मॉडल ट्रेडिंग

Top 5 Crypto Exchange in India: भारत के टॉप क्रिप्टो ट्रेडिंग प्लैटफॉर्म, जिन्हें इस्तेमाल करना है सबसे आसान
Top 5 Crypto Exchange in India: CoinDCX, CoinSwitch Kuber, WazirX, Zebpay, Unocoin: भारत में दुनिया का सबसे बड़ा क्रिप्टो इन्वेस्टर बेस है और यहां पर ढेरों क्रिप्टो ट्रेडिंग प्लैटफॉर्म मौजूद हैं। हम यहां पर आपको यूजर बेस, इंटरफेस और आसानी के आधार पर देश में मौजूद 5 सबसे बढ़िया क्रिप्टो एक्सचेंज के बारे में बता रहे हैं।
- Mohammad Faisal
- @itsmeFSL
- Published on: February 27, 2022 12:18 PM IST
CoinDCX
CoinDCX मुंबई-बेस्ड क्रिप्टो एक्सचेंज है। यह 2018 में शुरू हुआ था। इस वक्त इस प्लैटफॉर्म पर 1 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं। यह एक्सचेंज अपने आसान इंटरफेस, जीरो डिपॉजिट फी और जीरो विध्ड्रॉल फी के लिए जाना जाता है।
CoinSwitch Kuber
यूजर-बेस के आधार पर CoinSwitch Kuber भारत के टॉप 5 क्रिप्टोएक्सचेंज में से एक है। यह 2017 में लॉन्च हुआ था। दिसंबर 2021 में इसने बताया कि इसके प्लैटफॉर्म मॉडल ट्रेडिंग पर 1.4 करोड़ यूजर्स मौजूद हैं, जिनमें से 15 प्रतिशत महिलाएं हैं।
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आज कल ट्रेडिंग में चल रहा है ये कोर्स, 12वीं पास जानिए इसमें कैसे बना सकते हैं करियर
इन दिनों हमारे सामने कई तरह के करियर ऑप्शन की भरमार है (Career Options)। ऐसे में अपने लिए बेस्ट ऑप्शन चुन पाना आसान नहीं होता है। ग्राफिक डिजाइनिंग (Career In Graphic Designing) के क्षेत्र में करियर की काफी बेहतरीन संभावनाएं हैं।
अगर आप चाहें तो ग्राफिक डिजाइन कोर्स (Graphic Design Course) करके भारत में अच्छे लेवल पर जॉब हासिल कर सकते हैं (Graphic Design Jobs In India)।
ग्राफिक डिजाइनिंग एक सदाबहार करियर ऑप्शन है (Career In Graphic Designing)। ग्राफिक डिजाइन डिग्री या डिप्लोमा कोर्स करके आप इसमें करियर की सबसे बेहतरीन संभावनाएं तलाश सकते हैं (Graphic Design Course)। आप चाहें तो 12वीं के बाद भी ग्राफिक डिजाइन कोर्स कर सकते हैं।
ग्राफिक डिजाइनर इमेज, टेक्स्ट मैसेज और शब्दों के माध्यम से विभिन्न कॉन्सेप्ट और आइडिया को विजुअल्स से पेश करते हैं। ग्राफिक डिजाइनर मैगजीन या न्यूजपेपर के लिए आकर्षक पेज लेआउट भी तैयार करते हैं (Graphic Design Skills)।
भारत में ग्राफिक डिजाइन कोर्स
भारत में ग्राफिक डिजाइनिंग एक बेहतरीन करियर ऑप्शन के तौर पर उभर रहा है (Career In Graphic Designing)। प्रिंट मीडिया के साथ ही डिजिटल मीडिया के लिए भी ग्राफिक डिजाइनर की जरूरत पड़ती है (Graphic Designer Job Description)। देश में ऐसे कई संस्थान हैं, जहां से ग्राफिक डिजाइन कोर्स (Graphic Design Course) किया जा सकता है।
ग्रेजुएशन लेवल
बैचलर ऑफ डिजाइन
बैचलर ऑफ ग्राफिक डिजाइनिंग
बैचलर ऑफ आर्ट्स – ग्राफिक डिजाइनिंग
बीएससी – मल्टीमीडिया
पोस्ट ग्रेजुएशन लेवल
मास्टर ऑफ आर्ट्स – ग्राफिक डिजाइनिंग
मास्टर ऑफ डिजाइन – ग्राफिक डिजाइनिंग
पीएचडी लेवल
डॉक्टर डिग्री – ग्राफिक डिजाइनिंग
