूल कर ये पैसा स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर ख़र्च होता तो समाज पहले से कितना बेहतर होता.

अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच बैंकों ने मात्र 44,900 करोड़ रुपये की वसूली की है. बाकी सब माफ. इसे अंग्रेज़ी में राइट ऑफ कहते हैं. ये आंकड़ा भारतीय रिज़र्व बैंक का है.

जबकि भाजपा ने अप्रैल महीने में ट्वीट किया था कि 2016 में इन्सॉलवेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के कारण 4 लाख करोड़ रुपये लोन की वसूली की गई है. रिज़र्व बैंक का डेटा अधीर व्यापारियों के लिए कहता है कि 44,900 करोड़ रुपये की वसूली हुई है.

उस वक्त भी पत्रकार सन्नी वर्मा ने अपनी रिपोर्ट में इस बोगस दावे का पर्दाफाश किया था. जबकि हकीकत यह है कि मोदी राज में जितनी वसूली हुई है उसका सात गुना तो माफ कर दिया गया.

गनीमत है कि इस तरह की खबरें हिन्दी के अखबारों में नहीं छापी जाती हैं इसलिए जनता का एक बड़ा हिस्सा अधीर व्यापारियों के लिए इन अखबारों के ज़रिए बेवकूफ बन रहा है.

तभी मैं कहता हूं कि हिन्दी के अखबार हिन्दी पाठकों की हत्या कर रहे हैं. उनके यहां बेहतरीन पत्रकारों की फौज है मगर ऐसी ख़बरें होती अधीर व्यापारियों के लिए ही नहीं जिनमें सरकार की पोल खोली जाती हो.

मोदी सरकार के मंत्री एनपीए के सवाल पर विस्तार से नहीं बताते हैं. बस इस पर ज़ोर देकर निकल जाते हैं कि ये लोन यूपीए के समय के हैं. जबकि वो भी साफ-साफ नहीं बताते कि 7 लाख करोड़ के एनपीए में से यूपीए के समय का कितना हिस्सा है और मोदी राज के समय का कितना हिस्सा है.

भक्तों की टोली भी झुंड की तरह टूट पड़ती है कि एनपीए तो यूपीए की देन है. क्या हमारा आपका लोन माफ होता है? फिर इन उद्योगपतियों का लोन कैसे माफ हो जाता है?

पांच साल से उद्योगपति चुप हैं. वे कुछ नहीं बोलते हैं. नोटबंदी के समय भी नहीं बोले. उद्योगपति चुप इसलिए कि उनके हज़ारों लाखों करोड़ के लोन माफ हुए हैं? तभी वे जब भी बोलते हैं, मोदी सरकार की तारीफ़ करते हैं.

कायदे से मोदी राज में तो लोन वसूली ज्यादा होनी चाहिए थी. वो तो सख़्त और ईमानदार होने का दावा करती है. मगर हुआ उल्टा. एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई.

21 सरकारी बैंकों ने संसद की स्थायी समिति को जो डेटा सौंपा है उसके अनुसार इनकी लोन रिकवरी रेट बहुत कम है, जितना लोन दिया है उसका मात्र 14.2 प्रतिशत लोन ही रिकवर यानी वसूल हो पाता है.

अब आप देखिए. मोदी राज में एनपीए कैसे बढ़ रहा है. किस तेज़ी से बढ़ रहा है. 2014-15 में एनपीए 4.62 प्रतिशत था जो 2015-16 में बढ़कर 7.79 प्रतिशत हो गया.

दिसंबर 2017 में एनपीए 10.41 प्रतिशत हो गया. यानी 7 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपये.

इस राशि का मात्र 1.75 लाख करोड़ रुपये नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में गया है. यह जून 2017 तक का हिसाब है. उसके बाद 90,000 करोड़ रुपये का एनपीए भी इस पंचाट में गया. यहां का खेल भी हम और आप साधारण लोग नहीं समझ पाएंगे.

इस ख़बर में बैंक के किसी अधिकारी ने कहा है कि लोन को माफ करने का फैसला बिजनेस के तहत लिया गया होता है. भाई तो यही फैसला किसानों के लोन के बारे में क्यों नहीं करते हैं?

जिनकी नौकरी जाती है, उनके हाउस लोन माफ करने के लिए क्यों नहीं करते हो? ज़ाहिर है लोन माफ करने में सरकारी बैंक यह चुनाव ख़ुद से तो नहीं करते होंगे.

एनपीए का यह खेल समझना होगा. निजीकरण की वकालत करने वाली ये प्राइवेट कंपनियां प्राइवेट बैंकों से लोन क्यों नहीं लेती हैं? सरकारी बैंकों को क्या लूट का खजाना समझती हैं?

क्या आप जानते हैं कि करीब 8 लाख करोड़ रुपये का एनपीए कितने उद्योगपतियों या बिजनेस घरानों का है? गिनती के सौ भी नहीं होंगे. तो इतने कम लोगों के हाथ में 3 लाख करोड़ रुपये जब जाएगा तो अमीर और अमीर होंगे कि नहीं.

जनता का पैसा अगर जनता में बंटता तो जनता अमीर होती. मगर जनता को हिंदू-मुस्लिम और पाकिस्तान दे दो और अपने यार बिजनेसमैन को हज़ारों करोड़.

यह खेल आप तब तक नहीं समझ पाएंगे जब तक खुद को भक्त मुद्रा में रखेंगे. मोदी राज के चार साल में 3 लाख 16 हज़ार करोड़ रुपये का लोन माफ हुआ है. यह लोन माफी जनता की नहीं हुई है.

एनपीए के मामले में मोदी सरकार बनाम यूपीए सरकार खेलने से पहले एक बात और सोच लीजिएगा. इस खेल में आप उन्हें तो नहीं बचा रहे हैं जिन्हें 3 लाख करोड़ रुपये मिला है? ये समझ लेंगे तो गेम समझ लेंगे.

(यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा पर प्रकाशित हुआ है.)

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