संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है

कहीं इस बार भी नक्सलियों के खिलाफ फेल न हो जाएं मोदी
समस्याएं आती हैं तो समाधान भी निकाले जाते हैं. भारत नक्सलवाद, पत्थरबाजों से परेशान है. हर जगह बेगुनाहों की जानें जा रही हैं. सरकार कोशिशें तो करती है लेकिन हल नहीं निकलता.
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समस्याएं आती हैं तो समाधान भी निकाले जाते हैं. भारत नक्सलवाद, पत्थरबाजों से परेशान है. हर जगह बेगुनाहों की जानें जा रही हैं. सरकार कोशिशें तो करती है लेकिन हल नहीं निकलता.
कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सली हमला हुआ था जिसमें 25 जवान शहीद हो गए थे. जिसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने नक्सलवाद से निपटने के लिए हाईलेवल मीटिंग की. जहां उन्होंने नक्सल प्रभावित राज्य की सरकारों को आठ सूत्रीय ‘समाधान’ सुझाए और इसे ‘लक्ष्य की एकता’ के रूप में स्वीकार कर लागू करने का अनुरोध भी किया है.
नक्सली समस्या से निपटने के लिए राजनाथ ने समाधान शब्द दिया है जिसका उन्होंने अर्थ भी समझाया है.
S -smart leadership (स्मार्ट नेतृत्व)
A -aggressive strategy (आक्रामक रणनीति)
M -motivation and training (प्रेरणा और प्रशिक्षण)
A -actionable intelligence (कार्रवाई योग्य बुद्धि)
D -dashboard based key performance indicators and key result areas (मुख्य निष्पादन संकेतक और प्रमुख परिणाम क्षेत्र)
H -harnessing technology (दोहन तकनीक)
A -action plan for each threat (प्रत्येक खतरे के लिए कार्य योजना)
N -no access to financing (वित्तपोषण तक कोई पहुंच नहीं)
नक्सलियों से निपटने के लिए राजनाथ ने समाधान निकाल लिया है अब ये कितना सफल होगा ये देखने वाली बात होगी. ऐसे ही मनमोहन सिंह ने कश्मीर मुद्दे के लिए भी प्लान निकाला था लेकिन वो फेल हो गया था.
मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ कश्मीर मसले का हल निकालने के लिए प्लान बनाया था. यह खुलासा एक वरिष्ठ भारतीय नौकरशाह ने किया था. यह भी कहा जाता रहा है कि मोदी के पीएम बनने के बाद मनमोहन ने ये फाइल उनको दी थी.
क्या था फाइल में ?
अधिकारी ने बताया कि फाइल में था कि 'कंसल्टिव मेकनिज़म' के जरिए दोनों क्षेत्रों के पर्यटन, धार्मिक मान्यताएं, संस्कृति और व्यापार जैसे सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर ध्यान दिया जाना था. हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि भारत ने जनरल मुशर्रफ के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया क्योंकि इससे कश्मीर पर भारत की संप्रभुता खत्म हो जाती. इसके बावजूद, मनमोहन और मुशर्रफ कश्मीर का हल निकालने के लिए बातचीत बढ़ाना चाहते थे.
मनमोहन के भरोसेमंद डिप्लोमैट सतिंदर लांबा और मुशर्रफ ने रियाज मुहम्मद खान और तारिक अजीज के बीच काठमांडू और दुबई में करीब 30 दिनों तक 200 घंटे की मीटिंग हुई. लेकिन, उसके बाद हालात पाक की तरफ से बिगड़ते गए और ये प्लान ठंडे बस्ते में चला गया.
कश्मीर पर वायपेयी फॉर्मूला
अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर समस्या के हल के लिए बातचीत को सबसे उपयुक्त माध्यम बताया था. उन्होंने कहा, 'लोकतंत्र, मानवता और कश्मीरियत को बचाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा.' अटल बिहारी वाजपेयी कश्मीर समस्या का हल इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के रास्ते पर चलते हुए करना चाहते थे. लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया. कुल मिलाकर भारत ने जब-जब समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की तो वो फेल ही रही. अब ये देखना होगा गृहमंत्री नक्सलियों पर लगाम लगाने वाला ये 'संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है समाधान' कितना असरदार साबित होता है.
