दलाल कैसे बने

दलाल बने MLA, रास चुनाव में वोट के लिए मांगे दो करोड़! फोटो
ये गद्दार वो विधायक हैं जो राज्यसभा में पहुंचाने वाले दलाल बन एक करोड़ से लेकर दो करोड़ रुपए में अपना वोट बेचते हैं। इ . अधिक पढ़ें
- News18India
- Last Updated : February 26, 2015, 18:50 IST
नई दिल्ली। आईबीएन7 आपके लिए लेकर आया है साल का सबसे बड़ा खुलासा-गद्दार। वो खद्दरधारी जिन पर देश चलाने की जिम्मेदारी है, वो खद्दरधारी जो देश की रीढ़ हैं, वही खद्दरधारी अगर खुद अपने ईमान को दुकान पर सजा दें तो आप क्या कहेंगे? ये गद्दार एक के बाद एक आईबीएन7 और कोबरा पोस्ट के खास ऑपरेशन में कैद हुए। खुफिया कैमरे के सामने वो दलाल बन गए। उन्होंने लोकतंत्र के सिद्धांतों की, जनता के सपनों की अर्थी सजा दी। ये गद्दार वो विधायक हैं जो राज्यसभा में पहुंचाने वाले दलाल बन एक करोड़ से लेकर दो करोड़ रुपए में अपना वोट बेचते हैं। इसमें कांग्रेस के तीन विधायक हैं तो जेएमएम के दो और बीजेपी का भी एक चेहरा है।
ये खेल झारखंड में राज्यसभा चुनाव की दो सीटों के लिए वोटिंग से ऐन पहले शुरू हुआ। हमें भनक लगी कि कई विधायक पैसे की खातिर अपना वोट बेचने की फिराक में ग्राहक तलाश रहे हैं। कोबरा पोस्ट के रिपोर्टर ने भेष बदला और फिर हम घुस गए काजल की इस बेहद डरावनी कोठरी में। आप भी देखिए लोकतंत्र में कैसे पैदा हुआ नोटतंत्र, कैसे बिकती हैं राज्यसभा की सीट, कैसे बंद कमरों में बिकता है ईमान और घूस देकर-बोरियों में पैसे भरकर पहुंचा जा सकता है देश की संसद में। (वीडियो देखें)
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ब्रिटिश शासनकाल में कृषकों की स्थिति Notes
Hello दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर पिछली पोस्ट में हमने आपको महालवाड़ी बन्दोबस्त के बारे में बताया था, आज की पोस्ट में हम आपको ब्रिटिश शासनकाल में कृषकों की स्थिति के बारे में बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज की पोस्ट
ब्रिटिश शासनकाल में कृषकों की स्थिति
ब्रिटिश भू-राजस्व नीति के परिणामस्वरूप कृषकों की दशा दयनीय हो गयी। जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि स्थायी बन्दोबस्त, रैयतवाड़ी प्रथा से किसानों को कोई लाभ नहीं हुआ। इससे उनकी स्थिति गिरती चल गयी। काष्तकारों का जमीन पर रहने का अधिकार छिन गया। लगान ठीक समय पर अदा न करने पर कृषकों को बन्दी बनाया जा सकता था या निजी सम्पत्ति को बेचकर लगान की पूरी रकम वसूल कर सकता था। कृषकों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार की ओर से कोई कानूनी व्यवस्था नहीं की गयी। farmer situation during the british rule in india hindi
