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ईटीएफ के साथ आसानी से विदेशी मुद्रा में निवेश करें

ईटीएफ के साथ आसानी से विदेशी मुद्रा में निवेश करें

विदेशी शेयर बाजार से प्रॉफिट कमाना चाहते हैं तो निवेश की इन गलतियों से बचें

घरेलू बाजार के खराब रिटर्न के बाद आप अंतरराष्ट्रीय मार्केट में निवेश कर सकते हैं लेकिन इसका सही तरीका क्या है?

शंकर शर्मा और देविना मेहरा

हमने 2019 में मॉर्निंगस्टार सम्मेलन में एक प्रेजेंटेशन दी जिसने निवेशकों के बीच काफी हलचल पैदा कर दी थी। प्रेजेंटेशन का विषय यह था कि भारतीय इक्विटी बाजार ने पिछले 10, 5, 3 और 1 वर्ष की अवधि में बेहद निराशाजनक रिटर्न दिए हैं ।

2010 से अब तक, डॉलेक्स (अमेरिकी डॉलर में सेंसेक्स) 6% नीचे है। इसका मतलब है कि अमेरिकी डॉलर में भारतीय बाजारों ने पिछले 10 साल में नेगेटिव रिटर्न दिया है। 2019 के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं।

2019 के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं।

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बाकी बाजारों की बात छोड़ भी दें, तब भी यह बात ध्यान देने लायक है कि तुर्की जैसे बाजार ने भी भारत से बेहतर प्रदर्शन किया। इससे भी ज्यादा चौंका देने वाली बात यह है कि FD और बॉन्ड जैसे दुनिया भर के फिक्स्ड रिटर्न देने वाले प्रोडक्ट्स ने भी भारत के शेयर बाजार से ज्यादा रिटर्न दिया।

इन डेटा से इमर्जिंग मार्केट और खासकर भारतीय निवेशकों के लिए एक बात साफ हो गई कि एक देश, एक मुद्रा, एक एसेट का रिस्क लॉन्गटर्म रिटर्न और रिस्क मैनेजमेंट के लिए ठीक नहीं है। लिहाजा इंटरनेशनल डायवर्सिफिकेशन यानी अमेरिकी या यूरोपीय बाजारों में निवेश बढ़ा है। लेकिन दुर्भाग्य से इसके परिणाम भी अच्छे नहीं रहे।

अंतरराष्ट्रीय बाजार खासतौर पर अमेरिकी बाजार, पिछले 2 महीनों में भारतीय बाजारों के मुकाबले कहीं ज्यादा गिरे हैं। तो अब हर किसी के दिमाग में यह सवाल है कि अंतरराष्ट्रीय निवेश में गलती कहां हुई थी?

इस सवाल का जवाब आसान नहीं हैं। इसकी शुरुआत आसान जवाब से करते हैं। अंतराराष्ट्रीय डायवर्सिफिकेशन एक बहुत कठिन और जटिल प्रक्रिया है। व्यावहारिक रूप से इसका कोई सीधा या आसान तरीका नहीं है। सही मायने में डॉलर एक्स्पोज़र से अलग कोई सही डायवर्सिफिकेशन नहीं देते हैं।

विदेशी शेयर बाजार में निवेश कनरे का कोई आसान तरीका नहीं है। आइए हम जानते हैं कि विदेश बाजार में निवेश करने के क्या ऑप्शन हैं।

फीडर फंड के जरिए

अंतराराष्ट्रीय निवेश का सबसे आसान तरीका लोकल फंड हाउस के जरिए अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय फंडों के फीडर फंड में निवेश करना है।

फीडर फंड की मुश्किल

सबसे पहले, इन फीडर फंड्स से आपको असल डायवर्सिफिकेशन नहीं मिलता है। अब, आपने एक के बजाय दो बाजारों में निवेश किया है पर इससे डायवर्सिफिकेशन नहीं मिलता। ये फीडर फंड्स का खर्च यानी एक्सपेंस रेशियो 2-3% के लगभग होता है जो कि असल में काफी अधिक है।

