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हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं

हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं
पत्रकारिता प्रतिस्पर्धा का पेशा है. प्रतिस्पर्धा रिपोर्ट, स्टोरी और स्कूप के क्षेत्र में होती है. प्रतिस्पर्धा निर्भीकता में होती है, साहस में होती है और पत्रकारिता के पेशे के ये गुण आभूषण होते हैं, क्योंकि संपादक इन्हीं गुणों के आधार पर अपने साथियों या साथ काम करने वालों की समीक्षा करता है. लेकिन आज इससे अलग दृश्य देखने को मिल रहा है. पत्रकारिता के पवित्र पेशे में ऐसे लोग घुस गए हैं, जिन्हें अगर हम दलाल कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. ऐसे पत्रकार, जो निहित स्वार्थों की ख़ातिर सरकार और विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए काम करने में अपना गौरव समझते हैं, वे अच्छी रिपोर्ट करने की जगह पीआर जर्नलिज्म करना ज़्यादा सही समझते हैं.

हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं

बिहार में उद्योग स्थापित करने के लिए उत्सुक निवेशक और उद्योगपतियों को जमीन मिलना मुश्किल हो रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह जमीन की खरीदारी में किसान और उद्योगपतियों के बीच हावी बिचौलियों का साम्राज्य है। उद्योगपतियों को पिछले कुछ साल से जमीन नहीं मिल रही है। बाहरी निवेशकों से मोटा हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं मुनाफा कमाने के मकसद से बिचौलिये जमीन की कीमत कई गुना बढ़ा दे रहे हैं। उद्योगपतियों ने दलाली की बढ़ती प्रवृत्ति की नाराजगी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने व्यक्त की है। उद्योग जगत की नाराजगी को संज्ञान में लेते हुए नीतीश कुमार ने उद्योग जगत को जमीन दिलाने का वादा करते हुए सही चैनल से बिहार आने की गुजारिश की है।
बिहार में निवेशकों को आकर्षित करने और राज्य में बेहतर कारोबारी माहौल का भरोसा दिलाने के मकसद से बिहार केे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उद्योग जगत के दिग्गजों के साथ मुंबई में बैठक की। इस बैठक में उद्योगपतियों ने बिहार में निवेश की रफ्तार बढ़ाने की हामी तो भरी लेकिन राज्य में उद्योगपतियों को जमीन मिलनेे में हो रही परेशानियों की बात कही। उद्योग जगत की नाराजगी को भांपते हुए कुमार ने सबको जमीन दिलाने का वादा करते हुए कहा है कि उद्योगपतियों को सलाह देते हुए कहा कि जमीन खरीदने के लिए सही रास्ते का चुनाव करेंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी।

कुमार के साथ हुई बैठक में एचडीएफसी के दीपक पारेख, एक्सिस बैंक की प्रबंध निदेशक शिखा शर्मा, आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर, एसबीआई की अध्यक्ष अरुंधती भट्टाचार्य, यूनिलीवर के प्रबंध निदेशक नितिन परांजपे, वेदांता के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल, मैक्स इंडिया के प्रबंध निदेशक राहुल खोखला, टीसीएस के सीएफओ राजेश गोपनाथन, सेबी चेयरमैन यूके सिन्हा, आईटीसी चेयरमैन वाईसी देवेश्वर समेत करीबन तीन दर्जन से ज्यादा उद्योगपतियों ने हिस्सा लिया।

नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार की विकास दर को बढ़ाने के लिए निजी निवेशकों की जरूरत है इस पर उद्योग जगत के लोगों का कहना है कि जब जमीन ही नहीं मिल पा रही है तो उद्योग कैसे लगाएं जाए। इस मुद्दे पर बिहार की उद्योग मंत्री डॉ रेनू कुमारी का कहना कि बिहार में निवेशकों को जहां जमीन की जरूरत हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं होगी वह जमीन मुहैया कराई जाएगी, लेकिन उद्योगपतियों को जमीन किसानों से खरीदनी होगी।