लॉर्ड ब्रौम ने लिखा है, “जमींदारी प्रथा में लगान वसूल करने का कार्यभार विभिन्न श्रेणियों के दलालों को सौंप दिया जाता था, जिससे रैयत का शौषण और भी बढ़ गया। ये दलाल जमींदार और कृषक के बीच मध्यस्थ का काम करते थे और जमींदार के लगान में अपना लाभांष भी जोड़ लेते थे। दलाल लोग अधिक से अधिक शोषण में जुटे रहते थे। ये लोग कृषकों के ऊपर इतना अधिक दबाव डालते थे कि परिश्रम और शोषण के कारण कृषकों की दशा दयनीय हो जाती थी। इस दयनीय स्थिति से घबराकर कषक लोग भाग खड़े होते थे। इनमें इतना भी साहस नहीं रहता था कि वह डाकू भी बन जायें। अन्ततः ये जंगलों में भूख से व्याकुल होकर प्राण देने पर बाध्य हो जाते थे।”
कृषकों की यह अत्यधिक दरिद्र जमात घोषित रूप में अंग्रेजी शासन की स्वतंत्र नागरिक होते हुए भी, वस्तुतः क्यूबा के गुलामों अथवा रूस के कृषि दासों से भी कहीं अधिक अपमानजनक और सोचनीय स्थिति में थी।
ब्रिटिश शासन की स्थापना के लगभग 100 वर्ष बाद बंगाल के कृषकों की अवस्था के सम्बन्ध में डाँ. पार्शमेन ने लिखा है, “किसी व्यक्ति ने आज तक इस तथ्य का खण्डन नहीं किया कि बंगाल के कृषक वर्ग की व्यवस्था इतनी अधिक शोचनीय और अपमानजनक है जिसकी कल्पना कर पाना भी सम्भव नहीं। ये कृषक ऐसी तंग अंधेरी कोठरियों में रहते थे जिसमें पशुओं का भी रह सकना असम्भव था। फटे चिथड़ों में लिपटे हुए इन कृषकों के लिए अपने तथा अपने परिवार का भोजन भी जुटा पाना कठिन था। बंगाल की इस रैयत के लिए जीवन की अत्यन्त साधारण सुविधाएँ भी दुर्लभ थीं। (यदि इस तथ्य पर बल दिया जाये तो कोई अतिशयोक्ति न होगी कि) जो कृषक वर्ग सरकार के लिए प्रतिवर्ष 30 लाख पौण्ड से 40 लाख पौण्ड तक की आय उपलब्ध करने वाली फसल उगाता था उसकी वास्तविक जर्जर स्थिति का सही ज्ञान निःसन्देह हमें चैंका देगा।”
कृषकों की इस दर्दशा के कारण गाँव में ऋण लेने की प्रथा ने भी अग्र रूप धारण कर लिया। यद्यपि ऋण लेने की प्रथा भारत में पहले भी थी, किन्तु पहले वह शहरों तक ही सीमित थी। इस नयी शासन पद्धति में लगान या भू-राजस्व का बोझ इतना अधिक बढ़ गया कि किसानों को उसे चकाने के लिए नियमित रूप से ऋण लेना पड़ता था। बहुत बार लगान चुकाने के बाद जो कुछ कृषक के पास बचा रहता था, वह उसके दलाल कैसे बने अपने जीवन निर्वाह के लिए भी पर्याप्त नहीं होता था। इसलिए जीवन निर्वाह भी पर्याप्त नहीं होता था। इसलिए जीवन निर्वाह के लिए ऋण का सहारा लेना अनिवार्य हो जाता था। इस प्रकार ब्रिटिश शासन से उत्पन्न हुई यह जमींदारी व्यवस्था कृषकों के शोषण का दोहरा साधन बन गयी-एक ओर लगान के रूप में और दूसरी ओर ऋण के ऊपर दिये जाने वाले ब्याज के रूप में। farmer situation during the british rule in india hindi