इस खर्च का अनुपात इतना ज्यादा इसलिए है क्योंकि विदेश के फीडर फंड बेचने वाले भारतीय फंड हाउस को बिना किसी काम के फीस मिल मिलती है। आप अपने फंड पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों फंड मैनेजर को फीस देते हैं। साथ ही आपके फीडर फंड को लेकर घरेलू फंड मैनेजरों की कोई जवाबदेही नहीं होती है। क्योंकि असल निवेश प्रबंधन तो न्यूयॉर्क या लंदन में बैठा कोई व्यक्ति या फंड हाउस कर रहा होता है। घरेलू इकाई महज एक मध्यस्थ होती है।

इंटरनेशनल एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ETF) खरीदना

इंटरनेशनल मार्केट में निवेश करने का यह सबसे पॉपुलर तरीका है। फीडर फंड्स की तुलना में इसकी एक बात अच्छी होती है कि इसकी कॉस्ट कम होती है।

अब सवाल यह है कि निवेशक कैसे तय करता है कि कौन सा ETF खरीदना है? इन ETF के माध्यम से किन बाजारों में निवेश करना है? वह रिस्क और रिटर्न को कैसे संतुलित करें?

बाजार और अलग-अलग ऐसेट क्लासेस का एक सही पोर्टफोलियो बनाने के क्या मायने हैं और यह कैसे तय करें?

ETF निवेश के लिहाज से सबसे सटीक है। जानकार निवेशकों के लिए ही ठीक काम करते हैं या कर सकते हैं क्योंकि सबसे अहम यह फैसला रहता है कि किस समय और किस अनुपात में कौन सा ETF खरीदना है।

और जहां तक अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के शेयर या अन्य सिक्योरिटीज खरीदने का संबंध है वह आम निवेशकों के बस की बात नहीं है क्योंकि इसमें बड़े पैमाने पर जोखिम और अस्थिरता हो सकती है।

याद रखें, विश्व स्तर पर, अमेरिका सहित, स्टॉक समय-समय पर 20-50% तक गिर जाते हैं। यह गिरावट तभी आ सकती है जब उनके नतीजे पूर्व अनुमान से थोड़ा भी कम आए।

अंतरराष्ट्रीय डायवर्सिफिकेशन का सही तरीका क्या है?

ऊपर बताए गए कोई भी तरीका सही अंतरराष्ट्रीय डायवर्सिफिकेशन नहीं देता है। कि सभी रास्तों की अपने-अपने समस्यायें हैं।

अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए और डायवर्सिफिकेशन के लिए एक ही सही रास्ता है और वह है टॉप डाउन ऐसेट एलोकेशन का, यानी कि सही तरीके से एसेट्स का आवंटन करना।

बिना इस बात को समझे और व्यवहार में लाए केवल एक फीडर फंड या एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश भी कितना खतरनाक हो सकता है। नैस्डेक के हाल के प्रदर्शन से यह साफ है जब पिछले 1 महीने के भीतर ही अधिकांश शेयर 40-50% नीचे आ गए।

गौर करने की बात यह है कि किसी भी समय किसी ना किसी एसेट क्लास में तेजी होती है। मसलन, 1998 में टेक्नोलॉजी, 2004-07 तक इमर्जिंग मार्केट्स, 2003-08 तक कमोडिटी, 2010 से अमेरिकी फिक्स्ड और 2009 से फिक्स्ड इनकम। जबकि इस दौरान बाकी एसेट क्लास में सुस्ती रहती है।

अंतरराष्ट्रीय निवेश करने के लिए आप जिस फंड मैनेजर को चुने उसमें यह क्षमता होनी चाहिए कि वह अलग अलग ऐसेट क्लासेस जैसे अंतर्राष्ट्रीय इक्विटी, फिक्स्ड इनकम, कमोडिटी इत्यादि को समझ कर पोर्टफोलियो बना सके।

