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प्राथमिक और द्वितीयक बाजार में क्या अंतर है

प्राथमिक और द्वितीयक बाजार में क्या अंतर है
  1. रूर औद्योगिक प्रदेश :- यह औद्योगिक प्रदेश विश्व के प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों में गिना जाता है। रूर क्षेत्र में कोयला पर्याप्त मात्रा में मिलता है, जिसके कांरण भारी उद्योगों की स्थापना में सहायता मिली है। यहाँ लौह-इस्पात तथा भारी इंजीनियरिंग उद्योग विकसित अवस्था में हैं।
  2. बेवरिया औद्योगिक प्रदेश :- इस क्षेत्र में हल्के उद्योग; जैसे इलैक्ट्रॉनिक्स का सामान, घड़ी, हौजरी, रसायन पदार्थ, शराब, खाद्य-सामग्री तथा औषधियों से संबंधित उद्योग हैं।
  3. सार प्रदेश :- यह प्रदेश सार नदी के बेसिन में फैला है। यहाँ भारी इंजीनियरिंग, लौह-इस्पात, कांच का सामान, चीनी-मिट्टी के बर्तन तथा चमड़े के सामान बनाने के केंद्र हैं। यह क्षेत्र फ्रांस तथा जर्मनी की सीमा पर लगा औद्योगिक केंद्र है।

वित्तीय बाजार क्या है? वित्तीय बाजार के प्राथमिक और द्वितीयक बाजार में क्या अंतर है कार्य और प्रकार

वित्तीय बाजार वित्तीय सम्पत्तियों जैसे अंश, बांड के सृजन एवं विनिमय करने वाला बाजार होता है। यह बचतों को गतिशील बनाता है तथा उन्हें सर्वाधिक उत्पादक उपयोगों की ओर ले जाता है। यह बचतकर्ताओं तथा उधार प्राप्तकर्ताओं के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है तथा उनके बीच कोषों को गतिशील बनाता है। वह व्यक्ति/संस्था जिसके माध्यम से कोषों का आबंटन किया जाता है उसे वित्तीय मध्यस्थ कहते हैं। वित्तीय बाजार दो ऐसे समूहों के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं जो निवेश तथा बचत का कार्य करते हैं। वित्तीय बाजार सर्वाधिक उपयुक्त निवेश हेतु उपलब्ध कोषों का आबंटन करते हैं।

वित्तीय बाजार के कार्य

(1) बचतों को गतिशील बनाना तथा उन्हें उत्पादक उपयोग में सरणित करना:- वित्तीय बाजार बचतों को बचतकर्ता से निवेशकों तक अंतरित करने को सुविधापूर्ण बनाता है। अत: यह अधिशेष निधियों को सर्वाधिक उत्पादक उपयोग में सरणित करने में मदद करते हैं।

(2) कीमत निर्धारण में सहायक :- वित्तीय बाजार बचतकर्ता तथा निवेशकों को मिलता है। बचतकर्ता कोषों की पूर्ति करत हैं जबकि कोषों की मांग करते हैं जिसके आधार पर वित्तीय सम्पत्तियों को कीमत का निर्धारण होता है।

(3) वित्तीय सम्पत्तियों को तरलता प्रदान करना :- वित्तीय बाजार द्वारा वित्तीय सम्पत्तियों के क्रय-विक्रय को सरल बनाया जाता है। इसके माध्यम से वित्तीय सम्पत्तियों को कभी भी खरीदा या बेचा जा सकता है।

(4) लेन-देन की लागत को घटाना :- वित्तीय बाजार, प्रतिभूतियों के विषय में महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराते हैं जिससे समय, प्रयासों एवं धन की बचत होती है। परिणामस्वरूप लेन-देन की लागत घट जाती है।

वित्तीय बाजार के प्रकार

वित्तीय बाजार के प्रकार

  1. मुद्रा बाजार
  2. पूंजी बाजार ।

1. मुद्रा बाजार

अवधि एक वर्ष तक की होती है। इस बाजार के प्रमुख प्रतिभागी भारतीय रिजर्व बैंक, व्यापारिक बैंक, गैर बैंकिग, वित्त कम्पनियाँ, राज्य सरकारें, म्युचुअल फंड आदि हैं। मुद्रा बाजार के महत्वपूर्ण प्रलेख निम्नलिखित हैं।