Gamma-Glutamyl Transpeptidase (GGT) Test : जीजीटी टेस्ट क्या है?
गामा-ग्लूटामाइल ट्रांसपेप्टिडेज़ टेस्ट रक्त में जीजीटी एंजाइम्स की मात्रा को मापता है। एंजाइम अणु होते हैं जो आपके शरीर में केमिकल रिएक्शन संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है के लिए आवश्यक होता हैं। जीजीटी शरीर में परिवहन अणु के रूप में काम करता है जिससे दूसरे अणुओं को शरीर में स्थानांतरित करने में मदद मिलती है। यह लिवर को दवा और अन्य टॉक्सिन् को मेटाबोलाइज़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जीजीटी लिवर में केंद्रित होता है, लेकिन यह गालब्लैडर, स्पलीन, पैनिक्रियाज और किडनी में भी मौजूद होता है। लिवर के डैमेज होने पर जीजीटी ब्लड लेवल हमेशा हाई होता है।लिवर डैमेज की संभावना होने पर लिवर एंजाइम्स को मापने के लिए यह टेस्ट अक्सर दूसरे टेस्ट के साथ किया जाता है।
जीजीटी टेस्ट क्यों किया जाता है?
आपका डॉक्टर जीजीटी टेस्ट की सलाह देता है यदि उसे संदेह है कि आपका लिवर डैमेज हो गया है या आपको लिवर से संबंधित कोई बीमारी है या परेशानी है, खासतौर पर शराब पीने से संबंधित। जीजीटी टेस्ट वर्तमान में लिवर की क्षति और बीमारी का सबसे संवेदनशील एंजाइमेटिक संकेतक है। यह क्षति अक्सर बहुत ज़्यादा शराब के सेवन या अन्य विषाक्त पदार्थ जैसे- ड्रग्स या जहर के सेवन से होती है।
यदि आपने एल्कोहल रिहैब्लिटेशन प्रोग्राम पूरा कर लिया है और आप शराब से दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं, तो आपका डॉक्टर इस टेस्ट का आदेश यह देखने के लिए दे सकता है कि आप उपचार ठीक तरह से करा रहे हैं या नहीं। जिन लोगों का एल्कोहलिक हेपेटाइटिस के लिए इलाज किया गया हो, उनके जीजीटी स्तर की निगरानी के लिए भी यह टेस्ट किया जाता है। इसके साथ ही निम्नलिखित परेशानी होने पर भी GGT टेस्ट की जा सकती है। जैसे
एहतियात/चेतावनी
जीजीटी टेस्ट से पहले मुझे क्या पता होना चाहिए?
जीजीटी टेस्ट के 24 घंटों के भीतर अल्कोहल की थोड़ी मात्रा सें भी जीजीटी अस्थायी रूप से बढ़ सकता है। स्मोकिंग से भी जीजीटी बढ़ सकता है।
जीजीटी का स्तर अधिक होना हृदय रोग या हाई ब्लडप्रेशर का संकेत हो सकता है। कुछ अध्ययन के मुताबिक, जीजीटी के स्तर में वृद्धि से लोगों के हृदय रोग से मरने का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन ऐसा क्यों होता है अभी तक पता नहीं चला है।
जीजीटी स्तर बढ़ाने वाली दवाओं में शामिल है, कार्बामाजेपिन और बार्बिट्यूरेट्स जैसे फेनोबार्बिटल। इसके अलावा अन्य दवाएं नॉनस्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लामेट्री ड्रग्स (NSAIDs), लिपिड-लोअरिंग ड्रग्स, एंटीबायोटिक्स, हिस्टामाइन रिसेप्टर ब्लॉकर्स (पेट में अतिरिक्त एसिड के उत्पादन का इलाज करने के लिए उपयोग किया जाता है), एंटिफंगल, एंटीडिप्रेसेंट्स और टेस्टोस्टेरोन जैसे हार्मोन जीजीटी का स्तर बढ़ा सकते हैं। क्लोफिब्रेट और ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव्स जीजीटी के स्तर को कम कर सकते हैं।
जीजटी का स्तर महिलाओं में उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता है, लेकिन पुरुषों में नहीं। मगर यह पुरुषों में कुछ हद तक अधिक ही होता है
इंजेक्शन लगाने वाली जगह पर थोड़ा रक्तस्राव हो सकता है, दुर्लभ मामलों में ही इससे संक्रमण होता है।
प्रक्रिया
जीजीटी टेस्ट के लिए कैसे तैयारी करें ?