इससे भी अहम बात है कि आपके फंड मैनेजर के पास इन आवंटन को तेजी से मैनेज करने का कौशल होना चाहिए। यानी जो पोर्टफोलियो बनाया है उसको समय-समय पर कैसे चेंज करें और आवंटित करें। अगर आप सही तरीक से आवंटन नहीं करते तो भी आपका नुकसान होना तय है।

अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है कि फंड मैनेजर ऐसा होना चाहिए जो आपकी आवश्यकताओं को समझे और आपके निवेश की योजना बनाने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध हो बजाय इसके की निवेश प्रबंधन की प्रक्रिया आप से हजारों मील दूर हो जिसके बारे में आपको सीधे-सीधे कुछ पता भी नहीं लगा सके।

शंकर शर्मा और देविना मेहरा एक ग्लोबल एसेट मैनेजमेंट एंड सिक्योरिटीज फर्म, फर्स्ट ग्लोबल के संस्थापक हैं।

एनआरआई भारत में म्यूचुअल फंड में कैसे निवेश कर सकते हैं?

एनआरआई भारत में म्यूचुअल फंड में कैसे निवेश कर सकते हैं?

How can NRI invest in mutual funds in India – भारतीय शेयर बाजार अनिवासी भारतीयों (NRI) के लिए भारत में अपने पैसे का पुनर्निवेश करने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है। हालांकि आवश्यक अनुभव वाले एनआरआई सीधे स्टॉक में निवेश कर सकते हैं। म्यूचुअल फंड सभी प्रकार के निवेशकों के लिए एक समझदार और लागत प्रभावी विकल्प हैं। अनिवासी भारतीय (NRI) भारतीय म्यूचुअल फंड स्कीमों में निवेश कर सकते हैं । इसके लिए उन्हें फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के प्रावधानों को पूरा करना होगा। इसके लिए उन्हें सबसे पहले एनआरआई अकाउंट खुलवाना होगा । इसके पश्चात एनआरई या एनआरओ खातों की रकम का इस्तेमाल म्यूचुअल फंड की स्कीमों में पैसा लगाने के लिए कर सकते हैं। आईये जानते है, कि अनिवासी भारतीय भारत में म्यूचुअल फंड में कैसे निवेश कर सकते हैं ? इसके साथ ही इसकी प्रक्रिया और नियम के बारें में पूरी जानकारी ।

NRI भारत में म्यूचुअल फंड में कैसे निवेश कर सकते हैं?

भले ही कई एनआरआई भारतीय बाजार में निवेश कर रहे हैं, फिर भी कुछ लोगों को आश्चर्य होता है कि क्या वे भारतीय म्यूचुअल फंड में भाग ले सकते हैं । अनिवासी भारतीय (NRI), भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO), और भारत के प्रवासी नागरिक (OCI) भारतीय स्टॉक और म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं। यदि वह विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के प्रतिबंधों का पालन करते हैं। हालांकि विदेशी खाता कर अनुपालन अधिनियम द्वारा आवश्यक समय लेने वाली प्रक्रियाओं के कारण, कई म्यूचुअल फंड संस्थान संयुक्त राज्य और कनाडा (FATCA) में रहने वाले अनिवासी भारतीयों से म्यूचुअल फंड आवेदन स्वीकार करने से इनकार करते हैं।

भारत में एनआरआई म्यूचुअल फंड निवेश के क्या फायदे हैं?