राजस्व की ऊँची दर के कारण कृषकों की दशा अत्यंत शोचनीय तथा दयनीय हो गयी। उसकी इस बढ़ती हुई दुर्दशा की ओर शासन वर्ग ने कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि ब्रिटिश सरकार का एकमात्र लक्ष्य अधिक से अधिक भू राजस्व इकट्ठा करना था। कृषकों की दशा में सुधार नहीं। सरकार अपने लिये निश्चित आय तो चाहती थी, साथ ही साथ देश के साधन सम्पन्न वर्ग, जैसे जमीदार या अमीर कृषक वर्ग को प्रसन्न भी रखना चाहती थी। इसलिए निर्धन कृषक सरकार का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में असमर्थ रहे। इस प्रकार गाँवों में छोटे-छोटे किसानों तथा खेतीहार काश्तकारों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गयी और भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी। farmer situation during the british rule in india hindi
यह तो थी ब्रिटिश शासनकाल में कृषकों की स्थिति की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको ब्रिटिश शासनकाल में कृषि का व्यवसायीकरण (commercialization of Agriculture) के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂
कब बढ़ीं नजदीकियां और कैसे किया इजहार, यूं परवान चढ़ा वरुण धवन और नताशा दलाल का प्यार
Varun Dhawan and Natasha Dalal love story: वरुण धवन और नताशा दलाल शादी करने जा रहे हैं, इस बीच कई फैंस के मन में यह सवाल हो सकता है कि दोनों के बीच प्यार कैसे पनपा? एक नजर दोनों की लव स्टोरी की टाइमलाइन पर।
- कभी रिश्ते को छिपाते तो कभी खुल्लम खुल्ला प्यार करते नजर आए वरुण और नताशा
- दोस्ती से प्यार तक धीरे धीरे आईं दोनों के बीच नजदीकियां
- शादी की खबरों के बीच यहां जानिए नताशा और वरुण की लव स्टोरी
बॉलीवुड अभिनेता वरुण धवन और उनकी गर्लफ्रेंड नताशा दलाल अक्सर अपने रोमांस के साथ चर्चा में बने रहे हैं। वरुण के फिल्म जगत में आने के बाद से लगातार वह नताशा के करीब रहे और उनके रिलेशनशिप में हमेशा गहराई और गंभीरता देखने को मिलती रही। इससे पहले कि दोनों पार्टियों, सेलिब्रिटी शादियों और रात के खाने में एक साथ नजर आ रहे थे और ज्यादातर अपनी कारों में एक साथ ड्राइव करते हुए देखे जा चुके हैं।
कई सालों तक, दोनों ने अपने प्यार को लोगों से छिपाकर रखा और अपने रिश्ते को छिपते छिपाते रहे। लेकिन जल्द ही, उन्होंने ज्यादा से ज्यादा मौकों पर एक साथ दिखना शुरू कर दिया। बाद में, उन्होंने इंटरव्यू में भी एक-दूसरे के लिए अपने एहसास को कबूल किया और अपने रिश्ते को आधिकारिक बना दिया। अब, ताजा रिपोर्ट्स की मानें तो यह जोड़ी इसी महीने बहुत जल्द शादी के बंधन में बंधने वाली है।
यदि आप यह जानने में रुचि रखते हैं कि दोनों के बीच प्यार कैसे पनपा और कब उन्होंने एक-दूसरे के साथ अपनी बाकी की ज़िंदगी बिताने का फैसला किया, तो उनकी लव टाइमलाइन पर एक नज़र डालें।
वरुण धवन और नताशा दलाल की प्रेम कहानी:
1. नताशा दलाल और वरुण धवन बचपन के दोस्त थे। डेटिंग शुरू करने से पहले वे कई सालों तक दोस्त बने रहे। एक इंटरव्यू में नताशा ने कहा, 'वरुण और मैं एक साथ स्कूल में थे। 20 साल की उम्र तक हम दोस्त बने रहे और फिर, मुझे याद है, इसके बाद ही हम डेटिंग शुरू कर चुके थे। मुझे लगता है, हमें एहसास हुआ कि हम सिर्फ अच्छे दोस्तों से कुछ ज्यादा थे।'
