विकल्प रणनीति

व्यापार की रणनीति: विदेश व्यापार नीति में बदलाव की कवायद
सरकार आने वाले दिनों में एक नई विदेश व्यापार नीति का ऐलान करने वाली है। इस नई नीति में वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात को बढ़ाने में मदद करने के साथ-साथ बढ़ते आयात के खर्चों पर लगाम लगाने के उपाय शामिल हो सकते हैं। मौजूदा व्यापार नीति 2015 में लाई गई थी। इस नीति का पांच साल का कार्यकाल महामारी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन की घोषणा के एक सप्ताह बाद समाप्त हो गया था। तब, उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए इसे एक साल के लिए बढ़ा दिया गया था। हालांकि, मार्च 2021 से आगे इस पुरानी नीति को बढ़ाया जाना समझ से परे है। विशेष रूप से मौजूदा छह महीने का विस्तार, जो इस नीति की समाप्ति तिथि को 30 सितंबर तक बढ़ा देती है। एक नए वित्तीय वर्ष में बिल्कुल नए सिरे से आगाज करने की पारंपरिक रवायत के उलट, किसी वित्तीय वर्ष के मध्य में नई नीति की शुरुआत करना आदर्श कदम नहीं है। इसके अलावा निर्यात कोविड से उबरने के बाद की स्थितियों में विकास के उन चंद इंजनों में से एक रहा है, जो कुलाचे मार रहा है। लिहाजा, ‘आउटबाउंड शिपमेंट’ को बढ़ावा देने की नीति को बंद करने का फैसला चौंकाने वाला है। चीन पर कम निर्भर होने की दुनिया की चाहत को भुनाने के लिए भारत की रणनीति को स्पष्ट कर देने से निर्यातकों (और आयातकों) को अपने निवेश की योजना बनाने में भी मदद मिलेगी। पिछले साल जनवरी में, निर्यातकों को घरेलू कर वापस करने के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रावधानों के अनुरूप निर्यात प्रोत्साहन योजना शुरू की गई थी। लेकिन, दरों को कुछ महीनों के बाद ही अधिसूचित किया गया था। उसमें भी, कुछ क्षेत्रों को छोड़ दिया गया था। पूरी तरह से टाली जा सकने वाली इस अनिश्चितता के बावजूद, वस्तुओं का निर्यात वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 422 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया।
इस साल, सरकार को वस्तुओं का निर्यात कम से कम 450 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। लेकिन जुलाई और अगस्त माह में विकास दर लुढ़क कर इकाई अंकों में सिमट गया है। उधर, मार्च से हर महीने आयात 60 बिलियन डॉलर से अधिक का हो गया है। विकास दर में वैश्विक सुस्ती और यूरोप एवं अमेरिका में मंदी की आशंका अच्छे संकेत नहीं दे रही है। यों तो ऑर्डर हुए पड़े हैं, लेकिन ढेर सारे खरीदार डिलीवरी को टालना चाहते हैं। नई नीति में निर्यात
को गति प्रदान करने और बढ़ती ब्याज दरों पर लगाम सहित उद्योग जगत की कुछ प्रमुख चिंताओं को दूर करने के तरीके खोजने होंगे। अब जबकि राजस्व में उछाल है, यह समय फार्मा, रसायन, और लोहा एवं इस्पात जैसे विकास के प्रमुख क्षेत्रों को शुल्क छूट योजना से बाहर रखने के रुख पर पुनर्विचार करने का भी है। फिलहाल के लिए भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचे के व्यापार के रास्ते से दूर रहने का निर्णय लेने के बाद, यह कहना कि सरकार के पास नई मुक्त