विदेशी मुद्रा समाचार

विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं?

विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं?

Types of Exchange Rate | विदेशी विनिमय दरों के प्रकार कितने हैं ?

< 1 >हाजिर अथवा तत्काल विनिमय दर तथा अग्रिम विनिमय दर [ Spot Exchange Rate and Forward Exchange Rate ] :- हाजिर अथवा तत्काल विनिमय दर ( Spot Exchange Rate ) से अभिप्राय: उस विनिमय दर से है जो वर्तमान में उदृत की जाती है और उस दर पर उसी समय विदेशी सौदा सम्पादित हो जाता है । विदेशी ( विनिमय क्रेता को हाजिर दर पर विदेशी विनिमय विक्रेता विदेशी विनिमय की सुपुर्दगी करता है ।

अग्रिम विनिमय दर ( Forward Exchange Rate ) से आशय उस विनिमय दर से है जो भविष्य की किसी निश्चित तिथि के लिये वर्तमान में तय की जाती है । यद्यपि अग्रिम विनिमय दर वर्तमान से तय कर ली जाती है किन्तु अग्रिम का सौदा भविष्य की किसी निश्चित तिथि पर पूरा होता है । अग्रिम विनिमय दर पर सौदा भविष्य में विनिमय दर में अनिश्चितता को दूर करने के उद्देश्य से किया जाता है ।

अनुकूल विनिमय दर ( Favorable Exchange Rate ) से अभिप्राय उस दर से है जब देश की एक मुद्रा इकाई से पहले के मुकाबले अधिक विदेशी मुद्रा इकाइयाँ खरीदी जा सकें । उदाहरणार्थ भारत के 1 ₹ = जापानी मुद्रा येन की 25 इकाइयाँ मिलती या अब अगर 1 ₹ = 27 येन हो जाय जो इसे अनुकूल विनिमय दर कहा जाता है । इस प्रकार अनुकूल विनिमय दर के अंतर्गत स्वदेशी मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा के रूप में बढ़ जाता है ।

प्रतिकूल कुल विनिमय दर ( Unfavorable Exchange Rate ) से तात्पर्य स्वदेशी मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा के रूप में घट जाने से है अर्थात देश की मुद्रा की एक इकाई के बदले विदेशी मुद्रा का मूल्य बढ़ जाता है उदाहरणार्थ अगर पहले भारत का एक रुपया = 26 येन था और अब भारत का एक रुपया = 24 येन रह जाय तो यह भारत के लिये प्रतिकूल विनिमय दर कही जायेगी ।

< 3 >क्रय एवं विक्रय विनिमय दरें [ Purchaging and Selling Exchange Rates ] :- विदेशी विनिमय बाजारों में विदेशी मुद्राओं का क्रय विक्रय देश के अधिकृत बैंकों/विदेशी विनिमय बैंकों द्वारा किया जाता है । ये बैंक विदेशी विनिमय के व्यवसाय में विदेशी मुद्रा खरीदने और बेचने की अलग-अलग दरें रखते हैं और उनमें अन्तर उनका लाभ होता है ।

क्रय विनिमय दर ( Purchasing Exchange Rate ) यह वह दर है जिस दर पर बैंक/विदेशी विनिमय बैंक विदेशी मुद्रा क्रय/खरीद करते हैं ।

विक्रय विनिमय दर ( Selling Exchange Rate ) से अभिप्रायः उस दर से है जिस दर पर बैंक विदेशी मुद्रा बेचते अथवा विक्रय करते है ।

बैंक सस्ती दर पर विदेशी मुद्रा क्रय करते है और अपेक्षाकृत महँगी विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा बेचते है । उदाहरणार्थ क्रय विनिमय दर 60 ₹ = 1 डॉलर, जबकि विक्रय दर 62 ₹ = 1 डॉलर ।

< 4 >अधिकृत एवं अनाधिकृत विनिमय दरें [ Official and Unofficial Exchange Rates ] :- विदेशी विनिमय के सौदे सरकार द्वारा घोषित अधिकृत दर के अलावा अगर अन्य दरों पर भी हो सकते हैं अतः ये दरें अलग-अलग हो सकती है ।

अधिकृत विनिमय दर ( Official Exchange Rate ) वह दर है जो सरकार द्वारा विदेशी विनिमय सौदों के लिये घोषित की जाती है यह सरकार द्वारा घोषित अधिकृत विनिमय दर होती है ।