2. नेहा धूपिया के ऑडियो चैट शो नो फिल्टर नेहा में, वरुण धवन ने नताशा दलाल के साथ अपने रिश्ते के बारे में एक संकेत दिया। अभिनेता ने कोई नाम नहीं लिया लेकिन उन्होंने साझा किया कि वह प्यार में हैं और, उन्होंने खुलासा किया कि वह अपनी प्रेमिका को मीडिया की चकाचौंध से बचाना चाहते हैं, यही वजह है कि वह सार्वजनिक रूप से अपने रिश्ते के बारे में बात नहीं करते।
3. बाद में, करण जौहर के टॉक शो 'कॉफी विद करण' के सीजन 6 के साथ अभिनेता ने अपने प्यार और केमिस्ट्री के बारे में बात की थी। उन्होंने कहा, 'मैं उसे डेट कर रहा हूं और अब हम एक जोड़ी हैं। मैंने उससे शादी करने की योजना बनाई है।'
4. 2019 में, वरुण ने नताशा के जन्मदिन के जश्न से एक वीडियो साझा किया। और, क्लिप ने यह स्पष्ट कर दिया कि दोनों एक-दूसरे के प्यार में पागल हैं।
5. मार्च 2019 में, नताशा ने मुंबई में वरुण के माता-पिता के साथ आकाश अंबानी और श्लोका मेहता के मंगल पर्व समारोह में हिस्सा लिया था।
2500 रुपए प्रति माह कैसे हो जाती हैं लाखो में तब्दील.. मुखिया प्रतिनिधि
आज की लेख में बात करेंगे की आखिर 2500 रूपये प्रतिमाह मुखिया की वेतन कैसे हो जाते हैं लाखो में तब्दील..
हमने और आपने देखा हैं, कि मुखिया हमेशा टू विकल गाड़ी लेकर घूमते हैं जिसमें देखा जाए तो पूरे 30 दिन की पेट्रोल अपने मासिक वेतन से चले जाते हैं।
तो फिर मुखिया के पास इतने पैसे कहां से आते हैं, कि मुखिया हर दिन अपने चमचे को फ्री में चाय बिस्कुट खिला रहे हैं।
बात विस्तार से होंगे. मैं बेलवा पंचायत(barsoi) से ताल्लुक रखता हु तो बात भी बेलवा पंचायत के मुखिया के होंगे.. पढ़े📚
बेलवा पंचायत के वर्तमान मुखिया जिसने इलेक्शन के समय हर आम आदमी को 2000-3000 रूपये दिए ताकि बेलवा पंचायत के वर्तमान मुखिया सबनम आरा मुखिया बन सके..
आपको और हमें मालूम होना चाहिए कि एक पंचायत में कम से कम 5000 मतदाता होते हैं तो बेशक हरेक आदमी को पैसे दिए होंगे तभी तो मुखिया बने हैं।
अगर मैथ को मध्य नजर रखते हुए देखे तो 5000 वोटर और प्रति व्यक्ति 1000 तो. 5000×1000=5000000 यानि कुल 50लाख रूपये खर्च किए मुखिया की इलेक्शन में..ऊपर से दलाल अपने हिसाब से पैसे लिए कोई 50 हजार तो कोई 10 हजार तो, कोई 20 हजार लिए.
अब बात करते मुखिया के कार्यकाल कि तो मुखिया की कार्यकाल 5 साल की होती हैं..जिसमे मुखिया की प्रतिमाह वेतन 2500 रूपये हैं. कैलकुलेट करने से मालूम चला कि मुखिया की पूरी कार्यकाल में यानी 5 साल में उसकी इनकम 1 लाख 50 हजार ही होते हैं तो आप बताए कि कैसी आखिर 1लाख 50 हजार रुपए, 50 लाख से मैच होंगे..
गहराही से मालूम करने से पता चला की सबनम आरा के पति जिसे लोग प्यार से डोमा मुखिया कहकर पुकारते है..उसने मुखिया सीट जीतने के लिए ब्याज में पैसे लिए हुए थे..
