संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है?

बिज़नेस समाचार
मोदी सरकार ने इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) प्रोग्राम के तहत ब्लेंडिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इथेनॉल के लिए जीएसटी की दर को 18 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया है। बता दें कि, ईबीपी प्रोग्राम के तहत पेट्रोल में इथेनॉल को मिलाया जाता है।
Cryptocurrency उभरते बाजारों के लिए एक चुनौती, विनियमन की जरूरत: गीता गोपीनाथ
आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने एक कार्यक्रम में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि उभरते बाजारों के लिए क्रिप्टोकरेंसी खासतौर से एक चुनौती है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में उभरती अर्थव्यवस्थाओं में क्रिप्टोकरेंसी और परिसंपत्तियों को अपनाना अधिक आकर्षक लगता है।’’
क्रिप्टोकरेंसी को उभरते बाजारों के लिए एक चुनौती मानती हैं गीता गोपीनाथ, विनियमन की जरूरत
गोपीनाथ ने क्रिप्टोकरेंसी को विनियमित करने के लिए एक वैश्विक नीति और समन्वित कार्रवाई का भी सुझाव दिया।
बड़ा झटका: SBI ग्राहकों के लिए कर्ज होगा महंगा, बैंक ने बुधवार से बेस रेट में किया इजाफा
सितंबर में बैंक ने आधार दर को 5 आधार अंक घटाकर 7.45 फीसदी कर दिया था।
PNB और ICICI बैंक ने की बड़ी चूक, रिजर्व बैंक ने लगाया करोड़ों का जुर्माना
आरबीआई ने एक बयान में कहा कि उसने पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के निगरानी मूल्यांकन को लेकर सांविधिक जांच-पड़ताल की थी।
भूल जाइए सस्ते मोबाइल और लैपटॉप, 20 महीने के निचले स्तर पर पहुंचा भारतीय रुपया
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा कोरोना वायरस के नये स्वरूप ओमीक्रॉन के अधिक तेजी से फैलने की चेतावनी दी है।
भारत बनेगा सेमीकंडक्टर चिप निर्माण का ग्लोबल हब, कैबिनेट ने दी 76,000 करोड़ रुपये की PLI योजना को मंजूरी
इस योजना के अगले 6 साल में देश में सेमीकंडक्टर चिप्स का एक कंप्लीट इकोसिस्टम विकसित किया जाएगा। इसमें सेमीकंडक्टर डिजाइन, कंपोनेंट्स मैन्युफैक्चरिंग और डिस्प्ले फैब्रिकेशन यूनिट्स की स्थापना शामिल है।
असम की इस चाय की कीमत है 99,999 रुपये प्रति किलो, नाम नहीं जानना चाहेंगे आप!
असम के डिब्रूगढ़ जिले की एक विशेष चाय की मंगलवार को 99,999 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर नीलामी की गई।
भारत की चीनी सब्सिडी पर WTO ने उठाए सवाल, कहा नियमों के अनुरूप नहीं
इस बारे में भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि चीनी क्षेत्र के लिये जारी भारत के किसी भी मौजूदा नीतिगत उपायों पर विश्व व्यापार संगठन की समिति के निष्कर्षों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
अंतरिक्ष तक पहुंच रखने वाले Elon Musk के पास नहीं है अपना घर, चुने गए 'टाइम पर्सन ऑफ द ईयर'
बता दें कि टाइम मैगजीन 1927 से पर्सन ऑफ द ईयर चुन रही है। चार्ल्स को अटलांटिक के ऊपर से हवाई जहाज उड़ाने की याद में उन्हें इसके लिए चुना गया था।
रीबॉक के परिचालन का जिम्मा संभालेगा आदित्य बिड़ला समूह, 2022 की पहली तिमाही पूरा हो सकता है समझौता
आदित्य बिड़ला फैशन एंड रिटेल लि. (एबीएफआरएल) पहले से ही ‘फोरेवर 21’ जैसे एबीजी के कुछ ब्रांड का विपणन और बिक्री करती है।
टॉप 100 ग्लोबल लग्जरी ब्रांड की लिस्ट में पांच भारतीय ब्रांड शामिल
सूची में शीर्ष 10 ब्रांड में लुई वितों, केरिंग, कैप्री, लॉरियल, शनेल जैसी कंपनियां शामिल हैं।
WPI Inflation: थोक महंगाई ने तोड़ा 12 साल का रिकॉर्ड! 12.54% से बढ़कर 14.2% पर पहुंची दर
आंकड़ों के मुताबिक, खाने-पीने की चीजों वाला थोक महंगाई 3.06 फीसदी से बढ़कर 6.70 फीसदी हो गई है।
Bank की हड़ताल से पहले वित्तमंत्री का बड़ा बयान, दो बैंकों को बेचने के संबंध में अभी कोई फैसला नहीं
वित्त मंत्री ने कहा कि प्राइवेटाइजेशन पर कैबिनेट कमिटी ने सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों को बेचने के संबंध में अभी कोई फैसला नहीं किया है।
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती बेअसर! खुदरा महंगाई दर 4.35 से बढ़कर 4.91 फीसदी हुई
भारतीय संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? रिजर्व बैंक का मानना है कि मुद्रास्फीति का आंकड़ा चालू वित्त वर्ष की बची हुई अवधि में ऊंचा रहेगा
ग्रोफर्स ने नाम बदल कर किया ब्लिंकिट, सिर्फ '10 मिनट' में सामान आपके घर पहुंचाने की गारंटी
जोमैटो और सॉफ्टबैंक द्वारा वित्तपोषित इस कंपनी ने कुछ महीने पहले 10 मिनट की डिलीवरी के वादे के साथ अपनी फास्ट डिलिवरी सर्विस शुरू की थी।
जानिए किन देशों में नौकरी करना चाहते हैं भारतीय युवा, विदेश में अप्लाई करने वालों की संख्या में जबर्दस्त उछाल
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर लगाए गए यात्रा प्रतिबंधों के बावजूद विदेश में नौकरी की तलाश करने वाले भारतीयों की संख्या में निरंतर इजाफा हुआ है।
Alert: इस हफ्ते 2 दिन रहेगी बैंकों में हड़ताल, अटक सकते हैं आपके जरूरी काम
यूएफबीयू के संयोजक बी रामबाबू ने कहा कि संगठन ने बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक 2021 के विरोध में और सरकारी बैंकों के निजीकरण के केंद्र के कथित कदम का विरोध करते हुए यह हड़ताल बुलाई है
RBI गवर्नर ने किया आगाह, ऊंचा रिटर्न पाने की चाहत रखने वालों को दी ये खास सलाह
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में निवेशकों को ऊंचे रिटर्न पाने की इच्छा के साथ सावधानी बरतने की जरूरत है।’’ रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा, ‘‘एक बैंक ज्यादा ब्याज दर की पेशकश कर रहा है, तो जमाकर्ताओं को अपना पैसा लगाने के पहले संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? खुद भी ज्यादा सजग होना चाहिए।’’
संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है?