व्यापार संधि वार्ता के लिए 'कोई दायरा या बैंडविड्थ' नहीं बचा है जबकि कई देश इसके लिए मनुहार कर रहे हैं और वह खाड़ी सहयोग परिषद के साथ बातचीत को धीमा करना चाहती है, गैरजरूरी है। अगर कोई वास्तविक समस्या है, तो उसका समाधान बचे हुए बैंडविड्थ के साथ आर्थिक नीति निर्माताओं को शामिल करके खोजा जाना चाहिए। लेकिन यह तय है कि संभावित साझेदार देशों, छोटे ही सही, को दूर भगाने के मुकाबले भारत के बढ़ते दबदबे को सुनिश्चित करने के बेहतर विकल्प उपलब्ध हैं।
विकल्प रणनीति
भा रतीय शोधकर्ताओं ने एक ऐसी रणनीति विकसित की है, जिसमें हाइड्रोफोबिक घटकों के साथ प्रचलन से बाहर हो चुकी एंटी-बायोटिक दवाओं के संयोजन के उपयोग से एंटी-बायोटिक प्रतिरोधी क्षमता वाले रोगजनक बैक्टीरिया का मुकाबला किया सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि हाइड्रोफोबिक घटकों और पुरानी एंटी-बायोटिक दवाओं का संयोजन रोगजनक सूक्ष्मजीवों का मुकाबला करने के साथ-साथ अप्रचलित हो चुकी एंटी-बायोटिक दवाओं की प्रभावकारिता को पुनर्जीवित करने में मदद कर सकता है।
शोधकर्ताओं का दावा है कि यह रणनीति महत्वपूर्ण रोगजनक बैक्टीरिया समूह का मुकाबला कर सकती है, जिससे मौजूदा एंटी-बायोटिक शस्त्रागार को जटिल संक्रमणों के लिए फिर से उपयोग किया जा सकेगा। शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध के बढ़ते खतरे का मुकाबला करने में भी यह रणनीति मदद कर सकती है।
यह अध्ययन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से सम्बद्ध स्वायत्त संस्थान जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (JNCASR), बेंगलूरू के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा इस संबंध में जारी वक्तव्य में यह जानकारी प्रदान की गई है।
भारतीय शोधकर्ताओं ने एक ऐसी रणनीति विकसित की है, जिसमें हाइड्रोफोबिक घटकों के साथ प्रचलन से बाहर हो चुकी एंटी-बायोटिक दवाओं के संयोजन के उपयोग से एंटी-बायोटिक प्रतिरोधी क्षमता वाले रोगजनक बैक्टीरिया का मुकाबला किया सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि हाइड्रोफोबिक घटकों और पुरानी एंटी-बायोटिक दवाओं का संयोजन रोगजनक सूक्ष्मजीवों का मुकाबला करने के साथ-साथ अप्रचलित हो चुकी एंटी-बायोटिक दवाओं की प्रभावकारिता को पुनर्जीवित करने में मदद कर सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एसिनेटोबैक्टर बाउमनी (Acinetobacter baumannii), स्यूडोमोनास एरुगिनोसा (Pseudomonas aeruginosa) और एंटरोबैक्टीरियासी (Enterobacteriaceae) बैक्टीरिया का सीमांकन किया है, जो सभी कार्बापेनम (एंटी-बायोटिक एजेंटों का एक वर्ग) के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता वाले महत्वपूर्ण रोगजनकों के रूप में प्रतिरोधी हैं। ऐसे जटिल संक्रमणों के उपचार के लिए विभिन्न एंटी-बायोटिक दवाओं के संयोजन के उपयोग को ट्रिगर करने वाले इन जीवाणुओं के लिए उपचार विकल्प सीमित हैं। ऐसे में, इनसे निपटने के लिए नई गैर-पारंपरिक चिकित्सीय रणनीति विकसित करना समय की माँग है।