अपने वेतन से तो दलाल कैसे बने कभी मुखिया अपने ब्याज के पैसे मिटा ही नही सकते, इसलिए पंचायती राज में जो फंड आते हैं..उसका मुखिया दुरुपयोग करते हैं। बोले तो मनरेगा योजना के तहत बनने वाले सड़क मार्ग, नाली, कच्ची सड़क, पोखर खुदाई, और भी काफी योजना हैं जिसके बारे में हमे उतना मालूम नही हैं, क्योंकि मैं मुखिया थोड़ी हू.ना ही मैं मुखिया के दलाल हूं।
कोई भी सड़क जो जितनी लागत में बननी चाहिए.. उस लागत में से आधी पैसे मुखिया अपने जेब में रख लेते हैं..जिससे सड़क हो या फिर कच्ची सड़क..उसको जितनी लागत में बननी चाहिए थी उतनी लागत में नही बन पाने के कारण सड़क काफी कमजोर हो जाते हैं। जिसकी परिणाम कुछ ही दिनों बाद दिखाई देने लगते हैं..सड़क की गिट्टी बाहर नजर आते हैं, या तो फिर सड़क जितने इंच की मोटाई होने चहिए उससे कम मोटाई होने के कारण सड़क अपने आप टूट जाते हैं.. इसपर गांव के लोग कुछ नही बोलेंगे क्योंकि उसे उस समय भी पैसे की गर्मी में दबा दिया जाता हैं।
बात रही दलाल की तो आपको बता दू, मैं "Didar" फैमिली से बिलांग रखता हूं। दीदार फैमिली के बहुत सारे ऐसे दलाल हैं, जो पैसे के खातिर अपने ईमान को बेच रहे हैं..और वर्तमान मुखिया सबनम आरा की दलाली कर रहे हैं।
एक बार बार आप दलाली छोर कर ठंडी दिमाग से सोचो की अगर हम सभी ऐसे मुखिया का चयन करते हैं तो क्या कभी अपने क्षेत्र का विकास होगा..जरा सोचो अगर ऐसे मुखिया का फिर से चयन होता हैं..तो, जैसे आप दलाली कर आगे चलकर आपके बच्चे जब बड़े हो जायेंगे तो वह भी ऐसे ही आने वाले समय के मुखिया की दलाली करेंगे..
अपने बच्चें को अच्छे तालीम दे..ताकि ऐसे जहरीले मुखिया के चक्कर में न पड़ें..और एक अच्छी समाज की निर्माण कर सके।
मिलिए 9 साल में 600 सांपों की ज़िंदगी बचाने वाले सोनू दलाल से!
सां प एक ऐसा जीव है जिससे दुनियाभर में ज्यादातर लोग नफरत करते हैं, डरते हैं और दिख जाने पर उनको मार देना ही एकमात्र विकल्प मानकर उनकी जान ले लेते हैं। सांपों के बारे में फैले झूठ और अंधविश्वास की वजह से उन्हें इस तरह की क्रूरताओं का सामना करना पड़ता है। अक्सर बारिश के मौसम में या कई बार गलती से सांप हमारे घरों में आ जाते हैं, तो हम सीधे उन्हें मारने दौड़ते हैं। आम लोगों की समझ के अनुसार ऐसा करना सही है, क्योंकि सांप जहरीले होते हैं, इसलिए उन्हें मार देना चाहिए।
लेकिन सांपों को बचाने और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे सोनू दलाल का कहना है कि सांप से लोगों को डर लगता है, कई सांप जहरीले भी होते हैं, मगर फिर भी सांपों को नहीं मारना चाहिए। सोनू हरियाणा के झज्जर जिले के मांडोठी गाँव के रहने वाले हैं। वह पिछले 9 साल से सांपों को बचाने का काम कर रहे हैं और अब तक करीब 600 सांपों का रेस्क्यू कर उनकी जिंदगी बचा चुके हैं। सोनू दलाल।