1. याचना राशि-याचना राशि का प्रयोग मुख्यत: बैंकों द्वारा उनके अस्थायी नकदी की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए प्रयोग किया जाता है ये दिन-प्रतिदिन के आधार पर एक दूसरे से ऋण लेते तथा देते है। इसका पुनभ्र्ाुगतान मांग पर देय होता है और इसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से 15 दिन तक की होती है याचना राशि पर भुगतान किए जाने वाले ब्याज की दर को याचना दर कहते है।

2. ट्रेजरी बिल- इन्हें केन्द्रीय सरकार की तरफ से भारतीय रिजर्ब बैंक द्वारा जारी किया जाता है जिनकी परिपक्व अवधि एक वर्ष से कम होती है। इन्हें अंकित मूल्य से कम पर जारी किया जाता है परन्तु भुगतान के समय अंकित मूल्य दिया जाता है। राजकोष बिल 25000 रू. के न्यूनतम मूल्य और इसके बाद बहुगुणन में प्राप्त होते हैं। यह एक विनिमय साध्य प्रलेख होते हैं जिनका स्वतन्त्रतापूर्ण हस्तान्तरण किया जा सकता है। इन्हें सुरक्षित निवेश समझा जाता है, इन पर कोर्इ ब्याज नहीं दिया जाता बल्कि कटौती पर जारी किये जाते हैं।

3. वाणिज्यिक पत्र-कम्पनियों की कार्यशील पूजी की आवश्यकता की पूर्ति हेतु वाणिज्यिक पत्र एक लोकप्रिय प्रलेख है यह एक असुरिक्षित प्रलेख प्राथमिक और द्वितीयक बाजार में क्या अंतर है है जो प्रतिज्ञा पत्र के रूप में निर्गमित किया जाता है यह प्रलेख सन् 1990 में सर्वप्रथम जारी किया गया था जिससे कि इसके माध्यम से कंपनियां अपने अल्पकालीन कोषों को उधार ले सकें यह 15 दिन से एक साल के समय तक के लिए निर्गमित किया जा सकता।

4. जमा प्रमाण पत्र-जमा प्रमाण पत्र एक अल्पकालीन प्रलेख है जो वाणिज्यिक बैंकों द्वारा एवं विशिष्ट वित्तीय संस्थानों द्वारा निर्गमित किया जाता है और जो एक पक्ष से दूसरे पक्ष को स्वतंत्रतापूर्वक हस्तांतरणीय है बचत पत्र की परिपक्वता की अवधि 91 दिन से एक साल तक की होती है यह प्रपत्र व्यक्तियों को, सहकारी संस्थाओं और कम्पनियों को निर्गमित किए जा सकते है।

5. व्यापारिक विपत्र-: यह एक विनिमय प्रपत्र होता है जो व्यावसायिक फर्मों की कार्य पूंजी की आवश्यकता के लिए वित्तीयन में प्रयुक्त होता है। इनका प्रयोग उधार क्रय विक्रय की दशा में किया जाता है। इसे विक्रेता द्वारा क्रेता पर लिखा जाता है। जब क्रेता इसे स्वीकार करता है तो यह विपत्र विपणन योग्य विलेख बन जाता है तथा इसे व्यापारिक/वाणिज्यिक विपत्र कहते हैं इसे देय तिथि से पहले बट्टे पर बैंक से भुनाया जा सकता है।

2. पूंजी बाजार

  1. प्राथमिक बाजार,
  2. द्वितीयक बाजार ।

1. प्राथमिक बाजार- इसे नए निगर्मन बाजार के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ केवल नर्इ प्रतिभूतियों को निर्गमित किया जाता है जिन्हें पहली बार जारी किया जाता है। इस बाजार में निवेश करने वालों में बैंक, वित्तीय संस्थाएँ, बीमा कम्पनियाँ, म्युचुअल फण्ड एवं व्यक्ति होते हैं। इस बाजार का कोर्इ निर्धारित भौगोलिक स्थान नहीं होता है।