डॉक्टर आपको टेस्ट के 8 घंटे पहले से कुछ नहीं खाने का निर्देश देगा और कुछ दवाइयां भी बंद कर सकता है। यदि आप टेस्ट के 24 घंटे के अंदर एल्कोहॉल का थोड़ा भी सेवन करते हैं, तो इससे टेस्ट रिजल्ट प्रभावित हो सकता है। इसलिए GGT टेस्ट के 8 घंटे पहले से खाद्य पदार्थों का सेवन न करें और इस टेस्ट से पहले एल्कोहॉल का सेवन ही बर्जित है। अगर आपने एल्कोहॉल का सेवन किया है और टेस्ट के लिए जा रहें हैं, तो इसकी जानकारी अपने हेल्थ एक्सपर्ट को दें।
जीजीटी टेस्ट के दौरान क्या होता है ?
नियमित ब्लड टेस्ट से आपका जीजीटी लेवल मापा जा सकता है। आमतौर पर आपकी बांह की नस से ब्लड निकाला जाता है। तकनीशियन आपकी बांह पर एलास्टिक बैंड बांधता है। फिर सिरिंज की मदद से ब्लड निकाला जाता है। जब सुई चुभाई जाती है तो आपको बस चींटी के काटने जितना दर्द होता है और ब्लड निकालने वाली जगह पर थोड़ा निशान बन जाता है।
जीजीटी टेस्ट के बाद क्या होता है ?
इस टेस्ट के बाद किसी तरह की खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है। यदि डॉक्टर किसी तरह के निर्देश नहीं देता है तो आप अपनी सामान्य दिनचर्या शुरू कर सकते हैं।
यदि आपके मन में जीजीटी टेस्ट से जुड़ा कोई सवाल हैै, तो कृपया अधिक जानकारी और निर्देशों को बेहतर तरीके से समझने के लिए संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
परिणामों को समझें
मेरे परिणामों का क्या मतलब है?
जीजीटी का सामान्य स्तर 9–48 यूनिट प्रति लीटर (U/L) होता है। सामान्य वैल्यू भी उम्र और लिंग के आधार पर अलग हो सकती है।
जीजीटी का ऊंचा स्तर इस बात का संकेत है कि कोई स्वास्थ्य स्थिति या बीमारी लिवर को नुकसान पहुंचा रही है, लेकिन विशेष रूप से यह नहीं बताता कि क्या। आमतौर पर स्तर जितना अदिक होगा लिवर को उतनी अधिक क्षति होती है। हेपेटाइटिस और सिरोसिस जैसी लिवर की बीमारी के कारण स्तर ऊंचा हो सकता है, मगर यह दूसरी वजहों से भी हो सकता है जैसे- हार्ट फेलियर, डायबिटीज या संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है पैनक्रियाटिस। यह एल्कोहल के सेवन और लिवर को हानि पहुंचाने वाली दवाओं के कारण भी बढ़ सकता है।
कम या सामान्य जीजीटी स्तर संकेत देता है कि किसी व्यक्ति को लिवर की बीमारी नहीं है और उसने एल्कोहल का सेवन नहीं किया है।
जीजीटी का बढ़ा स्तर हड्डियों की बीमारी को बढ़ा देता है, ऐसा बढ़े हुए ALP लेवल के कारण होता है। लेकिन जीजीटी यदि कम या सामान्य है, तो ALP के बढ़ने का कारण हड्डी की बीमारी है।
जीजीटी उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील है। यदि आपके डॉक्टर को लगता है कि किसी दवा या आपके थोड़ा सा एल्कोहल के इस्तेमला से परिणाम प्रभावित हो रहा है, तो वह दोबारा टेस्ट के लिए कहेगा। बार्बिटुरटेस (Barbiturates), फेनोबार्बिटल (Phenobarbital) और कुछ बिना प्रिस्क्रिप्शन वाली दवाएं भी जीजीटी को बढ़ा देती हैं। महिलाओं में जीजीटी का स्तर उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता है, लेकिन पुरुषों संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है में नहीं।
आप बहुत शराब पीते थे और हाल ही में पीना बंद किया है तो आपके जीजीटी लेवल को सामान्य होने में कुछ महीने लगेंगे।