गैर-अधिकृत अथवा अनाधिकृत विनिमय दर ( Unofficial Exchange Rate ) से अभिप्रायः उस दर से हैं जो सरकार द्वारा घोषित अधिकृत दर से प्रायः भिन्न होती विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं? है ।

< 5 >वास्तविक एवं सामान्य विनिमय दरें [ Actual and Normal Exchange Rates ] :- अल्पकाल और दीर्घकाल में विनिमय दरों से प्रायः अन्तर पाया जाता है किन्तु अल्पकाल की विनिमय दर दीर्घकालीन विनिमय दर से इर्द-गिर्द चक्कर काटती है ।

वास्तविक विनिमय दर ( Actual Exchange Rate ) वह दर है जो बाजार में प्रतिदिन विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति की सापेक्षित शक्तियों के साम्य से निर्धारित होती है अतः इस दर को बाजार दर भी कहते हैं उदाहरणार्थ अगर आज के दिन विदेशी मुद्रा की विनिमय दर 1 डॉलर = 60 ₹ होता है तो यह बाजार की वास्तविक विनिमय दर है । इसमें प्रतिदिन उतार-चढ़ाव हो सकते हैं । उदाहरणार्थ वास्तविक विनिमय दर 1 डॉलर = 60.50 ₹, 60.80 ₹, 59.50 ₹, 59.20 ₹ ।

सामान्य विनिमय दर ( Normal Exchange Rate ) वह दर है जो विदेशी विनिमय बाजार में दीर्घकाल में विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के साम्य से निर्धारित होती है । सामान्य विनिमय दर प्रायः स्थिर रहती है और वास्तविक विनिमय दर उसके इर्द-गिर्द चक्कर काटती है । उदाहरणार्थ सामान्य विनिमय दर 1 डॉलर = 60 ₹ ।

< 6 >प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष विनिमय दरें [ Direct and Indirect Exchange Rates ] :- विदेशी विनिमय बाजार में देश के लिये विनिमय दरों को व्यक्त करने की ये दो पद्धतियाँ है ।

प्रत्यक्ष विनिमय दर ( Direct Exchange Rate ) विदेशी विनिमय बाजार में जब विदेशी मुद्रा की एक इकाई का मूल्य देश की मुद्रा की इकाइयों में व्यक्त किया जाता है तो यह प्रत्यक्ष विनिमय दर है । उदाहरणार्थ 1 डॉलर = 60 ₹ ।

अप्रत्यक्ष विनिमय दर ( Indirect Exchange Rate ) जब विदेशी विनिमय बाजार में देश की मुद्रा की एक इकाई का मूल्य विदेशी मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जाता है तो यह अप्रत्यक्ष विनिमय दर कहते हैं उदाहरणार्थ भारत का 1 ₹ = 10 अमेरिकी सेन्ट ।

एकल विनिमय दर ( Single Exchange Rate ) से अभिप्राय उस दर से है जो सरकार द्वारा किसी देश की मुद्रा के लिये निर्धारित एक ही दर होता है । विदेशी विनिमय के सौदे के लिये यहाँ एक दर होती है उसके अलावा कोई अन्य दर नहीं होती है ।

बहु-विनिमय दर ( Multiple Exchange Rate ) से तात्पर्य उन विभिन्न विनिमय दरों से हैं जो सरकार द्वारा विशिष्ट परिस्थितियों में किसी देश की मुद्रा के बदले दो या उससे अधिक दरे निर्धारित करती है उदाहरणार्थ एक देश की सरकार अगर निर्यात के लिये एक विनिमय दर निर्धारित करती और आयतों के लिये दूसरी विनिमय दर निर्धारित करती है तो यह व्यवस्था बहु-विनिमय दर की सूचक है ।

< 8 >स्थिर एवं परिवर्तनशील विनिमय दरें [ Fixed and Flexible Exchange Rates ] :- आजकल स्थिर एवं परिवर्तनशील विनिमय दरों की बड़ी चर्चा है । कुछ विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं? विद्धान अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थिर विनिमय दर को श्रेष्ठ मानते है जबकि आज का युग परिवर्तनशील विनिमय दरों को श्रेष्ठ मानता है ।