सोनू सांपों को न सिर्फ हमारे पर्यावरण के दलाल कैसे बने लिए जरूरी मानते हैं बल्कि उनसे इंसानों को होने वाले फायदे भी गिनवाते हैं। सोनू का कहना है कि सब जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां 70% प्रतिशत लोग आज भी खेती दलाल कैसे बने व पशुपालन से जुड़े हुए हैं। अगर हम सभी सांपों को मार देंगे तो फिर खेतों में पाए जाने वाले चूहों को खाएगा कौन? चूहे हमारी फसलों को खा जाते हैं। उनकी तादात ज्यादा न बढ़े इसलिए प्रकृति ने सांपों को बनाया है। सांप हमारे खेतों में पाए जाने वाले चूहों का शिकार करते हैं, वह चूहों के बिल में घुसकर उनका शिकार करने में सक्षम होते हैं, जिसके कारण हमारी फसलें सुरक्षित रहती हैं और हम खाने के लिए अन्न, पशुओं के लिए चारा और पहनने के कपड़ों के लिए कपास जैसी फसलें उगा पाते हैं। इसलिए भी सांपों का संरक्षण बहुत जरूरी है।
सोनू बताते हैं, “सबसे पहले तो मैं यह बताना चाहूंगा कि हर सांप जहरीला नहीं होता, सिर्फ कुछ सांप ही जहरीले होते हैं और वे भी इंसानों को डसने के लिए नहीं बने हैं। भारत में पाए जाने वाले सांपों में से 80% सांप जहरीले नहीं होते हैं। अंधविश्वासों को छोड़कर अगर तर्कों पर बात करें तो सांपों को बचाना इसलिए जरूरी है क्योंकि वे हमारी प्रकृति की फूड चैन का हिस्सा हैं और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।”
सांपों को बचाने वाले सोनू को उनके इलाके के लोग ‘स्नेक मैन’ के नाम से जानते हैं। जब भी उनके इलाके के किसी गाँव या शहर में किसी के घर सांप घुस जाता है तो लोग सोनू को फोन करके बुलाते हैं और सोनू सांपों को घरों से रेस्क्यू कर बाहर जंगल में छोड़ देते हैं। वह इस काम में साल 2010 से लगे हुए हैं और लोगों से इस काम के कोई पैसे नहीं लेते। सांप का रेस्क्यू करते सोनू।
उनसे इस काम की शुरुआत के बारे में पूछने पर उनका जवाब कुछ इस प्रकार होता है।
वह बताते हैं, “जब मैं छोटा था, तो देखता था कि गाँव में जब भी लोगों को सांप दिखाई देता, लोग उसे मार देते। जिसे देखकर मुझे बहुत बुरा महसूस होता था। मैं सोचता था कि जब सांप ने कुछ किया ही नहीं, फिर भी लोग उसे क्यों मार रहे हैं, मुझे बहुत गुस्सा आता, लेकिन मैं कुछ कर नहीं पाता था। डिस्कवरी पर सांपों के बारे में कई कार्यक्रम देखने से मुझे पता लगा कि ज्यादातर सांप जहरीले नहीं होते और वे प्रकृति के लिए जरूरी हैं। बस वहीं से मेरे अंदर लगी आग को चिंगारी मिली और मैंने सांपो की प्रजातियों पर किताबें पढ़ना शुरू कर दिया और सांपों को बचाने, उन्हें रेस्क्यू करने के तरीके सीखने लगा।”
सांपों के बारे में जानकारी हो जाने के बाद सोनू ने सबसे पहले अपने गाँव में सांपों को रेस्क्यू कर जंगलों में छोड़ना शुरू कर दिया। सोनू दलाल।