What are the benefits of NRI mutual fund investment in India –भारत में म्यूचुअल फंड एनआरआई निवेश के लिए सबसे लोकप्रिय वित्तीय तंत्रों में से एक है। आइए नजर डालते हैं कुछ ऐसे फायदों पर जो भारत में म्यूचुअल फंड में निवेश करने से एनआरआई लाभ प्राप्त कर सकते है –

अनिवासी भारतीयों की मांगों को पूरा करने के लिए एनआरआई म्यूचुअल फंड योजनाएं तैयार की गई हैं। भारत में एनआरआई म्यूचुअल फंड निवेश को इक्विटी फंड (Equity Funds), डेट फंड (Debt Funds) और हाइब्रिड फंड (Hybrid Funds) इन 3 श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

स्टॉक म्यूचुअल फंड, जिन्हें अक्सर इक्विटी सिक्योरिटीज के रूप में जाना जाता है। म्यूचुअल फंड हैं, जो मुख्य रूप से शेयरों में निवेश करते हैं। डेट फंड म्यूचुअल फंड हैं, जो बॉन्ड और अन्य डेट इंस्ट्रूमेंट जैसे सरकारी बॉन्ड, कॉरपोरेट बॉन्ड और म्युनिसिपल बॉन्ड में निवेश करते हैं।

किसी भी स्थान से ऑनलाइन पैसे खरीदना और संभालना आसान है

एनआरआई इंटरनेट का उपयोग करके दुनिया में कहीं से भी म्यूचुअल फंड हासिल कर उनका प्रबंधन कर सकते हैं। एनआरआई अपने एनआरआई खातों का उपयोग म्यूचुअल फंड ऑनलाइन खरीदने और बेचने के लिए कर सकते हैं। निवेशक म्यूचुअल फंड योजनाओं में इकाइयों को स्थानांतरित कर सकते हैं और इंटरनेट के माध्यम से स्वचालित स्थानान्तरण या निकासी की व्यवस्था कर सकते हैं। चेक या डीडी भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है, न ही आपको भारत में भौतिक रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता है। आप अपने पैसे का ऑनलाइन ट्रैक रख सकते हैं और नियमित आधार पर मेल में समेकित खाता विवरण प्राप्त कर सकते हैं।

आपके पोर्टफोलियो का विविधीकरण (Diversifying Your Portfolio)

सामान्य तौर पर एनआरआई बैंक एफडी, सोना और रियल एस्टेट जैसी निश्चित आय वाली संपत्तियों में अनुपातहीन रूप से निवेश करते हैं। पोर्टफोलियो विविधीकरण और आय सृजन के संदर्भ में, म्यूचुअल फंड, ईटीएफ, प्रत्यक्ष स्टॉक और अन्य प्रतिभूतियों में एनआरआई निवेश एक बुद्धिमान विकल्प है। म्यूचुअल फंड विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों में निवेश करते हैं, जिनमें स्टॉक और फिक्स्ड-इनकम सिक्योरिटीज शामिल हैं। भारत में म्यूचुअल फंड में निवेश निवेशकों को विविधीकरण लाभ प्रदान करता है।

यदि रुपया बढ़ता है तो संभावना है कि आप अधिक पैसा कमाएंगे

यदि आप जिस देश में रहते हैं, उस देश की मुद्रा के मुकाबले भारतीय रुपये का मूल्य बढ़ता है, तो आपको अधिक लाभ होगा। उदाहरण के लिए यदि एक यूएस-आधारित एनआरआई एक भारतीय म्यूचुअल फंड में 1000 अमरीकी डालर डालते है । तो उन्हें 75 से 1 USD विनिमय दर, NRI को लाभ होगा यदि INR USD के मुकाबले बढ़ता है।

भारत की स्वर्ण नीतियों पर एक नजर

भारत की सोना सम्बन्धी नीतियों और नियमों में समय के साथ कई बदलाव आए हैं। आज एक विकासशील और पारदर्शी रवैये पर अधिक जोर है। फरवरी 2018 में वित्त मंत्री ने केन्द्रीय बजट के अपने भाषण में कहा कि सरकार सोने के व्यापार को एक परिसम्पत्ति के रूप में विकसित करने के लिए एक समग्र नीति तैयार करेगी। इसका अर्थ है कि शेयरों, बोंडों, संपत्ति और उपभोक्ता वस्तुओं की तरह सोने में किए गए निवेशों को भी एक छत्र के नीचे ले आया जाएगा।