स्थिर विनिमय दर ( Fixed Exchange Rate ) - जब किसी देश की मुद्रा का मूल्य अनुपात किसी दूसरे देश की मुद्रा के मूल्य से एक निश्चित अवधि तक स्थिर रहता है तो उसे स्थिर विनिमय दर कहा जाता है । दूसरे शब्दों में जब किसी देश द्वारा अपनी मुद्रा का मूल्य अनुपात किसी दूसरे देश की मुद्रा के मूल्य के साथ एक पूर्व निर्धारित समय तक स्थायी रखा जाता है । अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा स्थिर विनिमय दर की व्यवस्था लागू की गई थी ।

परिवर्तनशील विनिमय दर ( Flexible Rate of Exchange ) - से अभिप्रायः उस विनिमय दर से है जिसमें देश की मुद्रा का मूल्य अनुपात दूसरे देश की मुद्रा के साथ स्थिर नहीं रहती बल्कि देश की आर्थिक परिस्थितियों और विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति के परिवर्तन के साथ-साथ बदलता रहता है । इसमें मुद्रा का मूल्य अनुपात दूसरी मुद्रा के मूल्य से घटता-बढ़ता रहता है ।

विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं?

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सांसद और विधायक

राष्ट्रीय अवसंरचना वित्त पोषण और विकास बैंक बिल, 2021

  • राष्ट्रीय अवसंरचना वित्त पोषण (फाइनांसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर) और विकास बैंक बिल, 2021 को लोकसभा में 22 मार्च, 2021 को पेश किया गया। बिल इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनांसिंग के लिए मुख्य विकास वित्तीय संस्थान (डीएफआईज़) के तौर पर राष्ट्रीय अवसंरचना वित्त पोषण और विकास बैंक (एनबीएफआईडी) की स्थापना करने का प्रयास करता है। डीएफआईज़ की स्थापना अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों को दीर्घकालीन वित्त पोषण प्रदान करने के लिए की जाती है जहां जोखिम वाणिज्यिक बैंकों और दूसरे सामान्य वित्तीय संस्थानों की स्वीकार्य सीमा से परे होता है। बैंकों से अलग डीएफआईज़ लोगों से डिपॉजिट नहीं लेते। वे बाजार, सरकार, बहुपक्षीय संस्थानों से धनराशि जुटाते हैं और सरकारी गारंटियों के जरिए समर्थित होते हैं।
  • एनबीएफआईडी: एनबीएफआईडी को कॉरपोरेट बॉडी के तौर पर गठित किया जाएगा जिसकी अधिकृत शेयर पूंजी एक लाख करोड़ रुपए होगी। निम्नलिखित एनबीएफआईडी के शेयर धारक होंगे: (i) केंद्र सरकार, (ii) बहुपक्षीय संस्थाएं, (iii) सोवरिन वेल्थ फंड्स, (iv) पेंशन फंड्स, (v) बीमाकर्ता, (vi) वित्तीय संस्थान, (vii) बैंक और (viii) केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट अन्य संस्थान। शुरुआत में संस्थान के 100% शेयर्स पर केंद्र सरकार का स्वामित्व होगा जिसे बाद में कम करके अधिकतम 26% कर दिया जाएगा।
  • एनबीएफआईडी के कार्य: एनबीएफआईडी के वित्तीय और विकासपरक उद्देश्य होंगे। वित्तीय उद्देश्यों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उधार देना, निवेश करना या भारत में पूरी तरह या आंशिक रूप से स्थित इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स में निवेश को आकर्षित करना शामिल है। केंद्र सरकार निर्दिष्ट करेगी कि इंफ्रास्ट्रक्चर डोमेन में कौन से क्षेत्र आएंगे। विकासपरक उद्देश्य में इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनांसिंग के लिए बॉन्ड्स, ऋण और डेरेवेटिव्स के बाजार के विकास में मदद करना शामिल है। एनबीएफआईडी के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स को लोन और एडवांस देना, (ii) ऐसे मौजूदा लोन्स को ले लेना और उसका फिर से वित्त पोषण करना, (iii) इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स में निवेश के लिए निजी क्षेत्र के निवेशकों और संस्थागत निवेशकों को आकर्षित करना, (iv) इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स में विदेशी भागीदारी को सरल बनाना, (v) इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनांसिंग के क्षेत्र में विवाद निवारण के लिए विभिन्न सरकारी अथॉरिटीज़ से बातचीत को सुविधाजनक बनाना, और (vi) इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनांसिंग में परामर्श सेवाएं प्रदान करना।