इस अध्ययन विकल्प रणनीति में, वैज्ञानिकों ने मौजूदा एंटी-बायोटिक दवाओं के साथ सहायक घटकों संयोजन का उपयोग करके उन्हें पुनः प्रभावी बनाने का दृष्टिकोण पेश किया है। यह नया विचार अप्रचलित एंटी-बायोटिक दवाओं की गतिविधि को मजबूत करने और जटिल संक्रमणों के इलाज के लिए उन्हें वापस उपयोग में लाने में मदद कर सकता है।
इस अध्ययन से विकल्प रणनीति जुड़े शोधकर्ताओं, गीतिका ढांडा और प्रोफेसर जयंत हलदर ने ट्रायमाइन युक्त यौगिक में चक्रीय हाइड्रोफोबिक मौएट्स (एक अणु का हिस्सा) को शामिल किया है। इस प्रकार विकसित सहायक घटक बैक्टीरिया की झिल्ली को कमजोर कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप झिल्ली से जुड़े प्रतिरोध तत्वों, जैसे पारगम्यता अवरोध और इफ्लक्स पंपों द्वारा एंटी-बायोटिक दवाओं के निष्क्रमण का मुकाबला किया। जब इन सहायक पदार्थों का उपयोग एंटी-बायोटिक दवाओं के संयोजन में किया जाता है, जो ऐसी झिल्ली से जुड़े प्रतिरोधी तत्वों के विकल्प रणनीति कारण अप्रभावी हो गए थे, तो एंटी-बायोटिक्स शक्तिशाली हो गए और संयोजन बैक्टीरिया को मारने में प्रभावी था।
शोधकर्ताओं का कहना है कि फ्यूसिडिक एसिड, मिनोसाइक्लिन और रिफैम्पिसिन जैसी एंटी-बायोटिक दवाओं के साथ सहायक घटक का संयोजन मल्टी-ड्रग-प्रतिरोधी ग्राम-नकारात्मक बैक्टीरिया को निष्क्रिय कर सकता है। इनमें एसिनेटोबैक्टर बॉमनी, स्यूडोमोनास एरुगिनोसा और एंटरोबैक्टीरियासी शामिल हैं। यह अध्ययन एसीएस इन्फेक्ट जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस कार्य के लिए वास्तविक जीव (In-Vivo) मॉडल में उचित सत्यापन और फिर प्री-क्लिनिकल अध्ययन की आवश्यकता है।
'इसराइली-फ़लस्तीनी संघर्ष का प्रबन्धन, सार्थक राजनैतिक प्रक्रिया का विकल्प नहीं'
मध्य पूर्व शान्ति प्रक्रिया के लिये संयुक्त राष्ट्र के विशेष समन्वयक टोर वैनेसलैण्ड, मध्य पूर्व की स्थिति पर सुरक्षा परिषद की बैठक को सम्बोधित करते हुए, जिसमें फ़लस्तीन का सवाल भी शामिल था.
'इसराइली-फ़लस्तीनी संघर्ष का प्रबन्धन, सार्थक राजनैतिक प्रक्रिया का विकल्प नहीं'
मध्य पूर्व शान्ति प्रक्रिया के लिये संयुक्त राष्ट्र के विशेष समन्वयक टोर वैनेसलैण्ड ने गुरूवार को सुरक्षा परिषद में कहा कि फ़लस्तीनियों व इसराइलियों के बीच संघर्ष का प्रबन्ध करना, एक वास्तविक राजनैतिक प्रक्रिया का विकल्प नहीं हो सकता, और इस सच्चाई को हाल की कुछ घटनाओं ने एक बार फिर उजाकर कर दिया है.
उन्होंने सुरक्षा परिषद में मौजूद प्रतिनिधियों से अपना ध्यान - फ़लस्तीनी क्षेत्र पर इसराइली क़ब्ज़े को ख़त्म करने और दो – राष्ट्रों की स्थापना के एक दुर्लभ नज़र आ रहे समाधान के लिये एक वृहद रणनीति पर केन्द्रित करने का आग्रह भी किया.
टोर वैनेसलैण्ड ने कहा, “इस तरह की किसी रणनीति के लिये, सभी पक्षों से अति महत्वपूर्ण क़दमों की ज़रूरत होगी. इसमें इसराइल के साथ राजनैतिक, आर्थिक और सुरक्षा मुद्दों पर सम्पर्क क़ायम करने के लिये, फ़लस्तीनी प्राधिकारण की सामर्थ्य को मज़बूत करना भी शामिल होगा. साथ ही ग़ाज़ा पट्टी में एक वैध फ़लस्तीनी सरकार की वापसी की दिशा में काम विकल्प रणनीति करना भी इसका हिस्सा होगा.”