भारत स्वर्ण मुद्रा जारी किए जाने या हॉलमार्किंग नियामकों को लागू किए जाने का प्रस्ताव जैसी हाल की घटनाओं से भारत में सोने की खरीद-फरोख्त के लिए भरोसेमंद मापदंड बनाने में मदद मिलेगी। चलिए, आजादी के बाद से भारत की स्वर्ण नीतियों में आने वाले बदलावों पर एक नजर डालते हैं।

प्रतिबंधों का चरण (1947 - 1962)

इस अवधि में सोने की आपूर्ति और इसके घरेलू मूल्य पर नियंत्रण रखने और साथ ही तस्करी पर लगाम लगाने वाली नीतियां बनाने पर जोर दिया गया।

‘फेरा’ यानी फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (1947) से विदेशी मुद्रा में भुगतान और व्यापार करने, और करेंसी ईटीएफ के साथ आसानी से विदेशी मुद्रा में निवेश करें और बुलियन के आयात-निर्यात पर नियंत्रण रखने में मदद मिली।

In 1956 में, भारत ने सोने के समर्थन वाली ‘प्रोपोर्शनल रिज़र्व सिस्टम’ की नीति अपना ली और देश में नकदी जारी करने के लिए एक न्यूनतम रिज़र्व सिस्टम का पालन किया जाने लगा। इसका अर्थ था कि रिज़र्व बैंक के लिए 200 करोड़ रुपए का सोना और विदेशी मुद्रा अपने पास रखना आवश्यक था, जिसमें से कम-से-कम 115 रूपए मूल्य का सोना होना अनिवार्य था।

1962 में अंतर्राष्ट्रीय सीमा के विवाद ने भारत का विदेशी मुद्रा का खजाना खाली कर दिया। इसके बाद सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए पहली गोल्ड बांड स्कीम शुरू की गई।

प्रतिबंधों का चरण (1963 - 1989)

1962 में, सरकार ने सोने के उत्पादन और लेन-देन पर कुछ अंकुश लगाते हुए गोल्ड कंट्रोल एक्ट (1968) बनाया। इसके बाद सोने के आयात में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी से रूपए का मूल्य तेजी से गिरता चला गया।

स्‍वर्ण नियंत्रण कानून के अंतर्गत प्रतिबंध:

  • 14 कैरट से अधिक शुद्धता वाले सोने के जेवर बनाने पर रोक लगा दी गई।
  • प्रत्येक व्यक्ति के पास सोने के जेवरों की सीमा तय कर दी गई।

सोने की तस्करी को कम करने और बजट के घाटे को नियंत्रित करने के लिए कई स्कीमें शुरू की गईं। ऐसी ही एक स्कीम वोलंटरी डिस्क्लोजर ऑफ़ इनकम एंड वेल्थ (अमेंडमेंट) आर्डिनेंस (1975) से जुड़ी हुई थी, जिसके द्वारा लोगों को अपनी अघोषित आय की घोषणा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था।

इस उद्देश्य के लिए सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदमों में सोने की नीलामियों (1978) का आयोजन और गोल्ड ईटीएफ के साथ आसानी से विदेशी मुद्रा में निवेश करें बांड जारी करना इत्यादि शामिल थे।

उदारीकरण का चरण (1990 - 2011)

इस चरण में सरकार ने सोने के उद्योग पर लगे नियंत्रणों को धीरे-धीरे हटाना शुरू किया।

1990 में, सरकार ने गोल्ड कंट्रोल कानून को खत्म कर दिया। इसके साथ ही सोने के आयात की भी छूट दे दी गई, जिससे सरकार को आयात कर के रूप में नई आमदनी होने लगी।

अप्रवासी भारतियों को देश में सोना लाने की छूट देने के लिए नॉन-रेजिडेंट इंडियन स्कीम (1992) और स्पेशल इम्पोर्ट लाइसेंस स्कीम (1994) शुरू की गईं।