2. द्वितीयक बाजार- इसे स्टॉक एक्सचेंज या स्टॉक बाजार के नाम से भी जाना जाता है। जहाँ विद्यमान प्रतिभूतियों का क्रय एवं विक्रय किया जाता है। यह बाजार निर्धारित स्थान पर स्थित होता है तथा यहाँ प्रतिभूतियों का क्रय एवं विक्रय किया जाता है। यह बाजार निर्धारित स्थान पर स्थित होता है तथा यहाँ प्रतिभूतियों की कीमत को उनकी मांग एवं पूर्ति के द्वारा तय किया जाता है।

प्राथमिक बाजार व द्वितीयक बाजार में अंतर

1. कार्य-प्राथमिक बाजार का मुख्य कार्य नवीन प्रतिभूतियो के निगर्मन द्वारा दीर्घकालीन कोष एकत्र करना है वहीं द्वितीयक बाजार विद्यमान प्रतिभूितयो को सतत एवं तात्कालिक बाजार उपलब्ध कराता है।

2. प्रतिभागी-प्राथमिक बाजार में मुख्य भाग लेने वाली वित्तीय संस्थाएं, म्यूच्यूअल फण्ड, अभिगोपक और व्यक्तिगत निवेशक हैं, जबकि द्वितीयक बाजार में भाग लेने वाले इन सभी के अतिरिक्त वे दलाल भी हैं जो शेयर बाजार (स्टाक एक्सचेंज) के सदस्य हैं।

3. सूचीबद्ध कराने की आवश्यकता-प्राथमिक बाजार की प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जबकि द्वितीयक बाजार में केवल उन्हीं प्रतिभूतियों का लेन-देन हो सकता है जो सूचीबद्ध होती हैं।

4. मूल्यों को निर्धारण-प्राथमिक बाजार के सम्बन्ध मे प्रतिभूतियों का मूल्य निर्धारण प्रबंधन द्वारा सेबी के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, जबकि द्वितीयक बाजार में प्रतिभूतियों का मूल्य बाजार में विद्यमान मांग व पूर्ति के समन्वय द्वारा निर्धारित किया जाता है, जो समय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है।

प्राथमिक और द्वितीयक बाजार में क्या अंतर है

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Q. Consider the following statements with reference to the Secondary market:Which of the statements given above are correct?Q. द्वितीयक बाजार के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं?

Q. Consider the following statements with reference to the Secondary market:

प्रतिभूति बाजार क्या है

प्रतिभूति बाजार या शेयर बाजार आर्थिक संबंधों, जो मुद्दे और शेयरों के संचलन के दौरान बनते हैं की कुल है। बाजार कुछ हद तक, एक भूमिका निभा इसके प्रतिभागियों जो, कई देशों की आर्थिक परिस्थितियों में के माध्यम से वित्तीय प्राथमिक और द्वितीयक बाजार में क्या अंतर है संसाधन redistributes. उनकी गतिविधियों से, प्रमुख खिलाड़ियों एक दहशत बाजार में, इस प्रकार शेयर कीमतों और वित्तीय संकट के पतन के लिए अग्रणी हो सकता है।

प्रतिभूति बाजार एक जटिल संरचना है जो एक व्यापार या बाजार सहभागियों के बीच संबंध के संगठन निस्र्पक के विभिन्न सुविधाओं के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है। मुख्य विशेषताओं द्वारा जो प्रतिभूति बाजार वर्गीकृत किया जा सकता हैं:

  • शेयर बाजार प्रतिभूतियों का एक संगठित बाजार, जहां खरीदने बेचने के संचालनों शेयरों के एक एक्सचेंज द्वारा स्थापित नियमों के अनुसार जगह ले है। मुद्रा बाजार के लिए; केवल सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर जारी किए जाते हैं
  • -काउंटर बाजार प्रतिभूतियों की एक असंगठित बाजार, जहां लेन-देन की शर्तों रहे हैं पर सहमत हुए खरीदार और विक्रेता के साथ है। ओटीसी बाजार में, जो सूचीबद्ध नहीं किया गया है या एक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया जा करने की इच्छा नहीं है, जारीकर्ता के शेयरों परिचालित हैं.
  • प्राथमिक बाजार एक बाजार है जहां शेयरों का एक आरंभिक पेशकश होती है। प्रारंभिक प्रस्ताव या तो निजी या सार्वजनिक किया जा सकता (आईपीओ-प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश)। पहले मामले में, स्टॉक वित्तीय जानकारी के प्रकटीकरण के बिना व्यक्तियों की निश्चित संख्या के द्वारा खरीदे जाते हैं। दूसरे मामले में, भेंट स्थानों प्रकाशित वित्तीय संकेतक के साथ बिचौलियों के माध्यम से लेता है.
  • है द्वितीयक बाजार एक बाजार है, जहां पहले से ही जारी किए गए शेयरों resold जा रहा हैं। बाजार के मुख्य प्रतिभागियों सट्टेबाजों, जो है खरीदने और बेचने के शेयरों की कीमतों में अंतर पर पैसे कमाने हैं।
  • राष्ट्रीय-शेयर बाजार के भीतर एक निश्चित राज्य, जहां आर्थिक एजेंटों के बीच अपने वित्तीय संसाधनों का पुनर्वितरण होता है.
  • क्षेत्रीय-एक बंद संचलन के साथ एक विशिष्ट क्षेत्र में एक बाजार। क्षेत्रीय बाजार एक देश के भीतर गठित किया जा सकता है, लेकिन यह भी कुछ राष्ट्रीय बाजारों को जोड़ सकते हैं।
  • इंटरनेशनल-एक विश्व बाजार जहां विभिन्न देशों और क्षेत्रों के बीच इस प्रकार उन दोनों के बीच राजधानी के हस्तांतरण प्रदान करने प्रतिभूतियों के कारोबार होता है.
  • सरकार प्रतिभूति बाजार-बाजार मुख्य रूप से राज्य बजट या सरकार परियोजनाओं के घाटे की चुकौती के लिए जारी किए गए सरकारी ऋण प्रतिभूतियों के परिसंचरण के एक.
  • कॉर्पोरेट प्रतिभूति बाजार-वाणिज्यिक उद्यमों जारीकर्ता के रूप में अधिनियम.
  • नकदी बाजार-बाजार के लेन-देन (अप करने के लिए दो कार्य दिवस) का तत्काल निष्पादन एक
  • डेरिवेटिव्स मार्केट-व्युत्पन्न प्रतिभूतियों के बाजार देरी लेन देन के साथ.
  • परंपरागत बाजार-ट्रेडों एक विनिमय सीधे विक्रेता और खरीदार के बीच जगह ले पर.
  • कम्प्यूटरीकृत बाजार-ट्रेडों शेयर ट्रेडिंग टर्मिनल की उपलब्धता के साथ कंप्यूटर नेटवर्क के माध्यम से आयोजित कर रहे हैं.

एक विश्वव्यापी नेटवर्क के माध्यम से प्रतिभूति बाजार के विकास के इस स्तर पर, व्यापार लगभग हर किसी के लिए उपलब्ध है। ट्रेडिंग टर्मिनलों की प्राथमिक और द्वितीयक बाजार में क्या अंतर है अनुमति के पाठ्यक्रम के व्यापार का पालन करने के लिए एक मुद्रा में अचल – पर समय और किसी भी शेयर के साथ लेन-देन कर।