उन्होंने इसराइल द्वारा क़ाबिज़ तमाम फ़लस्तीनी क्षेत्र में, तनाव और हिंसा कम करने की पुकार लगाई, विशेष रूप से, पश्चिमी तट में, जिसमें पूर्वी येरूशेलेम भी शामिल है.
उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा, “नकारात्मक चलन या रुझानों के बढ़ावा देने वाले इकतरफ़ा क़दमों को रोकना होगा.” फ़लस्तीनियों की आर्थिक गतिविधियों के लिये स्थान, और ग़ाज़ा व पश्चिमी तट में आवागन की आज़ादी और बेहतरी का दायरा बढ़ाए जाने की भी ज़रूरत है.
युद्ध विराम से पूर्ण युद्ध टला
विशेष समन्वयक टोर वैनेसलैण्ड ने युद्ध विराम के फ़ायदों का ज़िक्र करते हुए बताया कि इसराइल और फ़लस्तीनी इस्लामिक जिहाद, के बीच युद्ध विराम अभी लागू है और ग़ाज़ा में एक “नाज़ुक शान्ति” बहाल हुई है.
उन्होंने राजदूतों को बताया कि पक्के तौर पर कहा जाए तो युद्ध विराम ने तनावपूर्ण स्थिति को, एक पूर्ण स्तर के युद्ध में तब्दील होने से रोका है.
संघर्ष के अनसुलझे कारक
क़ाबिज़ पश्चिमी तट के अधिकतर हिस्से में हिंसा में बढ़ोत्तरी देखी गई है.
क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में यहूदी बस्तियाँ बसाने की इसराइल की गतिविधियाँ जारी हैं, साथ ही इसराइल द्वारा, फ़लस्तीनियों के घरों व सम्पत्तियों को जबरन ख़ाली कराना व ध्वस्त किया जाना भी जारी है.
दूसरी तरफ़, वित्तीय व राजनैतिक चुनौतियाँ, सर्वजनिक सेवाओं असरदार तरीक़े से जारी रखने में, फ़लसक्तीनी प्राधिकरण की सामर्थ्य विकल्प रणनीति के लिये ही जोखिम उत्पन्न कर रही हैं.
टोर वैनेसलैण्ड ने कहा कि पश्चिमी तट और ग़ाज़ा के बीच राजनैतिक विभाजन बरक़रार है. ग़ाज़ा के लोगों विकल्प रणनीति को, इसराइल द्वारा हमास की सरकार पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिये लगाई गई पाबन्दियों व नाकेबन्दी के कारण वहाँ के लोगों को भारी तकलीफ़ें उठानी पड़ रही हैं. तनाव व हिंसा के कुछ अन्य सम्भावित कारकों में हमास शासन की प्रकृति और हर समय हिंसा का जोखिम बरक़रार रहना भी शामिल है.
उन्होंने आगाह करते हुए कहा, “जब तक इन बुनियादी मुद्दों के समाधान निकालने के लिये ध्यान नहीं दिया जाएगा तो अत्यन्त गम्भीर संकटों और उनके बाद और लघु अवधि वाले समाधानों का सिलसिला जारी रहेगा.”
क्षेत्रीय समीकरण टोर वैनेसलैण्ड ने गोलान पहाड़ियों का ज़िक्र करते हुए कहा कि इसराइल और सीरिया के बीच युद्ध विराम आमतौर पर लागू रहा है, अलबत्ता, 1974 के समझौते के उल्लंघन की कुछ घटनाएँ भी हुई हैं.
लेबनान में सुधारों की गति में प्रगति का अभाव, सरकार गठन में गतिरोध व सशस्त्र व सुरक्षा बलों जैसे संस्थानों पर बढ़ते दबाव के कारण, सरकार प्राधिकरण पर भारी बोझ पड़ रहा है.