सभी लैब और अस्पताल के आधार पर जीजीटी टेस्ट की सामान्य सीमा अलग-अलग हो सकती है। परीक्षण परिणाम से जुड़े किसी भी सवाल के लिए कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
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नया आरक्षण एस.सी., एस.टी. व ओ.बी.सी. को समानता और न्याय से वंचित करेगा
मेरी इसे लेकर काफी अच्छी स्थिति है कि समकालीन भारत में सामाजिक न्याय क्या है और आगे की राह क्या है। मुझे इस बात की भी गहरी समझ है कि भारतीय समाज कितना असमान है और इसको और अधिक समान बनाने के लिए हमें सौ चीजें करनी होंगी। सामाजिक न्याय और समानता के चौराहे पर, कभी-कभी सामाजिक न्याय का नुक्सान हुआ है और अन्य समयों में समानता का बलिदान किया गया है।
कानून विधायिका द्वारा बनाए जाते हैं, जो राजनेताओं की एक सभा है। कानून का प्रशासन उन न्यायाधीशों द्वारा लागू किया जाता है जिन्हें राजनीति से हटा दिया जाता है। शासकों को न्यायाधीशों से डरना चाहिए, न्यायाधीशों को शासकों से कतई नहीं डरना चाहिए। कानून और राजनीति के प्रतिच्छेदन का परिणाम ही इस बात का सही पैमाना है कि कोई देश कानून द्वारा शासित है या नहीं।
चौराहे पर : सुप्रीम कोर्ट का 7 नवंबर, 2022 को जनहित अभियान में दिया गया फैसला कानून, राजनीति, सामाजिक न्याय और समानता के चौराहे पर सामने आने संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है वाली दुविधाओं का एक बेहतरीन उदाहरण है। संविधान के 103वें संशोधन, जिसे लोकप्रिय रूप से ‘ई.डब्ल्यू.एस. आरक्षण मामला’ कहा जाता है, की वैधता को चुनौती देने वाले मामलों के एक समूह में यह फैसला सुनाया गया था। ई.डब्ल्यू.एस. का मतलब आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग है। इस कॉलम के लिए मैं उन्हें ‘गरीब’ कहना पसंद करूंगा।
मौलिक मुद्दे : शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आज कई तरह के आरक्षण हैं। ये आरक्षण ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों’ के लिए हैं, जिसका अर्थ है अनुसूचित जाति (एस.सी.), अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.)। ऐतिहासिक, संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है और अकाट्य, कारण हैं कि क्यों लोगों के ये वर्ग सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं। आरक्षण को ‘सकारात्मक कार्रवाई’ का एक साधन माना जाता था और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण को वैधता और स्वीकृति प्राप्त है।
माना जाता है कि इन आरक्षणों ने उन लोगों के वर्गों के बीच ‘नाराजगी’ पैदा की है, जो किसी भी आरक्षण का आनंद नहीं लेते, विशेष रूप से वे नागरिक, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग से नहीं हैं। यह विचार पैदा हुआ कि इन नागरिकों में गरीबों को शिक्षा और रोजगार में उसी समान नुक्सान उठाना पड़ता है, तो क्या गरीबों के लिए नया आरक्षण बनाया जा सकता है? यह विचार वैचारिक रूप से उचित था लेकिन इसमें बाधाएं थीं : ो
-क्या गरीबों को ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा’ माना जा सकता है जो कि आरक्षण प्रदान करने के लिए भारत के संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त एकमात्र श्रेणी है?
-क्या आर्थिक न्याय को आगे बढ़ाने के लिए गरीबों के लिए आरक्षण संविधान के ‘बुनियादी ढांचे’ का उल्लंघन करेगा?