किसानों से खरीदी गई जमीन को औद्योगिक जोन में परिवर्तन करने और उसके राजिस्ट्रेशन में होने वाले खर्च को बिहार सरकार वहन करेगी, लेकिन जमीन की कीमत उद्योगपतियों को देनी होगी। जमीन खरीदी पर हावी बिचौलियों की भूमिका पर बिहार फाउंडेशन मुंबई के रवि श्रीवास्तव का कहना है कि यह समस्या पूरे देश में है लेकिन इससे निपटने के लिए बिहार फाउंडेशन निवेशकों की मदद करता है। इससे निवेशकों को सस्ती जमीन मिलती है और हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं किसान को उसकी जमीन की ज्यादा कीमत मिल जाती है क्योंकि बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाती है।

उन्होंने कहा कि बहुत से निवेशक सीधे संपर्क करने के चक्कर में हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं बिचौलियों के जाल में फंस जाते हैं। उनके अनुसार बिहार फाउंडेशन की मुंबई, दिल्ली, बेंगलोर, चेन्नई, कोलकाता, और जयपुर में शाखाएं हैं जहां निवेशकों को पूरी जानकारी दी जाती है, एक बार बिहार सरकार की तरफ से हम निवेशकों से फिर अनुरोध करते हैं कि वह बिहार में निवेश के लिए आएं और उनकी सभी जरूरतों को पूरा करने एवं सही जानकारी देने के लिए बिहार फाउंडेशन उनके साथ खड़ा रहेगा।

गौरतलब है कि पटना से 10-15 किलोमीटर के रेंज में जमीन का सर्किल रेट 21 लाख रुपये प्रति एकड़ हैं। पिछले साल यहां जमीन का बाजार भाव 30-40 लाख रुपये प्रति एकड़ था। इस समय भी इस इलाके में जमीन की कीमत 40 लाख रुपये प्रति एकड़ के आस पास चल रही हैं लेकिन जमीन कम होने के कारण बिचौलिये उद्योगपतियों से एक एकड़ की कीमत 5-6 करोड़ रुपये मांग रहे हैं। दूसरी तरफ किसानों को भय दिखाया जाता है कि वह जमीन सीधे तौर पर बाहरी लोगों को न बेचें, नहीं तो उनका पैसा फंस जाएगा।

बिहार फाउंडेशन के जानकारों का कहना है पटना के आसपास के इलाकों के किसानों और उद्योगपतियों के बीच करीब पांच-छह लेयर हो जाती है हर बिचौलिया अपनी कीमत बढ़ता जाता है। इस तरह उद्योगपति के पास जो कीमत बताई जाती है वह किसान को मिलने वाली कीमत से पांच छह गुना अधिक होती है। निवेशकों की बढ़ती संख्या की वजह से प्रॉपर्टी दलाली का धंधा सबसे मोटा हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं मुनाफा वाला हो गया है।

IQ Option प्लेटफॉर्म के साथ कोका-कोला के शेयर कैसे खरीदें

निवेश फर्मों के साथ काम करने वाले लोगों के पास कुछ निश्चित तरीके होते हैं कि वे अपनी पसंद की किसी भी कंपनी के शेयरों के शेयर कैसे खरीद सकते हैं। ऐसी कंपनियां हैं जहां निवेशकों को ब्रोकर की आवश्यकता होती है; ये ब्रोकर वे हैं जो निवेशकों की ओर से लेनदेन को संभालते हैं और यह भी सलाह देते हैं कि शेयरों के शेयर कैसे खरीदें। दूसरी ओर, निवेशकों को ऐसे बाजार में भाग लेने के लिए अनुभव की आवश्यकता नहीं है। किसी विशेष कंपनी के स्टॉक के शेयरों को कैसे खरीदा जाए, इस पर विचार एक ब्रोकर से आता है जो उस विशेष कंपनी और उस उद्योग से अच्छी तरह वाकिफ है जिसमें यह काम करता है। इसलिए यह सबसे अच्छा है कि निवेशक उपलब्ध विभिन्न विकल्पों का उपयोग करके शेयरों के शेयर खरीदना सीखें। . यह लेख स्टॉक के शेयर खरीदने के लिए IQ Option प्लेटफॉर्म का उपयोग करके कोका कोला के शेयरों में निवेश करने के तरीके के बारे में एक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