लेबनान के दक्षिणी इलाक़े में तनाव अब भी बरक़रार है जहाँ संयुक्त राष्ट्र का अन्तरिम बल (UNIFIL) के अभियान जारी हैं.
कार्रवाई की पुकार
उन्होंने कहा, “यथास्थिति कोई रणनीति नहीं है.” उन्होंने इसराइली व फ़लस्तीनी नेतृत्व, क्षेत्रीय देशों और वृहद अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, सार्थक बातचीत के लिये वापसी को सम्भव बनाने की ख़ातिर, ठोस कार्रवाई करने का आग्रह किया.
निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प दी गयी दिव्यांगता और संबंधित विद्यार्थियों के समावेशन हेतु यथोचित संयोजन रणनीति का सही युग्म है?
समावेशी शिक्षा उन सभी बच्चों को शिक्षित करने का एक दृष्टिकोण है जो शिक्षा प्रणाली में उपेक्षा के जोखिम में हैं। यह अपेक्षा करती है कि सभी शिक्षार्थी सामान्य विकल्प रणनीति शैक्षिक प्रावधानों तक पहुंच के माध्यम से एक साथ सीखें।
- प्रणाली में महत्वपूर्ण लोग माता-पिता, समुदाय, शिक्षक, प्रशासक और नीति निर्माता हैं। इन सभी लोगों को बच्चों की विविध जरूरतों का समर्थन करना होगा। इसे एक समस्या के बजाय एक अनुभव के रूप में देखा जाना चाहिए। इन बच्चों को प्रभावी ढंग से सीखने के लिए सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
Key Points
दिव्यांगता (अक्षमता) के प्रकार:
- प्रतिभाशाली: प्रतिभाशाली बच्चों को शिक्षित करने के विकल्पों में विद्यालय में जल्दी प्रवेश, त्वरण और पाठ्यक्रम का संवर्धन शामिल है। कुछ प्रतिभाशाली बच्चों को सामाजिक समायोजन में परेशानी हो सकती है और भावनात्मक गड़बड़ी भी दिख सकती हैं। वे नियमित पाठ्यक्रम से ऊब भी महसूस कर सकते हैं। उन्हें आसान प्रश्न देना उनकी समस्या का पसंदीदा समाधान नहीं है।
- स्वलीनता: यह सामाजिक संकेतों को समझने और प्रतिक्रिया करने में निरंतर हानि, असामान्य भाषा विकास, उपयोग, प्रतिबंधित तथा रूढ़िवादी व्यवहारिक प्रतिरूप इसके लक्षण है। स्वलीनता से पीड़ित व्यक्ति लक्षण अभिव्यक्ति, संज्ञानात्मक स्तर और अनुकूली क्षमताओं में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। कक्षा के वातावरण में अचानक परिवर्तन विभिन्न प्रकार की समस्याओं का कारण बन सकता है।
- पठनवैकल्य : यह एक प्रकार का विकार है जो स्नायविक है और लेखन में समस्या होना इसका लक्षण है। यह छात्रों को कुछ भी विशिष्ट बनाने विकल्प रणनीति या लिखने में असमर्थ बनाता है। विद्यार्थी सूक्ष्म चित्र नहीं बना सकते, अतः यह तकनीक उनके लिए अक्षम है।
- वाक् हानि : वाक् हानि का लक्षण सामान्य विकल्प रणनीति वाक् प्रतिरूप बनाने में कठिनाई होना है। इन विकारों में गति ध्वनि विकार / अभिव्यक्ति विकार, आवाज विकार, प्रवाह विकार आदि शामिल हैं। धैर्य दिखाने और छात्रों को प्रतिक्रिया देने के लिए पर्याप्त समय देने से छात्रों को ध्वनियों को प्राप्त करने और व्यक्त करने में मदद मिलती है।
अतः, वाक् हानि: धैर्य दिखाना और प्रतिक्रिया देने के लिए पर्याप्त समय देना, दी गयी दिव्यांगता और संबंधित विद्यार्थियों के समावेशन हेतु यथोचित संयोजन रणनीति का सही युग्म है।
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Last updated on Oct 25, 2022
Detailed Notification for CTET (Central Teacher Eligibility Test) December 2022 cycle released on 31st October 2022. The last date to apply is 24th विकल्प रणनीति November 2022. The CTET exam will be held between December 2022 and January 2023. The written exam will consist of Paper 1 (for Teachers of class 1-5) and Paper 2 (for Teachers of classes 6-8). Check out the CTET Selection Process here. Candidates willing to apply for Government Teaching Jobs must appear for this examination.