-चूंकि, न्यायाधीश द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार, सभी आरक्षण एक साथ ‘सीटों’ या ‘नौकरियों’ के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकते, क्या 10 प्रतिशत का नया आरक्षण उस सीमा का उल्लंघन नहीं करेगा?
‘मूल संरचना’ का सिद्धांत और ‘50 प्रतिशत सीलिंग’ का नियम संविधान की व्याख्या करने वाले निर्णयों में खोजा जा सकता है। एक बार जब माननीय न्यायाधीशों ने न्यायाधीशों द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्मित अवरोधों को दूर करने का फैसला किया, तो आगे का रास्ता साफ हो गया।
सभी पांच माननीय न्यायाधीश इस बात से सहमत थे कि आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय के समान है और आर्थिक मानदंडों के आधार पर एक नया आरक्षण संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करेगा। वे इस बात से भी सहमत थे कि इस मामले में 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक होना असंवैधानिक नहीं था। उन्होंने सर्वसम्मति से आर्थिक मानदंड और 10 प्रतिशत की मात्रा के आधार पर आरक्षण को बरकरार रखा। फैसले के इस हिस्से की आलोचना मौन है। जिस मुद्दे पर राय बंटी हुई है, वह यह है कि क्या आरक्षण एस.सी., एस.टी. और ओ.बी.सी. के गरीबों को बाहर कर सकता है?
विभाजित न्यायालय : गरीबी पोषण,पालन-पोषण और प्रारंभिक शिक्षा में कमी का मुख्य कारण है। ये कमियां शिक्षा और रोजगार तक पहुंच को सीमित या खारिज करती हैं। प्रश्न उठता है कि गरीब कौन हैं? 103वें संवैधानिक संशोधन ने ‘पारिवारिक आय और आर्थिक नुक्सान के अन्य संकेतकों’ के आधार पर गरीबों को अधिसूचित करने का काम राज्यों पर संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है छोड़ दिया। अल्पमत के फैसले में सिन्हा आयोग (जुलाई 2010) का हवाला दिया गया, जिसने निष्कर्ष निकाला था कि 31.7 करोड़ लोग गरीबी रेखा (बी.पी.एल.) से नीचे थे। इनमें से अनुसूचित जाति की आबादी 7.74 करोड़, अनुसूचित जनजाति की 4.25 करोड़ और ओ.बी.सी. की 13.86 करोड़ थी, जो कुल 25.85 करोड़ या बी.पी.एल. आबादी का 81.5 प्रतिशत थी। बी.पी.एल. आबादी के बीच यह अनुपात 2010 के बाद से महत्वपूर्ण रूप से नहीं बदल सकता था।
अहम सवाल यह है कि क्या अनुच्छेद 15(6) और अनुच्छेद 16(6), जो एस.सी., एस.टी. और ओ.बी.सी. के गरीबों को नए आरक्षण से बाहर करते हैं, संवैधानिक रूप से मान्य हैं? इस मुद्दे पर, माननीय न्यायाधीश 3-2 की संख्या में विभाजित थे। न्यायमूर्ति रवींद्र भट ने एक जोरदार असहमति लिखी, जिससे मुख्य न्यायाधीश ललित ने सहमति व्यक्त की। उनके शब्द, ‘हमारा संविधान बहिष्करण की भाषा नहीं बोलता’ कई वर्षों तक सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट हॉल में गूंजते रहेंगे। मेरे विचार में, असंतोष ‘कानून की उग्र भावना के लिए एक अपील है, भविष्य की बुद्धिमत्ता के लिए, जब बाद का निर्णय संभवत: त्रुटि को ठीक कर सकता है।’ (मुख्य न्यायाधीश चाल्र्स इवांस ह्यूजेस के अनुसार)।
इन संभावित निष्कर्षों पर विचार करें : गरीबों के लिए एक नया आरक्षण बनाने से आर्थिक न्याय को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (जो कुल गरीबों का लगभग 81.5 प्रतिशत है) को आरक्षण से संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है बाहर करना गरीबों में सबसे गरीब को समानता और न्याय से वंचित करेगा।-पी.चिदंबरम
7th Pay Commission: महंगाई भत्ते (DA) के कैलकुलेशन का बदलेगा तरीका, Labor Ministry ने नया बेस ईयर किया तय
7th Pay Commission today: महंगाई भत्ता (Dearness allowance) ऐसा पैसा है, जो सरकारी कर्मचारियों को उनके रहने-खाने के स्तर (Cost of Living) को बेहतर बनाने के लिए दिया जाता है.