1997 तक बहुत-से बैंकों को देश में सोना लाने का अधिकार दे दिया गया था।

1999 में, सरकार ने निष्क्रय पड़े सोने को संचालन में ईटीएफ के साथ आसानी से विदेशी मुद्रा में निवेश करें ईटीएफ के साथ आसानी से विदेशी मुद्रा में निवेश करें लाने के लिए गोल्ड डिपाजिट स्कीम (जीएसटी) शुरू करके सोना धारकों को आय पर ब्याज प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया।

2002 के बाद से सोना और भी आसानी से उपलब्ध होने लगा। अब बैंकों को सोने के सिक्के (स्वर्ण मुद्रा) बेचने की अनुमति दे दी गई, और 2008 से तो आप पास के डाक घर में जाकर भी सोना खरीद सकते थे।

2007 में, गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ) के चालू होने के बाद भारत में सोना खरीदना और अपने पास रखना सुगमता के चरम पर पहुंच गया। सोने के लेन-देन के डिजिटल हो जाने से निवेश लचीला, गुणवत्ता का भरोसा और संग्रहन तनाव-मुक्त हो गया।

संबंधित:The Beginners Guide to Investing in Gold ETFs

2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद सोने पर लोगों का भरोसा और बढ़ गया। मांग के चरम पर पहुंच जाने से सोने के दाम तीन गुना हो गए।

उदारीकरण के चरण के खत्म होते-होते देश में सोने की मांग बहुत ज्यादा बढ़ चुकी थी, जो 2010 में 1001.7 टन पर पहुंच गई।

हस्तक्षेप का चरण (2012 - 2013)

वैश्विक अनिश्चितता और घरेलू सरकारी मामलों का असर भारत ईटीएफ के साथ आसानी से विदेशी मुद्रा में निवेश करें के निर्यात और निवेश प्रवाह पर पड़ा। सोने की मांग कम करने के लिए सरकार ने कुछ नीति सम्बन्धी हस्तक्षेप किए।

2012 और 2013 के बीच बार-बार बढ़ोतरी से सोने पर ड्यूटी 2% से 10% पर पहुंच गई।

बैंकों और पोस्ट ऑफिसों के माध्यम से सोने के सिक्कों के आयात पर रोक लगा दी गई।

80-20 नियम लागू होने के बाद सोना आयात करने वालों के लिए 20% निर्यात करना जरूरी हो गया। इस स्कीम के अंतर्गत कोई भी नया आयात करने से पहले 20% सोने का निर्यात करना जरूरी था। पिछले निर्यात का माल भेज देने के बाद ही आयात का नया माल मंगवाया जा सकता था।

पारदर्शिता का चरण (2014 - 2018)

इस चरण में सरकार देश के सभी आर्थिक मामलों में पारदर्शिता पर जोर दे रही है।

2014 में, 80-20 का नियम खत्म कर दिया गया और सोने के सिक्कों के आयात पर लगा प्रतिबन्ध भी हटा लिया गया।

2015 में, 1999 की गोल्ड डिपाजिट स्कीम को गोल्ड मोनेटाइज स्कीम के नाम से फिर से शुरू किया गया। साथ ही सोवेरन गोल्ड बांड भी शुरू किए गए, जिससे निवेशकों को पेपर बांड पर ब्याज मिलने लगा।

भारत का पहला राष्ट्रीय सोने का सिक्का भारत स्वर्ण मुद्रा के नाम से 2015 में जारी किया गया।

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2016 तक सरकार ने 2 लाख रूपए से अधिक के सोने की खरीद पर पैन कार्ड का उल्लेख करना अनिवार्य कर दिया था। 12 करोड़ रूपए से अधिक के टर्नओवर पर जोहरियों पर 1% एक्साइज़ ड्यूटी लगा दी गई। पर 99.5 से अधिक की शुद्धता वाले सोने के सिक्कों पर 1% की एक्साइज़ ड्यूटी हटा ली गई।