द्वितीयक क्रियाएँ

उद्योगों को हर जगह स्थापित प्राथमिक और द्वितीयक बाजार में क्या अंतर है नहीं किया जा सकता, उद्योग वहीं पर स्थापित किए जाते हैं जहाँ पर इनके निर्माण में कम से कम लागत-आए व ज्यादा से ज्यादा लाभ हो । उद्योगों की अवस्थिति में कई भौगोलिक व गैर-भौगोलिक कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं; जैसे-कच्चामाल, बाजार, पूँजी, बैकिंग व्यवस्था, श्रम, ऊर्जा के स्रोत आदि । दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित अफ्रीका महाद्वीप प्राकृतिक संसाधन में उन्नत हैं; जैसे लौह-इस्पात बाक्साइट, हीरा, ताँबा, लकड़ी, खालें आदि फिर भी इस क्षेत्र में उद्योग विकसित नहीं हुए । लौह-इस्पात उद्योग का विकास इसलिए नहीं हो सका क्योंकि यहाँ कोयले की कमी है। यूरोप व यू०एस०ए० की अपेक्षा यहाँ पूँजी का भी अभाव है। इसके अतिरिक्त संचार, परिवहन व बैंकिंग नीति की प्रतिकूलता भी पिछड़े औद्योगीकरण में मुख्य भूमिका निभाते हैं। अफ्रीका में विशाल मरुस्थल, घने वन प्रदेश, विस्तृत पठारी धरातल के कारण जनसंख्या भी कम निवास करती है। अत: स्पष्ट है कि प्राकृतिक संसाधनों अर्थात् कच्चे माल के भंडार होने के बावजूद अनेक गैर-भौगोलिक व मानवीय कारण उद्योगों की अवस्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?

हुगली के सहारे जूट के कारखाने सस्ती जल यातायात की सुविधा के कारण स्थापित हुए ।

चीनी, सूती वस्त्र एवं वनस्पति तेल उद्योग स्वच्छंद उद्योग हैं।

खनिज तेल एवं जलवियुत शक्ति के विकास ने उद्योगों की अवस्थिति कारक के रूप में कोयला शक्ति के महत्त्व को कम किया है।

पत्तन नगरों ने भारत में उद्योगों को आकर्षित किया है।

चीनी, सूती वस्त्र एवं वनस्पति तेल उद्योग स्वच्छंद उद्योग हैं।

अधिकतर देशों में उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग प्रमुख महानगरों के परिधि क्षेत्रों में ही क्यों विकसित हो रहे हैं? व्याख्या कीजिए।

  1. ये हल्के उद्योग होते हैं जो अधिकतर कच्चेमाल की जगह उत्पादन के लिए अर्ध-निर्मित अथवा संसाधित वस्तुओं का उपयोग करते हैं।
  2. वैज्ञानिक और तकनीकी दक्षता पर निर्भर रहने के कारण ये उद्योग प्राय: विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थाओं के निकट स्थापित किये जाते हैं।
  3. इन उद्योगों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति बिजली द्वारा होती है जो मुख्यत: राष्ट्रीय ग्रिड से प्राप्त होती हैं।
  4. इन उद्योगों के लिए अनुकूल जलवायु वाले महानगरीय क्षेत्र अधिक अनुकूल साबित होते हैं। महानगरों की सामाजिक, सांस्कृतिक व वैज्ञानिक गतिविधियाँ इन उद्योगों को अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देती है।
  5. इन उद्योगों का अंतिम उत्पाद छोटा किंतु परिष्कृत होता है। अत: इन्हें सड़क मार्गों के निकट प्रदूषण रहित आवासीय क्षेत्रों में लगाया जा सकता है।
  6. परिवहन और संचार के अति आधुनिक साधनों के बिना ये उद्योग जीवित ही नहीं रह सकते। उपभोक्ताओं, वित्तीयसंस्थाओं, सरकारी विभागों से तत्काल संपर्क बनाने तथा, शोध के विभिन्न चरणों की सफलता के लिए महानगरीय व परिवहन के साधन जरूरी हैं।

प्राथमिक एवं द्वितीयक गतिविधियों में क्या अंतर है?

प्राथमिक गतिविधियाँ - प्राथमिक गतिविधियाँ वे होती हैं जो प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर हैं क्योंकि ये पृथ्वी के संसाधनों जैसे भूमि, जल, वनस्पति, भवन-निर्माण सामग्री एवं खनिजों के उपयोग के विषय में बतलाती हैं। इस प्रकार की क्रियाओं के अंतर्गत आखेट, भोजन, भोजन संग्रह, पशुचारण, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि एवं खनन कार्य शामिल किए जाते हैं।