देखते-देखते उनकी ख्याति आस-पास के गांवों में भी फैलने लगी और आसपास के गाँव के लोग भी घरों में सांप घुस जाने पर उसे निकालने के लिए सोनू को बुलाने लगे। हालाँकि सोनू को सांपों को रेस्क्यू करने के दौरान लोगों में व्याप्त सांपों के बारे में अंधविश्वासों का सामना भी करना पड़ता है।
“जब मैं सापों को रेस्क्यू करने जाता तो लोग मुझसे पूछते थे कि क्या इसे मारकर मणी मिल जाएगी, क्या इसको मारकर इससे आंखों को ठीक करने वाली दवाई बन जाएगी, क्या सांप की आंखों में हमारे फोटो खींच गए हैं और यह हम पर हमला कर मार देगा। इस तरह के सवालों पर मेरा जवाब ‘ना’ ही होता था। हर जगह ऐसे सवाल पूछे जाने के कारण मैंने महसूस किया कि लोगों में सापों के बारे में फैले अंधविश्वासों को दूर करने की जरूरत है, इसलिए मैंने अंधविश्वासों के खिलाफ लोगों को जागरुक करना शुरू कर दिया,” सोनू ने कहा।
सोनू जब सांप रेस्क्यू करने जाते हैं तो उन्हें देखने के लिए आस-पास बहुत लोग इकट्ठा हो जाते हैं। सांप को रेस्क्यू करने के बाद सोनू वहां इकट्ठा हुए लोगों को सांपों के बारे में फैलाए गए अंधविश्वासों को दूर करते हैं कि सांपों में कोई मणी नहीं पाई जाती, सांप इच्छाधारी नहीं होते, सांप की आंखों में फोटो नहीं खींचती और न ही सांप दूध पीते हैं। लोगों का सांप के प्रति अन्धविश्वास दूर करते सोनू।
हमारे समाज में सांप के कांटने और उसके बाद खुद ही इलाज दलाल कैसे बने करने जैसे कई प्रकार के अंधविश्वास फैले हैं, जिनके बारे में भी सोनू लोगों को जागरुक करते हैं। वह बताते हैं कि आमतौर पर सांप इंसानों को काटते नहीं हैं। लेकिन अगर कोई सांप काट भी ले तो पीड़ित को शांत रहना चाहिए, हड़बड़ी मचाने से ब्लड प्रेशर बढ़ता है जिससे जहर तेजी से शरीर में फैलता है। इसलिए मेडिकल मदद मिलने तक पीड़ित को शांत रहना चाहिए और शरीर के जिस हिस्से पर सांप ने काटा हो उसे हिलाना नहीं चाहिए। घाव को धोने, घरेलू इलाज करने में समय नष्ट करने की बजाए जल्द से जल्द अस्पताल जाना चाहिए। फिल्मों में दिखाए गए काट कर चूसने जैसे फिल्मी नुस्खे न प्रयोग करें और न ही दबाव डालने वाली पट्टी बांधे। ये दोनों अंधविश्वास हैं।
इतना ही नहीं, सोनू अब तक 8 ऐसे लोगों को भी पकड़वा चुके हैं जो बिना जहर वाले सांपों को कैद कर उनके दांत तोड़ देते हैं और अपने फायदे के लिए सांपों के साथ क्रूर व्यवहार करते हैं। सांप पकड़ने के उपकरण के साथ सोनू।
अंत में सोनू सिर्फ इतना कहते है कि दलाल कैसे बने सांप बहुत खूबसूरत जीव हैं जो अलग-अलग तरीकों से न सिर्फ हमारे पर्यावरण के लिए जरूरी हैं, बल्कि हम इंसानों को भी अनेकों फायदे पहुंचाते हैं। वे हमारी तरह ही इस धरती पर रहने के हकदार दलाल कैसे बने हैं, इसलिए हमें उन्हें मारना बंद कर उनके साथ शांति और सद्भाव से रहना शुरू करना होगा।
अगर आपको सोनू की कहानी अच्छी लगी और आप उनसे सम्पर्क करना चाहते हैं तो 9050704550 पर बात कर सकते हैं।
संपादन – भगवती लाल तेली
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