  • धनराशि का स्रोत: एनबीएफआईडी लोन्स के रूप में भारतीय रुपयों और विदेशी मुद्रा, दोनों में धन जुटा सकता है या बॉन्ड्स और डिबेंचर्स सहित विभिन्न वित्तीय इंस्ट्रूमेंट्स को जारी करके और बेचकर धन प्राप्त कर सकता है। एनबीएफआईडी निम्नलिखित से धन उधार ले सकता है: (i) केंद्र सरकार, (ii) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), (iii) अधिसूचित वाणिज्यिक बैंक, (iv) विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक जैसे बहुपक्षीय संस्थान।
  • एनबीएफआईडी का प्रबंधन: बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स एनबीएफआईडी का प्रबंधन संभालेंगे। बोर्ड के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) आरबीआई की सलाह से केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त चेयरपर्सन, (ii) मैनेजिंग डायरेक्टर, (iii) अधिकतम तीन डेप्युटी मैनेजिंग डायरेक्टर्स, (iv) केंद्र सरकार द्वारा नामित दो डायरेक्टर्स, (v) शेयरहोल्डर्स द्वारा निर्वाचित अधिकतम तीन डायरेक्टर्स, और (vi) कुछ स्वतंत्र डायरेक्टर्स (जैसा निर्दिष्ट हो)। केंद्र सरकार द्वारा गठित एक निकाय मैनेजिंग डायरेक्टर और डेप्युटी मैनेजिंग डायरेक्टर्स के पद के लिए उम्मीदवारों के नामों का सुझाव देगा। बोर्ड आंतरिक समिति के सुझावों के आधार पर स्वतंत्र डायरेक्टर्स की नियुक्ति करेगा।
  • केंद्र सरकार से सहयोग: केंद्र सरकार पहले वित्तीय वर्ष के अंत में एनबीएफआईडी को 5,000 करोड़ रुपए का अनुदान विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं? देगी। सरकार बहुपक्षीय संस्थानों, सोवरिन वेल्थ फंड्स और दूसरे विदेशी फंड्स से उधारियों के लिए अधिकतम 0.1% की रियायती दर पर गारंटी भी प्रदान करेगी। विदेशी मुद्रा (विदेशी मुद्रा में उधारियां लेने पर) में उतार-चढ़ाव के कारण होने वाली हानि से संबंधित लागत की भरपाई सरकार द्वारा पूरी तरह या आंशिक रूप से की जा सकती है। एनबीएफआईडी द्वारा अनुरोध करने पर सरकार उसके द्वारा जारी बॉन्ड्स, डिबेंचर्स और लोन्स की गारंटी ले सकती है।
  • जांच और अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी: निम्नलिखित की मंजूरी के बिना एनबीएफआईडी के कर्मचारियों की जांच शुरू नहीं की जा सकती: (i) चेयरपर्सन और दूसरे डायरेक्टर्स के मामले में केंद्र सरकार, और (ii) अन्य कर्मचारियों के मामले में मैनेजिंग डायरेक्टर। एनबीएफआईडी के कर्मचारियों से संबंधित मामलों में अपराधों को संज्ञान में लेने के लिए अदालतों को भी पूर्व मंजूरी लेनी होगी।
  • अन्य डीएफआईज़: बिल में यह प्रावधान भी है कि आरबीआई को आवेदन करके कोई भी व्यक्ति डीएफआई बना सकता है। आरबीआई केंद्र सरकार की सलाह से डीएफआई को लाइसेंस दे सकता है। आरबीआई इन डीएफआईज़ के लिए रेगुलेशंस निर्दिष्ट करेगा।

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं? में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

Foreign Exchange

अगर अमेरिकी डालर की मुद्रा विनिमय दर भारतीय रूपए की तुलना में अधिक हो, उस स्थिति में हमारे आयातकों को अमेरिकी डालर उपभोग के लिए भुगतान करना होगा :

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इनमे से कौनसा कर सरकार किसी जींस के निर्यात को नियंत्रण में रखने के लिए लगाती है, जिससे वह जिन्स स्थानीय बाजार में विदेशी बाजारों के मुकाबले ज्यादा प्रयोग की जा सके ?