शेयर खरीदने के लिए IQ Option प्लेटफॉर्म का उपयोग करने के लाभ

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के जरिए कंपनी में निवेश करने की सबसे अच्छी बात यह है कि इसके लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। ट्रेडिंग बाजार में होती है, जो काउंटर एक्सचेंज या ओटीसी पर होती है। जो बात ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को विशिष्ट बनाती है, वह यह है कि शेयर पूरे विश्व में खरीदे और बेचे जा सकते हैं। ट्रेडिंग पर कोई प्रतिबंध नहीं है। निवेशक करों का भुगतान करने या प्रतिभूति और विनिमय आयोग के साथ किसी भी बिक्री या खरीद को पंजीकृत करने की चिंता किए बिना, जैसे ही वे ऐसा करने का निर्णय लेते हैं, अपने स्टॉक को बेच सकते हैं।

मंच के माध्यम से निवेश करने से निवेशकों को कई लाभ मिलते हैं। यह शेयर खरीदने के सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक है क्योंकि लेनदेन के लिए आमने-सामने की बैठक की आवश्यकता नहीं होती है। यही मुख्य कारण है कि निवेश के इस तरीके ने निवेशकों के बीच लोकप्रियता हासिल की है। ट्रेडिंग के बारे हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं में एक और बड़ी बात यह है कि ब्रोकर को दिया जाने वाला कमीशन शुल्क निषेधात्मक नहीं है। इसका मतलब है कि एक डॉलर से भी कम में सबसे सस्ता स्टॉक भी खरीदा जा सकता है।

जो निवेशक ट्रेडिंग स्टॉक और ऑप्शंस में नए हैं, उन्हें सीखना चाहिए कि ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म का उपयोग करके कोका-कोला के शेयर कैसे खरीदें। निवेशक इस कंपनी के शेयर ऑनलाइन खरीद और बेच सकते हैं। उन्हें बस इतना करना है कि मंच पर पंजीकरण करें और एक ही खरीद या बिक्री करें। व्यापारी के पंजीकृत होने के बाद, उन्हें एक ऑनलाइन ट्रेडिंग खाता प्रदान किया जाएगा। यह खाता ट्रेडों की एकमात्र कुंजी है। बाकी सब कुछ मंच द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

IQ Option प्लेटफॉर्म का उपयोग करके कोका-कोला के शेयर खरीदना कभी-कभी मुश्किल हो सकता है। यह विशेष रूप से ऐसा है यदि कोई पूरी तरह से यह नहीं समझता है कि ऑप्शन ट्रेडिंग में उपयोग किए जाने वाले टूल और संकेतकों का उपयोग कैसे करें। ट्यूटोरियल का पालन करना और सिस्टम का उपयोग करके अभ्यास करना सबसे अच्छा है जब तक कि कोई सहज न हो जाए। फिर, एक व्यापारी ऑनलाइन विकल्प ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म का उपयोग करके स्टॉक और विकल्प खरीदना और बेचना शुरू कर सकता है। इसके बाद, वे इस बात का वास्तविक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं कि सिस्टम कैसे काम करता है।

निवेश के जोखिम

निवेशकों को यह भी पता होना चाहिए कि वे स्टॉक और विकल्प अनुबंध में रखे कुछ पैसे खो सकते हैं। इसलिए होने वाले नुकसान को छोटा रखा जाना चाहिए। इसका कारण यह है कि विकल्प बाजार में बड़ी मात्रा में धन का हाथ बदल जाता है और यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि किसी भी उदाहरण में बाजार किस तरह से आगे बढ़ सकता है। इसलिए नुकसान को कम रखना जरूरी है। यही कारण है कि शुरुआती लोगों को कोका-कोला के शेयरों का एक विकल्प प्लेटफॉर्म के साथ उपयोग करना चाहिए, जब तक कि वे अपने पैसे को जोखिम भरे उपक्रमों में लगाने के लिए पर्याप्त आश्वस्त न हों।

यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कोका-कोला के शेयरों को एक विकल्प के साथ खरीदने के लिए ऑनलाइन विकल्प प्रणाली का उपयोग करते समय, निवेशक को स्टॉप-लॉस विकल्प का ठीक से उपयोग करना चाहिए। निवेशक जो शेयर बाजार में नए हैं और विकल्प हैं, उन्हें जितना खो सकते हैं उससे अधिक खरीदने के लिए लुभाना नहीं चाहिए। स्टॉप-लॉस विकल्प वह तरीका है जिससे व्यापारी गलत कॉल करने की स्थिति में पैसा खोना बंद कर देते हैं।

एक विकल्प प्लेटफॉर्म के साथ कोका-कोला के शेयर खरीदने के इच्छुक निवेशकों को पहले एक निवेश फर्म में एक डेमो खाता खोलना होगा। एक बार जब वे अपने ऑनलाइन ट्रेडिंग खाते के साथ एक सहज बिंदु पर होते हैं, तो वे कोका-कोला विकल्प प्लेटफॉर्म का उपयोग करके स्टॉक खरीदने के तरीके के साथ प्रयोग करना शुरू कर सकते हैं। वे उन विभिन्न रणनीतियों के बारे में भी जान सकते हैं जो दलाल अपनी ओर से व्यापार करते समय पालन करेंगे। यह ज्ञान उन्हें कोका-कोला शेयरों पर एक विकल्प मंच के साथ व्यापार करने में शामिल जोखिमों को कम करने में मदद करेगा।

वसीयत के बारे में कई अहम बातों की जानकारी होना आवश्यक: अधिवक्ता रोहन सिंह चौहान

अधिवक्ता - रोहन सिंह चौहान

भारतीय ईसाइयों हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं को उत्तराधिकार में मिलने वाली संपत्ति का निर्धारण उत्तराधिकार कानून के तहत होता है । विशेष विवाह कानून के तहत विवाह करने वाले तथा भारत में रहने वाले यूरोपीय, एंग्लो इंडियन तथा यहूदी भी इसी कानून के तहत आते हैं ।

ईमानदार पत्रकार, दलाल पत्रकार

Santosh-Sir

पत्रकारिता प्रतिस्पर्धा का पेशा है. प्रतिस्पर्धा रिपोर्ट, स्टोरी और स्कूप के क्षेत्र में होती है. प्रतिस्पर्धा निर्भीकता में होती है, साहस में होती है और पत्रकारिता के पेशे के ये गुण आभूषण होते हैं, क्योंकि संपादक इन्हीं गुणों के आधार पर अपने साथियों या साथ काम करने वालों की समीक्षा करता है. लेकिन आज इससे अलग दृश्य देखने को मिल रहा है. पत्रकारिता के पवित्र पेशे में ऐसे लोग घुस गए हैं, जिन्हें अगर हम दलाल कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. ऐसे पत्रकार, जो निहित स्वार्थों की ख़ातिर सरकार और विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए काम करने में अपना गौरव समझते हैं, वे अच्छी रिपोर्ट करने की जगह पीआर जर्नलिज्म करना ज़्यादा सही समझते हैं.

पत्रकारों का एक तबक़ा ऐसा भी है, जो बिना कहे दलालों की श्रेणी में शामिल होना चाहता है, उसका तरीक़ा भी मज़ेदार है. ख़बर लिखना और उसका संपूर्ण झूठाकरण कर देना उसका शगल बन गया है. गपशप जैसे कॉलमों में बिना नाम के ख़बरें हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं लिखना, फिर उसे ले जाकर सत्ता या राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों को दिखाना और उनसे यह अपेक्षा करना कि वे उन्हें उसका छोटा ही सही, लेकिन मूल्य दें, का चलन बढ़ता ही जा रहा है. अच्छे-अच्छे संपादक ऐसे महान सहयोगियों के आगे ख़ुद को बेबस पाते हैं. यह अफसोसजनक इसलिए भी है, क्योंकि ऐसे पत्रकार बेशर्मी के साथ सही को ग़लत साबित करने और ईमानदार एवं बेख़ौ़फ़ पत्रकारों के ख़िला़फ़ माहौल बनाने की सुपारी लेते दिखाई देते हैं. दरअसल, इनका ख़ुद कोई मु़क़ाम नहीं होता, पर यह मुक़ाम वाले लोगों की तस्वीर बिगाड़ने का काम करना अपनी शान समझते हैं.