राजे को साधने भाजपा तलाश रही कर्नाटक फॉर्मूला: राजस्थान में चुनाव से पहले की रणनीति में वसुंधरा राजे अहम, उनके लिए BJP के पास 3 विकल्प
भाजपा राजस्थान में 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को साधने का तरीका खोज रही है। पार्टी का मानना है कि राज्य में पार्टी की एकजुटता को लेकर कार्यकर्ताओं में संशय और लोगों के बीच सवाल नहीं उठे। फिलहाल, पार्टी वसुंधरा को लेकर जिस कर्नाटक फॉर्मूले पर मंथन कर रही है। यदि वह सफल होता है तो राज्य में नेतृत्व के यक्ष प्रश्न का समाधान निकल जाएगा।
कर्नाटक मॉडल से आश्वस्त थी वसुंधरा
पिछले हफ्ते वसुंधरा की नई दिल्ली में संगठन महामंत्री बीएल संतोष, राज्य के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह और अन्य नेताओं से बैठक हुई। सूत्रों के अनुसार, बैठक में विकल्प रणनीति कर्नाटक मॉडल पर विस्तार से चर्चा हुई। वसुंधरा आश्वस्त नजर आईं। एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राजे, प्रदेश-केंद्र का कोई भी नेता हो सबका लक्ष्य विधानसभा चुनाव में बड़े अंतर से जीत हासिल करना है। इसके लिए चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाए या नेता घोषित कर लड़ा जाए इसको लेकर अलग-अलग राय हो सकती है।
राजे को लेकर भाजपा अपना सकती है ये विकल्प
- पार्टी वसुंधरा को प्रदेश अध्यक्ष बना कर चुनाव लड़े।
- उन्हें येदियुरप्पा की तरह पूर्व निर्धारित शर्तों के साथ सीएम प्रोजेक्ट कर दे।
- कैंपेन कमेटी का मुखिया बना कर पार्टी सामूहिक नेतृत्व में लड़े।
अरुण सिंह- सामूहिक चुनाव लड़ती है भाजपा
दूसरा सवाल है मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में ही चुनाव हो या नया अध्यक्ष हो इसको लेकर भी अलग-अलग राय हो सकती हैं। पार्टी के एक नेता कहते हैं कि राजस्थान में इस तरह के सवाल पहले भी आते रहे हैं। नेता कौन होगा? प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा? लेकिन यह सब मुद्दे उचित समय पर हल हो गए हैं। इस बार भी यही होगा।
भाजपा महासचिव अरुण सिंह ने कहा कि राजे बड़ी नेता हैं। भाजपा हमेशा सामूहिक रूप से ही चुनाव लड़ती है और इस बार भी ऐसा ही होगा।
क्या है कर्नाटक फॉर्मूला
कर्नाटक में 2018 के चुनाव में येदियुरप्पा को अध्यक्ष बनाया गया। इसको लेकर पार्टी में राय अलग थी।फिर उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया गया। पार्टी ने जीत हासिल की। लेकिन शपथ लेने के बाद बहुमत से कम होने की वजह से उन्हें हटना पड़ा। बाद में येदियुरप्पा जेडीएस-कांग्रेस की सरकार गिराकर सीएम बने।आला कमान ने उन्हें इस बात के लिए बाद में राजी कर लिया कि, वह पद छोड़ दें और अन्य को मौका दें। येदियुरप्पा ने ऐसा ही किया। पद छोड़ने के बाद पार्टी ने उनका सम्मान रखा और उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड में जगह दी।