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एक अनिवासी भारतीय द्वारा एक बैंक खाता खोला जाना प्रस्तावित है I उसकी एक गढ़ सम्पती है और इसका किराया इस खाते में जमा किया जाना है I इस कार्य हेतु वह कौनसा बैंक खाता खोल सकता है ?

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विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं?

10 लाख रूपये तक अर्जित किए गए ब्‍याज पर टीडीएस दर- 30.90%
10 लाख रूपये से अधिक अर्जित किए गए ब्‍याज पर टीडीएस दर- 33.99% अधिभार शुल्‍क सहित

  • दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों (धारक प्रतिभूतियों के अतिरिक्‍त), कोषागार बिलों, घरेलू म्‍यूचुअल फंडों में
  • पीएसयू (PSUs) द्वारा जारी बॉन्डों में
  • भारत सरकार द्वारा विनिवेशित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों में ऐसे निवेशों के लिए निधि विदेशी प्रेषण अथवा एनआरआई/एफसीएनआर खातों के माध्यम से प्राप्त होनी चाहिए.
  • निवेशी कंपनी, भारतीय रिर्ज़व बैंक के स्‍वचालित माध्‍यम के अतिरिक्‍त किसी अन्‍य गतिविधि में संलग्‍न न हो
  • निवेश भारतीय रिर्ज़व बैंक के विनिर्दिष्‍टानुसार सेक्‍टरवार सीमाओं के अंतर्गत हो
  • निवेशों के लिए निधियां, विदेशी आंतरिक प्रेषण के माध्‍यम से या एनआरई/एफसीएनआर खातों के माध्यम से प्राप्त हुई हो.
  • विनिवेश राशि के आगम किसी शेयर दलाल के माध्यम से प्रचलित बाजार मूल्य पर किसी मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज के द्वारा भारतीय करों को काटकर भेजी जानी हो.

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भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था

भारत जीडीपी के संदर्भ में वि‍श्‍व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है । यह अपने भौगोलि‍क आकार के संदर्भ में वि‍श्‍व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्‍या की दृष्‍टि‍ से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधि‍त मुद्दों के बावजूद वि‍श्‍व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्‍वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्‍त करने की दृष्‍टि‍ से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्‍मूलन और रोजगार उत्‍पन्‍न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।

इति‍हास

ऐति‍हासि‍क रूप से भारत एक बहुत वि‍कसि‍त आर्थिक व्‍यवस्‍था थी जि‍सके वि‍श्‍व के अन्‍य भागों के साथ मजबूत व्‍यापारि‍क संबंध थे । औपनि‍वेशि‍क युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रि‍टि‍श भारत से सस्‍ती दरों पर कच्‍ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्‍य मूल्‍य से कहीं अधि‍क उच्‍चतर कीमत पर बेचा जाता था जि‍सके परि‍णामस्‍वरूप स्रोतों का द्धि‍मार्गी ह्रास होता था । इस अवधि‍ के दौरान वि‍श्‍व की आय में भारत का हि‍स्‍सा 1700 ए डी के 22.3 प्रति‍शत से गि‍रकर 1952 में 3.8 प्रति‍शत रह गया । 1947 में भारत के स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात अर्थव्‍यवस्‍था की पुननि‍र्माण प्रक्रि‍या प्रारंभ हुई । इस उद्देश्‍य से वि‍भि‍न्‍न नीति‍यॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्‍यम से कार्यान्‍वि‍त की गयी ।

1991 में भारत सरकार ने महत्‍वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्‍तुत कि‍ए जो इस दृष्‍टि‍ से वृहद प्रयास थे जि‍नमें वि‍देश व्‍यापार उदारीकरण, वि‍त्तीय उदारीकरण, कर सुधार और वि‍देशी नि‍वेश के प्रति‍ आग्रह शामि‍ल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को गति‍ देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था बहुत आगे नि‍कल आई है । सकल स्‍वदेशी उत्‍पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्‍टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रति‍शत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रति‍शत के रूप में बढ़ गयी ।