दरअसल, ऐसे पत्रकार इंटेलिजेंस ब्यूरो से पैसा लेते हैं, आईएसआई से पैसा लेते हैं, मोसाद से पैसा लेते हैं और चुनिंदा राजनीतिक दलों से भी पैसा लेते हैं. इन्हें वक्त-बेवक्त राजनीतिक नेताओं के घरों पर देखा जा सकता है, हथियारों के दलालों की पार्टियों में हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं देखा जा सकता है और राजनेताओं के घर पर देर शाम शराब पीते देखा जा सकता है, जहां पर यह एक मुख्य षड्यंत्रकारी की तरह नज़र आते हैं. अफसोस की बात यह है कि ऐसे पत्रकारों के ख़िला़फ़ इनके साथियों में गुस्सा होते हुए भी कोई क़दम नहीं उठ पाता, क्योंकि कुछ संपादक ऐसे हैं, जिन्हें यह नहीं पता चलता कि क्या छप रहा है और कुछ संपादक ऐसे भी होते हैं, जो इन संवाददाताओं का उपयोग अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए भी कर लेते हैं.

पत्रकारों का एक तबक़ा ऐसा भी है, जो बिना कहे दलालों की श्रेणी में शामिल होना चाहता है, उसका तरीक़ा भी मज़ेदार है. ख़बर लिखना और उसका संपूर्ण झूठाकरण कर देना उसका शगल बन गया है. गपशप जैसे कॉलमों में बिना नाम के ख़बरें लिखना, फिर उसे ले जाकर सत्ता या राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों को दिखाना और हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं उनसे यह अपेक्षा करना कि वे उन्हें उसका छोटा ही सही, लेकिन मूल्य दें, का चलन बढ़ता ही जा रहा है. अच्छे-अच्छे संपादक ऐसे महान सहयोगियों के आगे ख़ुद हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं को बेबस पाते हैं. यह अफसोसजनक इसलिए भी है, क्योंकि ऐसे पत्रकार बेशर्मी के साथ सही को ग़लत साबित करने और ईमानदार एवं बेख़ौ़ङ्ग पत्रकारों के ख़िला़फ़ माहौल बनाने की सुपारी लेते दिखाई देते हैं.

पत्रकारों का ऐसा तबक़ा या इस तब़के में शामिल होने वाले कुछ पत्रकार अन्ना हज़ारे और जनरल वी के सिंह के ख़िला़फ़ झूठे सबूतों के आधार पर कुछ लिखकर, लिखवाने वाली ताक़तों के सामने अपनी पीठ थपथपाते हैं. कुछ ऐसे भी हैं, जो ईमानदार पत्रकारों का सामना नहीं कर सकते, लेकिन उनके ख़िला़फ़ अनाम टिप्पणियां करके अपनी बेशर्म हंसी लिए हुए राजनेताओं के दरबार में हाजिरी बजाते हैं और इंटेलिजेंस ब्यूरो, आईएसआई और मोसाद से अलग-अलग पैसे लेते हैं. यही पत्रकार इंटेलिजेंस ब्यूरो और मोसाद को सलाह देते हैं कि ईमानदारी के लिए आवाज़ उठाने वाले लोगों को किस तरह तोड़ा जा सकता है या उन्हें लड़ाया जा सकता हम दलालों की सलाह कैसे देते हैं है. ग़ौरतलब है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो और मोसाद द्वारा ऐसे पत्रकारों का इस्तेमाल साख वाले पत्रकारों पर कीचड़ उछालने में किया जाता है.