2018 के केन्द्रीय बजट में सरकार ने सोने को एक परिसम्पत्ति के रूप में विकसित करने के लिए एक समग्र स्वर्ण नीति बनाने की घोषणा की। सरकार ने देश में एक उपभोक्ता-समर्थक सिस्टम लाने और सोने के लेन-देन के लिए एक कुशल व्यापार प्रणाली लागू करने का भी फैसला क्या है। गोल्ड मोनेटाइज़ेशन स्कीम को विकसित करके लोगों के लिए एक चिंतामुक्त गोल्ड डिपाजिट खाता खोलना आसान बना दिया जाएगा।

सरकार के इन कदमों से प्रतीत होता है कि सरकार ऐसी स्वर्ण नीतियां बनाने में जुटी है, जो देश में सोना खरीदने वालों के लिए फायदेमंद हों।

Interview म्यूचुअल फंड बना एक श्रेष्ठ निवेश माध्यम: विवेक गोयल

मुंबई: हर निवेशक (Investor) चाहता है कि जहां वह निवेश (Invest) करें, वहां उसे अच्छी कमाई हो और अच्छी वेल्थ (Wealth) बने, लेकिन ईटीएफ के साथ आसानी से विदेशी मुद्रा में निवेश करें यह आसान नहीं है। इसके लिए विशेषज्ञता की जरूरत होती है और वेल्थ वहीं बन सकती है, जहां महंगाई दर (Inflation Rate) के दोगुने से ज्यादा यानी 10-12% से अधिक रिटर्न (Return) प्राप्त हो। वेल्थ मैनेजमेंट कंपनी टेलविंड फाइनेंशियल सर्विसेज (Tailwind Financial Services) के संयुक्त प्रबंध निदेशक विवेक गोयल (Vivek Goel) का मानना है कि केवल इक्विटी म्यूचुअल फंडों (Equity Mutual Funds) में ही लॉन्ग टर्म में महंगाई दर से ज्यादा रिटर्न प्रदान करने और वेल्थ बनाने की क्षमता है। इसी कारण म्यूचुअल फंड एक श्रेष्ठ निवेश माध्यम (Best Asset Class) के रूप में लोकप्रिय हो रहा है।

चार्टर्ड अकाउंटेंट और आईआईएम लखनऊ से एमबीए विवेक गोयल की कंपनी टेलविंड म्यूचुअल फंड, पीएमएस, एआईएफ, बॉन्ड, कार्पोरेट एफडी, स्टार्टअप इन्वेस्टमेंट, एसेट लीजिंग सहित विभिन्न निवेश माध्यमों में वेल्थ मैनेजमेंट सेवाएं (Wealth Management Services) प्रदान करती है। रिटेल निवेशकों के लिए निवेश मंत्र और शेयर बाजार के भावी परिदृश्य के संबंध में विवेक गोयल की वाणिज्य संपादक विष्णु भारद्वाज से विस्तृत चर्चा हुई। पेश हैं उसके मुख्य अंश:-

रिटेल निवेशक को वेल्थ बनाने के लिए कैसी रणनीति अपनानी चाहिए?

  • वेल्थ क्रिएशन के लिए सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात तो यह है कि इन्वेस्टर को अनुशासित और धैर्यशील रहना बहुत जरूरी है। भविष्य की अपनी वित्तीय जरूरतों को ध्यान में रख हमेशा योजनाबद्ध तरीके से सही एसेट क्लास में लंबी अवधि के लिए निवेश करना चाहिए। निवेश को नियमित रूप से ट्रैक करने के साथ समय-समय पर उसकी समीक्षा भी जरूरी है। फिर मंदी में कभी पैनिक यानी घबराहट में बेचना नहीं चाहिए, क्योंकि हर बाजार में तेजी-मंदी आती है। नियमित निवेश यानी एसआईपी (SIP) जारी रहनी चाहिए। तभी बाजार की तेजी-मंदी का फायदा मिलता है और लॉन्ग टर्म (Long Term) में रिटर्न अधिक मिलता है और वेल्थ बनती है।

रिटेल निवेशक के लिए म्यूचुअल फंड या पीएमएस, कौनसा अच्छा है?