कृषि‍

कृषि‍ भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ है जो न केवल इसलि‍ए कि‍ इससे देश की अधि‍कांश जनसंख्‍या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्‍कि‍ इसलि‍ए भी भारत की आधी से भी अधि‍क आबादी प्रत्‍यक्ष रूप से जीवि‍का के लि‍ए कृषि‍ पर नि‍र्भर है ।

वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपायों के द्वारा कृषि‍ उत्‍पादन और उत्‍पादकता में वृद्धि‍ हुई, जि‍सके फलस्‍वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्‍त हुई । कृषि‍ में वृद्धि‍ ने अन्‍य क्षेत्रों में भी अधि‍कतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जि‍सके फलस्‍वरूप सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में और अधि‍कांश जनसंख्‍या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मि‍लि‍यन टन का एक रि‍कार्ड खाद्य उत्‍पादन हुआ, जि‍समें सर्वकालीन उच्‍चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्‍पादन हुआ । कृषि‍ क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रति‍शत प्रदान करता है ।

उद्योग

औद्योगि‍क क्षेत्र भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लि‍ए महत्‍वपूर्ण है जोकि‍ वि‍भि‍न्‍न सामाजि‍क, आर्थिक उद्देश्‍यों की पूर्ति के लि‍ए आवश्‍यक है जैसे कि‍ ऋण के बोझ को कम करना, वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्‍मनि‍र्भर वि‍तरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परि‍दृय को वैवि‍ध्‍यपूर्ण और आधुनि‍क बनाना, क्षेत्रीय वि‍कास का संर्वद्धन, गरीबी उन्‍मूलन, लोगों के जीवन स्‍तर को उठाना आदि‍ हैं ।

स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात भारत सरकार देश में औद्योगि‍कीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्‍टि‍ से वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपाय करती रही है । इस दि‍शा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगि‍क नीति‍ संकल्‍प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारि‍त हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारि‍त हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रति‍बंधों को हटाना, पहले सार्वजनि‍क क्षेत्रों के लि‍ए आरक्षि‍त, नि‍जी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनि‍श्‍चि‍त मुद्रा वि‍नि‍मय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं? जावक हेतु आदि‍ के द्वारा महत्‍वपूर्ण नीति‍गत परि‍वर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्‍यधि‍क अपेक्षि‍त तीव्रता प्रदान की ।

आज औद्योगि‍क क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रति‍शत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रति‍शत अंशदान करता है ।

सेवाऍं

आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि‍ आधरि‍त अर्थव्‍यवस्‍था से ज्ञान आधारि‍त अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में परि‍वर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रति‍शत ( 1991-92 के 44 प्रति‍शत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक ति‍हाई है और भारत के कुल नि‍र्यातों का एक ति‍हाई है

भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्‍लेखनीय वैश्‍वि‍क ब्रांड पहचान प्राप्‍त की है जि‍सके लि‍ए नि‍म्‍नतर लागत, कुशल, शि‍क्षि‍त और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्‍ति‍ के एक बड़े विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं? पुल की उपलब्‍धता को श्रेय दि‍या जाना चाहि‍ए । अन्‍य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्‍यवसाय प्रोसि‍स आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परि‍वहन, कई व्‍यावसायि‍क सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधि‍त सेवाऍं और वि‍त्तीय सेवाऍं शामि‍ल हैं।

बाहय क्षेत्र

1991 से पहले भारत सरकार ने वि‍देश व्‍यापार और वि‍देशी नि‍वेशों पर प्रति‍बंधों के माध्‍यम से वैश्‍वि‍क प्रति‍योगि‍ता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति‍ अपनाई थी ।

उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परि‍वर्तित हो गया । वि‍देश व्‍यापार उदार और टैरि‍फ एतर बनाया गया । वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश सहि‍त वि‍देशी संस्‍थागत नि‍वेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लि‍ए जा रहे हैं । वि‍त्‍तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्‍य अन्‍य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्‍ति‍यों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।

आज भारत में 20 बि‍लि‍यन अमरीकी डालर (2010 - 11) का वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश हो रहा है । देश की वि‍देशी मुद्रा आरक्षि‍त (फारेक्‍स) 28 अक्‍टूबर, 2011 को 320 बि‍लि‍यन अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बि‍लि‍यन अ.डालर की तुलना में )

भारत माल के सर्वोच्‍च 20 नि‍र्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्‍च 10 सेवा नि‍र्यातकों में से एक है ।

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