द्वितीयक गतिविधियाँ
- द्वितीयक गतिविधियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है। प्रकृति में पाए जाने वाले कच्चे माल का रूप बदलकर ये उसे मूल्यवान बना देती हैं। जैसे कपास से वस्त्र बनाना, लौह अयस्क से लौह-इस्पात बनाना । इस प्रकार निर्मित वस्तुएँ अधिक मूल्यवान हो जाती हैं। खेतों, वनों, खदानों एवं समुद्रों से प्राप्त वस्तुओं के बारे में भी प्राथमिक और द्वितीयक बाजार में क्या अंतर है यही बात लागू होती है। इस प्रकार द्वितीयक क्रियाएँ विनिर्माण, प्रसंस्करण और निर्माण उद्योग से संबंधित हैं। सभी निर्माण उद्योग-धंधे गौण व्यवसाय है। गौण व्यवसायों पर भौतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। संसार के विकसित देशों जैसे सयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, ग्रेट ब्रिटेन, पश्चिमी जर्मनी तथा जापान मैं अभूतपूर्व मूल्य वृद्धि हुई है।

विश्व के विकसित देशों के उद्योगों के संदर्भ में आधुनिक औद्योगिक क्रियाओं की मुख्य प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए ।

  1. यूरोप के औद्योगिक प्रदेश,
  2. उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक प्रदेश,
  3. दक्षिणी अमेरिका के औद्योगिक प्रदेश,
  4. रूस के औद्योगिक प्रदेश,
  5. एशिया के औद्योगिक प्रदेश,
  6. अफ्रीका के औद्योगिक प्रदेश,
  7. आस्ट्रेलिया के औद्योगिक प्रदेश ।

यूरोप के औद्योगिक प्रदेश - विश्व में औद्योगिक क्रांति का श्री गणेश यूरोप महाद्वीप में ही हुआ था । यहाँ 18 वीं शताब्दी में जो औद्योगिक क्रांति आई, वह विश्व के अन्य भागों में भी धीरे-धीरे फैली जिससे औद्योगिक उत्पादनों में वृद्धि हुई ।

    ब्रिटेन के औद्योगिक प्रदेश - ब्रिटेन में निम्नलिखित प्रमुख औद्योगिक प्रदेश स्थित हैं-

    मिडलैंड औद्योगिक प्रदेश :- यह इंग्लैंड का महत्त्वपूर्ण औद्योगिक प्रदेश है, जिसका केंद्र बर्किंघम है। यहाँ छोटी-सी सूई से लेकर वायुयान तथा जलयान तक निर्मित होते हैं।

स्कॉटलैंड ग्लासगो क्षेत्र :- इस क्षेत्र में ग्लासगो नगर जलयान निर्माण के लिए विश्वविख्यात है। अन्य उद्योगों में लौह-इस्पात, इंजीनियरिग तथा वस्त्र उद्योग प्रमुख हैं। 'ग्लासगो' के अतिरिक्त एडिनबरा तथा एबरडीन यहाँ के प्रमुख औद्योगिक केंद्र हैं।

लंदन औद्योगिक प्रदेश :- लंदन ब्रिटेन की राजधानी होने के साथ-साथ एक प्रमुख औद्योगिक नगर भी है। इसके आसपास अनेक उद्योग स्थापित हैं, जिनमें छपाई, सीमेंट, तेल शोधन, इंजीनियरिग, वस्त्र निर्माण, फर्नीचर, विघुत्-उपकरण, खाद्य परिष्करण तथा शृंगार प्रसाधन प्रमुख हैं।

दक्षिणी वेल्स औद्योगिक प्रदेश :- इस क्षेत्र के मुख्य औद्योगिक नगर फारडिफ, न्यूपोर्ट तथा स्वानसी हैं। यहाँ लौह-इस्पात, रसायन, तेल शोधन तथा कृत्रिम रेशे आदि उद्योग विकसित हैं।