  • वैसे तो दोनों अपनी जगह सही है, लेकिन पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस (PMS) में न्यूनतम निवेश सीमा 50 लाख रुपए होने से जोखिम अधिक होता है तो साथ ही रिटर्न भी अधिक मिलने की संभावना होती है, जबकि म्यूचुअल फंड में आप 500-1000 रुपए के छोटे निवेश से भी शुरूआत कर सकते हो। इसमें जोखिम कम होता है और विगत वर्षों में म्यूचुअल फंड एक श्रेष्ठ निवेश माध्यम बनकर उभरा है। जिसमें लाखों अनुशासित और धैर्यशील निवेशकों ने बढ़िया रिटर्न के साथ अच्छी-खासी वेल्थ बनाई है। इसी वजह से हर माह म्यूचुअल फंड निवेशकों की संख्या बढ़ रही है और देश में 13.33 करोड़ निवेशक खाते (Investor Folios) हो चुके हैं। जिसमें से 5.48 करोड़ तो एसआईपी खाते हो गए हैं।

म्यूचुअल फंडों की हजारों स्कीमें हैं, ऐसे में एक निवेशक इनमें से श्रेष्ठ का चयन कैसे करें?

  • यह सही है कि म्यूचुअल फंड स्कीमों की संख्या 1,000 से अधिक हो गयी हैं। उसमें भी इक्विटी, डेब्ट, बैलेंस्ड, हाइब्रिड, ईटीएफ, इंडेक्स फंड सहित अनेक कैटेगरी हैं। सबसे पहले तो निवेशक को अपनी जोखिम क्षमता और रिटर्न अपेक्षा के अनुसार कैटेगरी का चयन करना चाहिए। फिर फंड हाउस और फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड, स्कीम की परफॉर्मेंस, साइज, पोर्टफोलियो क्वालिटी, बेंचमार्क से तुलना इत्यादि कई पहलुओं से सोच-विचार करना चाहिए। अलग-अलग समय पर अलग-अलग कैटेगरी निवेश योग्य होती है। वर्तमान अस्थिर हालात में बैलेंस्ड और हाइब्रिड फंड अच्छे कहे जाएंगे।

पिछले दो साल बंपर रिटर्न के बाद इक्विटी मार्केट में भारी घट-बढ़ हो रही है। आगे मार्केट का आउटलुक कैसा लग रहा है?

  • देखिए, इस समय सबसे बड़ी चिंता क्रूड ऑयल और खाद्यान्नों की बढ़ती महंगाई है। इसी कारण भारत तथा अन्य देशों के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें (Interest Rates) बढ़ाकर लिक्विडिटी (Liquidity) कम कर रहे हैं। क्रूड ऑयल महंगा होने की वजह रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine war) है। इसलिए जब तक युद्ध खत्म नहीं होता और ऑयल कीमतें 100 डॉलर के नीचे नहीं आती है, मार्केट (Stock Market) में अस्थिरता रहेगी और तेजी आना मुश्किल है। हालांकि मार्केट में 8-10% से ज्यादा गिरावट की आशंका भी नहीं है, क्योंकि 600 अरब डॉलर से अधिक विदेशी मुद्रा भंडार के साथ इंडियन इकोनॉमी (Indian Economy) सबसे अच्छी पोजीशन में है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लिए सरकार की पीएलआई स्कीम (PLI Scheme) और अन्य आर्थिक सुधारों (Reforms) से तेज ग्रोथ (Growth) हो रही है। कार्पोरेट इंडिया (Corporate india) और बैंकिंग सेक्टर (Banking Sector) मजबूत स्थिति में है।

यह सभी जानते हैं कि मौजूदा महंगाई युद्ध के कारण आपूर्ति घटने से आ रही है तो क्या ब्याज दरों में वृद्धि से महंगाई घट जाएगी?

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