ख़ु़फ़िया एजेंसियां, विशेषकर मोसाद और आईएसआई ऐसे पत्रकारों के घरों पर तोहफों की भरमार कर देती हैं और उन तोहफों के बदले ये पत्रकार उन्हें जानकारी मुहैया कराते हैं कि साख वाला पत्रकार कहां जाता है, कैसे रिपोर्ट करता है और कैसे उसकी अच्छी रिपोर्ट की साख ख़त्म की जाए. केवल यही नहीं, ये पत्रकार देशी ख़ुफिया एजेंसियों और विदेशी ख़ुफिया एजेंसियों को साख वाले पत्रकारों के सामाजिक संबंधों की भी जानकारियां देते हैं, ताकि ख़ुफ़िया एजेंसियां आसानी से उन पत्रकारों के चरित्र हनन की योजनाएं बना सकें. चरित्र हनन की कोशिश में ख़ुफ़िया एजेंसियां फेक अकाउंट खुलवाती हैं, उसमें पैसे डालती हैं, विदेशों में रेजिडेंस परमिट के झूठे काग़ज़ बनवाती हैं और उनकी फ़र्ज़ी सेक्स सीडी बनाने की योजनाएं बनाती हैं. मैं एक ऐसे संपादक को जानता हूं, जिसकी ओर से हांगकांग में रेजिडेंस परमिट की दरख्वास्त किसी ने दी. इसका मतलब यह है कि वह हांगकांग में अकाउंट खोल सकता है, उसके अकाउंट में पैसे डाले जा सकते हैं. इस संपादक के नाम से स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में एक फेक अकाउंट खोला गया और उसमें पैसे भी डाले गए. इतना ही नहीं, संपादक के नाम के अकाउंट का एटीएम ऑपरेशन भी शुरू हो गया. संपादक हैरान, परेशान कि आख़िर यह हो क्या रहा है. उसने घबरा कर हांगकांग की अथॉरिटी और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक को भी ई-मेल किए कि कोई उसकी तरफ़ से ग़लत सूचनाएं दे रहा है या फर्जी अकाउंट खोल रहा है.

यह वह चर्चित संपादक है, जिसके पीछे ख़ुफ़िया एजेंसियां, सरकार और राजनीतिक दल पड़े हुए हैं. वे इस संपादक की साख ख़त्म करना चाहते हैं. शायद इस खेल में स्वयं वित्त मंत्री पी चिदंबरम और गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे शामिल हैं, क्योंकि बिना उनकी सहमति के, इस चर्चित संपादक के ख़िला़फ़ इतनी बड़ी आपराधिक साजिश नहीं हो सकती. मुझे मालूम है कि ये दोनों मंत्री ख़ामोश रहेंगे, क्योंकि इन्हें न तो अपनी इज्जत की परवाह है और न ही साख वाले पत्रकारों की इज्जत की.

मैं कह सकता हूं कि आज पत्रकारों का एक तबक़ा दलाली कर रहा है, जो संख्या में बहुत छोटा है, लेकिन एक दूसरा तबक़ा भी है, जो दलाली के चक्रव्यूह से बाहर है और ईमानदारी से अपना फर्ज़ पूरा कर रहा है. पहला तबक़ा संगठित है, लेकिन दूसरा तबक़ा असंगठित. दूसरे तब़के के पत्रकार देश के हालात, लोगों के दर्द, बेरोज़गारी, महंगाई और भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगों की कहानियां सामने लाने की कोशिश करते हैं और शायद यही पत्रकार देश में आशा और विश्‍वास का माहौल बनाए हुए हैं. देश में आम आदमी जब हर तरफ़ से हार जाता है, तो वह आख़िरी कोशिश के तौर पर पत्रकार के पास जाता है. पहले तब़के के पत्रकार ऐसे पीड़ित लोगों के दर्द का भी सौदा कर लेते हैं, लेकिन दूसरे तब़के के पत्रकार अपना जी-जान उनकी तकलीफ के कारण को सामने लाने में लगा देते हैं.

प्रभाष जोशी दूसरी तरह के पत्रकारों के आदर्श रहे. आज भी लोग उन्हें इसलिए याद करते हैं, क्योंकि उन्होंने हमेशा सच्चाई का साथ दिया. प्रभाष जोशी को याद करने और उन्हें अपना आदर्श मानने वाले पत्रकारों से यह आशा तो की ही जा सकती है कि वे सच्चाई के पक्ष में हमेशा उसी तरह अपना हाथ खड़ा करेंगे, जैसे प्रभाष जोशी हमेशा किया करते थे.

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