7th Pay Commission today: महंगाई भत्ते के मामले में नया बदलाव किया गया है. मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय (Ministry of Labour and Employment) ने महंगाई भत्ते की कैलकुलेशन का फॉर्मूला बदल दिया है. सीधे तौर पर श्रम मंत्रालय ने महंगाई भत्ते के आधार वर्ष (Base Year) 2016 में बदलाव किया है. मजदूरी दर सूचकांक (WRI-Wage Rate Index) की एक नई सीरीज जारी की है. श्रम मंत्रालय ने कहा कि आधार वर्ष 2016=100 के साथ WRI की नई सीरीज 1963-65 के आधार वर्ष की पुरानी सीरीज की जगह लेगी.
आधार वर्ष बदलती है सरकार
महंगाई के आंकड़ों के आधार पर सरकार समय-समय पर प्रमुख आर्थिक संकेतकों के लिए आधार वर्ष (Inflation Base Year) में संशोधन करती है. इससे अर्थव्यवस्था में आने वाले बदलाव को प्रतिबिंबित किया जा सके और मजदूरों के वेज पैटर्न को शामिल किया जा सके. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (National Statistical Commission) की सिफारिशों के मुताबिक, दायरा बढ़ाने और सूचकांक को ज्यादा बेहतर बनाने के लिए मजदूरी दर सूचकांक का आधार वर्ष 1963-65 से बदलकर 2016 किया गया है.
कैसे होता है महंगाई भत्ते का कैलकुलेशन?
महंगाई भत्ते की मौजूदा दर को मूल वेतन (Basic Pay) से गुणा करने पर महंगाई भत्ते की रकम निकाली जाती है. प्रतिशत की मौजूदा दर 12% है, अगर आपका मूल वेतन 56900 रुपए डीए (56,900 x12)/100 है.
ये फॉर्मूला होता है इस्तेमाल
महंगाई भत्ते का फीसदी= पिछले 12 महीने का CPI का औसत-115.76. अब जितना आएगा उसे 115.76 से भाग दिया जाएगा. जो अंक आएगा, उसे 100 से गुणा कर दिया जाएगा.
क्या होता है महंगाई भत्ता (DA)?
महंगाई भत्ता (Dearness allowance) ऐसा पैसा है, जो सरकारी कर्मचारियों को उनके रहने-खाने के स्तर (Cost of Living) को बेहतर बनाने के लिए दिया जाता है. ये पैसा इसलिए दिया जाता है, ताकि महंगाई बढ़ने के बाद भी कर्मचारी के रहन-सहन के स्तर में कोई फर्क न पड़े. ये पैसा सरकारी कर्मचारियों, पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों और पेंशनधारकों को दिया जाता है. भारत में मुंबई से 1972 में सबसे पहले महंगाई भत्ते (DA) की शुरुआत हुई थी. इसके बाद केंद्र सरकार सभी सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिया जाने लगा.
हर 6 महीने में होता है बदलाव
डियरनेस अलाउंस (Dearness allowance) कर्मचारियों के रहने-खाने के स्तर को बेहतर बनाने के लिए दिया जाता है. महंगाई भत्ता इसलिए दिया जाता है कि महंगाई बढ़ने के बाद भी कर्मचारियों को अपना जीवन-यापन करने में कोई परेशानी न हो. आमतौर पर हर 6 महीने, जनवरी और जुलाई में Dearness Allowance में बदलाव किया जाता है.