ग्राफिक डिजाइनिंग में सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स भी किए जा सकते हैं। अगर आप ऑनलाइन कोर्स करना चाहते हैं तो आपके पास उसका ऑप्शन भी है।
लॉकडाउन के दौरान टेक्नोलॉजी के सही इस्तेमाल से ऑनलाइन कारोबार बढ़ा: रेलिगेयर सीईओ
मल्टीमीडिया डेस्क। देश भर में लॉकडाउन के दौरान उन वित्तीय और निवेश सेवाओं का कारोबार बढ़ा है जो कंप्यूटर आधारित हैं और जिनमें इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन होता है। ऑनलाइन ट्रेडिंग में भी यही ट्रेंड देखने को मिला है और मोबाइल प्लेटफॉर्म्स पर कारोबार उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है।
बीते दिनों कोरोना वायरस का जब असर बढ़ा तब कुछ कंपनियों ने त्वरित निर्णय लेते हुए अपनी तैयारी कर ली और लॉकडाउन की घोषणा होने से पहले अपने सभी कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम के साथ ही ऑनलाइन ट्रेडिंग के लिए सही मॉडल तैयार किया। चेक की जगह नेट बैंकिंग और अन्य ऑनलाइन सेवाओं का उचित इंतजाम किया गया।
स्क्रीन पर कारोबार करने वालों ने इस दौरान न केवल कंप्यूटर पर खासा कारोबार किया है बल्कि फाइनेंशियल सर्विसेज का कारोबार मोबाइल फोन पर भी काफी हद तक बढ़ा है। इस दौरान शेयर, करेंसी, कमोडिटी आदि में ऑनलाइन लेनदेन करने वाले निवेशकों और कारोबारियों ने मोबाइल ऐप्स का जमकर इस्तेमाल किया है। फाइनेंशियल मॉडल ट्रेडिंग सर्विसेज देने वाली कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम की सुविधा देने के साथ-साथ उन्हें अपने काम को नियमित रूप से जारी रखने के लिए भी प्रेरित किया है। कर्मचारियों के वर्क फ्रॉम होम की वजह से ना केवल उनका रोजगार अच्छी तरह चला है बल्कि इस दौरान वित्तीय सेवाएं देने वाली कंपनियों ने अपने कारोबार में खासा इजाफा भी किया है। रेलीगेयर ब्रोकिंग के सीईओ नितिन अग्रवाल का कहना है कि उनकी कंपनी के ऑनलाइन ट्रेडिंग वॉल्यूम में 50 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। अग्रवाल का कहना है कि उनकी ऐप रेलीगेयर डायनामी पर न केवल कारोबार की मात्रा बढ़ी है बल्कि खुद ही सारे काम ऐप पर करने वाले मॉडल की वजह से निवेशकों और कारोबारियों के कारोबार करने के तौर-तरीकों में भी बदलाव देखा गया है। कंपनी ने क्लाइंट सर्विसिंग और ऑपरेशंस के लिए 100 फ़ीसदी वर्क फ्रॉम होम मॉडल अपनाया है। कंपनी ने अपने ग्राहकों को यह सभी सेवाएं देने के दौरान टेक्नोलॉजी का बड़ी अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। अग्रवाल का कहना है मॉडल ट्रेडिंग लॉकडाउन के दौरान कंपनी की ऑनलाइन सेवाओं की वजह से डाइनामी ऐप का इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों और ट्रांजेक्शन की संख्या में भी भारी इजाफा हुआ है। रेलिगेयर एंटरप्राइजेस ने अपने अन्य डिवीजनों में भी कारोबार को जारी रखने का यही तरीका अपनाया है।
सेबी के नए मार्जिन नियम आज से लागू, यहां जानिए अपने हर सवाल का जवाब
कैश मार्केट में मार्जिन से जुड़े ने नियम 1 सितंबर से लागू हो गए हैं. सेबी ने इसे कुछ समय टालने की अपील ठुकरा दी है
सेबी मार्जिन के दो तरह के नियमों को लागू करना चाहता है. पहला नियम कैश मार्केट में अपफ्रंट मार्जिन से संबंधित है.