  1. रूर औद्योगिक प्रदेश :- यह औद्योगिक प्रदेश विश्व के प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों में गिना जाता है। रूर क्षेत्र में कोयला पर्याप्त मात्रा में मिलता है, जिसके कांरण भारी उद्योगों की स्थापना में सहायता मिली है। यहाँ लौह-इस्पात तथा भारी इंजीनियरिंग उद्योग विकसित अवस्था में हैं।
  2. बेवरिया औद्योगिक प्रदेश :- इस क्षेत्र में हल्के उद्योग; जैसे इलैक्ट्रॉनिक्स का सामान, घड़ी, हौजरी, रसायन पदार्थ, शराब, खाद्य-सामग्री तथा औषधियों से संबंधित उद्योग हैं।
  3. सार प्रदेश :- यह प्रदेश सार नदी के बेसिन में फैला है। यहाँ भारी इंजीनियरिंग, लौह-इस्पात, कांच का सामान, चीनी-मिट्टी के बर्तन तथा चमड़े के सामान बनाने के केंद्र हैं। यह क्षेत्र फ्रांस तथा जर्मनी की सीमा पर लगा औद्योगिक केंद्र है।

6 Important Differences between Primary Market and Secondary Market – In Hindi

प्राथमिक और द्वितीयक बाजार (Primary Market and Secondary Market) पूंजी बाजार के मुख्य घटक हैं। दूसरी ओर, प्राइमरी मार्केट नए इश्यू मार्केट का प्रतिनिधित्व करता है सेकेंडरी मार्केट मौजूदा या सेकेंड-हैंड सिक्योरिटीज का प्रतिनिधित्व करता है।

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The Content covered in this article:

प्राथमिक बाजार का अर्थ (Meaning of Primary Market):

न्यू इश्यू मार्केट/प्राथमिक मार्केट को पहली बार प्रतिभूतियां जारी की गई हैं। यह सीधे पूंजी निर्माण में योगदान देता है। पूंजी बाजार में, कंपनी इन निधियों का उपयोग भवनों, संयंत्रों, मशीनरी आदि में निवेश के लिए करती है। प्राथमिक बाजार ने सामान्य प्रतिभूतियां जैसे इक्विटी शेयर, डिबेंचर, बांड, वरीयता शेयर आदि जारी किए।

कभी-कभी, एक मध्यस्थ (दलालों की फर्म) द्वारा आम जनता को नई प्रतिभूतियों की पेशकश की जाती है जो कंपनी से पूरी तरह से प्रतिभूतियां खरीदती हैं। सबसे पहले, कंपनी बिचौलियों को अंकित मूल्य पर प्रतिभूतियां जारी करती है। फिर बिचौलिए लाभ कमाने के लिए आम जनता को उच्च कीमत पर प्रतिभूतियां जारी करते हैं जिसे बिक्री के लिए प्रस्ताव कहा जाता है।

द्वितीयक बाजार का अर्थ (Meaning of Secondary Market):

द्वितीयक बाजार वह बाजार है जहां पहले जारी प्रतिभूतियों की बिक्री और खरीद होती है। द्वितीयक बाजार में, प्रतिभूतियों को मौजूदा निवेशकों द्वारा अन्य निवेशकों को बेचा जाता है।

जब निवेशक को नकदी की आवश्यकता होती है और यदि दूसरा निवेशक कंपनी के शेयर खरीदना चाहता है तो दोनों निवेशक द्वितीयक बाजार में मिल सकते हैं और ब्रोकर से नकदी के लिए प्रतिभूतियों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।

प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार के बीच अंतर का चार्ट (The Chart of difference between Primary Market and Secondary Market)

मतभेद के बिंदु

चार्ट को पीएनजी और पीडीएफ में डाउनलोड करें (Download the chart in PNG and PDF): –

यदि आप चार्ट डाउनलोड करना चाहते हैं तो कृपया निम्नलिखित छवि और पीडीएफ फाइल डाउनलोड करें: –

Chart of difference between Primary Market and Secondary Market – In Hindi Chart of difference between Primary Market and Secondary Market – In Hindi

निष्कर्ष (Conclusion):

इस प्रकार, प्राथमिक बाजार को पहली बार प्रतिभूतियां जारी की जाती हैं। यह सीधे पूंजी निर्माण में योगदान देता है। दूसरी ओर, द्वितीयक बाजार वह बाजार है जहां पहले जारी प्रतिभूतियों की बिक्री और खरीद होती है। द्वितीयक बाजार में, प्रतिभूतियों को मौजूदा निवेशकों द्वारा अन्य निवेशकों को बेचा जाता है।

विषय पढ़ने के लिए धन्यवाद।

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