सैनिक शासकों की जिद से गतिरोध बढ़ा, अब आसियान से निकाला जाएगा म्यांमार
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान ने म्यांमार के सैनिक शासन से कहा है कि देश के अंदर संकट हल करने के ऐसे उपाय करे, जिन्हें ठोस रूप से मापा जा सके। साथ ही उसे ये उपाय एक तय समयसीमा के भीतर करने को कहा गया है। विश्लेषकों के मुताबिक यह ताजा रुख म्यांमार में गहरा संकट को लेकर आसियान नेताओं में गहरा रहे असंतोष का संकेत है। लेकिन सैनिक शासकों ने आसियान के बयानों को सिरे से ठुकरा दिया है।
आसियान नेता यहां अपने सालाना सम्मेलन के लिए इकट्ठा हुए हैं। ये शिखर सम्मेलन अगले हफ्ते इंडोनेशिया के बाली में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले हो रहा है। शुक्रवार को आसियान नेताओं ने आपस में बातचीत की। इसके अलावा उन्होंने चीन के प्रधानमंत्री ली किचियांग से भी वार्ता की, जिसमें इस क्षेत्र से संबंधित कई संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा हुई।
आसियान शिखर सम्मेलन के एजेंडे में सर्व-प्रमुख मुद्दा म्यांमार रहा। म्यांमार भी दस देशों के इस संगठन का हिस्सा है। वहां पिछले साल एक फरवरी को सेना ने निर्वाचित प्रतिनिधियों का तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा जमा लिया था। तब से देश में हिंसा तेज होती गई है। म्यांमार के सैनिक शासक जनरल मिन आंग हलायंग अप्रैल 2021 में आसियान के साथ समाधान की एक योजना पर सहमत हुए थे। लेकिन इस योजना में शामिल बिंदुओं पर शायद ही कोई अमल हुआ है। इससे आसियान में गहरी नाराजगी है।
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने यहां संवाददाताओं से कहा कि 'अब म्यांमार में ऐसी स्थिति नहीं बनी रहनी चाहिए, जिनके बीच आसियान लाचार बना रहे।' शिखर सम्मेलन में अप्रैल 2021 में बनी पांच सूत्री सहमति पर अमल की समीक्षा की गई। इन बिंदुओं में शामिल हैं- हिंसा का तुरंत खात्मा, बातचीत, और आसियान के विशेष दूत को सभी पक्षों से मिलने की इजाजत। आसियान नेताओं अब अपने विदेश मंत्रियों से कहा है कि वे ऐसे ठोस और मापने योग्य व्यावहारिक संकेतक तैयार करें, जिससे पांच सूत्री योजना पर अमल में हुई प्रगति का ठोस अंदाजा लग सके।
पर्यवेक्षकों के मुताबिक इस शिखर सम्मेलन से यह संकेत मिला है कि आसियान में म्यांमार का भविष्य अब अनिश्चित हो गया है। इस संगठन ने इस बार के शिखर सम्मेलन के लिए म्यांमार की सैनिक सरकार को आमंत्रित नहीं किया। इसके पहले अगस्त में हुई आसियान विदेश मंत्रियों की बैठक में भी म्यांमार को नहीं बुलाया गया था। यहां फैसला हुआ कि अगर जरूरत हुई, तो आसियान को-ऑर्डिनेशन काउंसिल इस बात की समीक्षा करेगा कि म्यांमार की सदस्यता जारी रखी जाए या नहीं।
आसियान नेताओं की भावनाओं को जताते हुए विडोडो ने कहा- 'हम बेहद निराश हैं। म्यांमार में हालात बदतर हो रहे हैं। पांच सूत्री सहमति पर अमल की दिशा में कोई ठोस प्रगति नही हुई है।' उधर फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनैंड मार्कोस जूनियर ने म्यांमार से दो टूक कहा कि वह पांच सूत्री सहमति को लागू करे।
लेकिन म्यांमार ने आसियान के बयान को सिरे से नकार दिया है। शुक्रवार देर शाम म्यांमार के सैनिक शासन ने बेलाग कहा कि वह आसियान की सिफारिशों का पालन नहीं करेगा। एक फेसबुक पोस्ट के जरिए दिए बयान संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है में उसने म्यांमार के विपक्षी समूहों से बातचीत करने के आसियान के फैसले की आलोचना की। उसने इस समूहों को 'गैर-कानूनी और आतंकवादी संगठन' करार दिया और आरोप लगाया कि आसियान उन्हें वैधता प्रदान कर रहा है।