मैं मार्जिन को पूरी तरह से नहीं समझता, क्या मुझे इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
मार्जिन का मतलब उस रकम से है, जो आपके ट्रेडिंग अकाउंट में होती है. सामान्य रूप से निवेशक को अपने ट्रेडिंग अकाउंट में जमा रकम से शेयर खरीदने की इजाजत होनी चाहिए. लेकिन, व्यवहार में मामला थोड़ा अलग है. कई ब्रोकिंग कंपनियां अपने क्लाइंट को शेयर खरीदने के लिए रकम उधार देती हैं. इसे लिवरेज या मार्जिन ट्रेडिंग कहते हैं. इंट्राडे ट्रेडिंग में यह ज्यादा देखने को मिलता है.
फिर, 1 सितंबर से क्या बदलने जा रहा है?
पहले हम यह समझते हैं कि शेयरों की डिलीवरी किस तरह होती है. अभी बाजार में डिलीवरी के लिए टी+2 (ट्रेडिंग प्लस दो दिन) मॉडल का पालन होता है. इसका मतलब है कि अगर आप सोमवार को शेयर खरीदते या बेचते हैं तो यह बुधवार को डेबिट या क्रेडिट होगा. इसी तरह शेयर का पैसा भी बुधवार को आपके अकाउंट में आएगा या उससे जाएगा. इस मॉडल में ब्रोकर्स क्लाइंट के अकाउंट में पैसा नहीं होने पर भी शेयर खरीदने की इजाजत देते हैं. यह इस शर्त पर किया जाता है कि आप पैसा टी+1 या टी+2 दिन में चुका देंगे.
अब सेबी ने जो नया नियम बनाया है, उसमें ब्रोकर को सौदे की कुल वैल्यू का 20 फीसदी क्लाइंट से अपफ्रंट लेना होगा. इसका मतलब यह है कि सौदे के वक्त क्लाइंट (रिटेल निवेशक) को 20 फीसदी रकम चुकाना होगा. उदाहरण के लिए अगर रिटेल निवेशक रिलायंस इंडस्ट्रीज के एक लाख रुपये मूल्य के शेयर खरीदता है तो ऑर्डर प्लेस करने से पहले उसके ट्रेडिंग अकाउंट में कम से कम 20,000 रुपये होने चाहिए. बाकी पैसा वह टी+1 या टी+2 दिन में या ब्रोकर के निर्देश के मुताबिक चुका सकता है. सेबी के नए नियम के मुताबिक शेयर बेचते वक्त भी आपके ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन होना चाहिए.
शेयर बेचने के लिए मेरे ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन क्यों होना चाहिए?
सेबी ने सोच-समझकर यह नियम लागू किया है. इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिए आप सोमवार को 100 शेयर बेचते हैं. ये शेयर आपको अकाउंट से बुधवार को डेबिट होंगे. लेकिन, अगर आप मंगलवार (डेबिट होने से पहले) को इन शेयरों को किसी दूसरे को ट्रांसफर कर देते हैं तो सेटलमेंट सिस्टम में जोखिम मॉडल ट्रेडिंग पैदा हो जाएगा.
ब्रोकिंग कंपनियों के पास ऐसा होने से रोकने के लिए हथियार होते हैं. 95 फीसदी मामलों में ऐसा नहीं होता है. सेबी ने यह नियम इसलिए लागू किया है कि 5 फीसदी मामलों में भी ऐसा न हो.
यह नियम कुछ ज्यादा सख्त लगता है, क्या इसका कोई दूसरा तरीका नहीं है?
इसका दूसरा तरीका है. सेबी ने बगैर मार्जिन शेयर बेचने की इजाजत दी है. लेकिन, इसमें शर्त यह है कि ब्रोकर के पास ऐसा सिस्टम होना चाहिए, जिसमें शेयर बेचने के दिन वह शेयरों को क्लाइंट के अकाउंट से अपने अकाउंट में ट्रांस्फर कर लें. लेकिन, इसमें कुछ ऑपरेशनल दिक्कतें हैं.
इस नियम का बाजार पर क्या असर पड़ेगा?
विश्लेषकों और इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि नए नियमों से ट्रेडिंग वॉल्यूम घटेगा. लेकिन, कुछ लोगों का मानना है कि पिछले 25 साल में जब भी नए नियम लागू किए गए, बाजार ने उसके हिसाब से खुद को मॉडल ट्रेडिंग मॉडल ट्रेडिंग ढाल लिया. नए नियम बाजार में जोखिम घटाने और निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए लागू किए जाते हैं.
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