मोदी सरकार संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट पर खुश हो सकती है। इस रिपोर्ट में भारत में गरीबी विरुद्ध लड़ाई में भारत सरकार के प्रयासों की सराहना की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति से बड़ी संख्या में लोग गरीबी के दलदल से बाहर निकल आए हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006 से 2016 के बीच रेकॉर्ड 27.10 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। खाना पकाने के ईंधन, साफ-सफाई और पोषण जैसे क्षेत्रों में मजबूत सुधार के साथ बहुआयामी गरीबी सूचकांक वैल्यू में सबसे बड़ी गिरावट आई है। गरीबी के खिलाफ लड़ाई में यूपीए सरकार की प्रगति को भी रेखांकित किया जाना चाहिए क्योंकि 2006 से 2014 तक देश में यूपीए की सरकार कार्यरत थी।
वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) 2019 नामक रिपोर्ट गुरुवार को जारी की गई । रिपोर्ट में 101 देशों में 1.3 अरब लोगों का अध्ययन किया गया। इसमें 31 न्यूनतम आय, 68 मध्यम आय और संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? 2 उच्च आय वाले देश थे। विभिन्न पहलुओं के आधार पर ये लोग गरीबी में फंसे थे यानी गरीबी का आकलन सिर्फ आय के आधार पर नहीं बल्कि स्वास्थ्य की खराब स्थिति, कामकाज की खराब गुणवत्ता और हिंसा का खतरा जैसे कई संकेतकों के आधार पर किया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2006 से 2016 के बीच 27.10 करोड़ लोग, जबकि बांग्लादेश में 2004 से 2014 के बीच 1.90 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। इसमें 10 चुने गए देशों में भारत और कम्बोडिया में एमपीआई मूल्य में सबसे तेजी से कमी आई और उन्होंने सर्वाधिक गरीब लागों को बाहर निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-06 में भारत के करीब 64 करोड़ लोग (55.1 प्रतिशत) गरीबी में जी रहे थे, जो संख्या घटकर 2015-16 में 36.9 करोड (27.9 प्रतिशत) पर आ गई। इस प्रकार, भारत ने बहुआयामी यानी विभिन्न स्तरों और उक्त 10 मानकों में पिछड़े लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
इससे पूर्व हाल ही में अमेरिकी शोध संस्था की ओर से भारत में गरीबी को लेकर जारी आंकड़े मोदी सरकार को सुकून देने वाले थे । रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पिछले कुछ साल में भारत में गरीबों की संख्या बेहद तेजी से घटी हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि भारत के ऊपर से सबसे ज्यादा गरीब देश होने का ठप्पा भी खत्म हो गया है। देश में हर मिनट 44 लोग गरीबी रेखा के ऊपर निकल रहे हैं। यह दुनिया में गरीबी घटने की सबसे तेज दर है। यह दावा अमेरिकी शोध संस्था ब्रूकिंग्स के ब्लॉग, फ्यूचर डेवलपमेंट में जारी रिपोर्ट में किया गया। रिपोर्ट के अनुसार देश में 2022 तक 03 फीसदी से कम लोग ही गरीबी रेखा के नीचे होंगे। वहीं 2030 तक बेहद गरीबी में जीने वाले लोगों की संख्या देश में न के बराबर रहेगी।
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो वर्ष 2004 से 2011 के बीच भारत में गरीब लोगों की संख्या 38.9 फीसदी से घट कर 21.2 फीसदी रह गई। वर्ष 2011 में भारत में लोगों की क्रय क्षमता 1.9 डॉलर (करीब 125 रुपये) प्रति व्यक्ति के करीब रही। रिपोर्ट के मुताबिक अत्यंत गरीबी के दायरे में वह आबादी आती है जिसके पास जीवनयापन के लिए रोजाना 1.9 डॉलर (करीब 125 रुपये) भी नहीं होते। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि देश में तेज आर्थिक विकास के चलते गरीबी घटी है।
विश्व बैंक के मुताबिक दुनिया में करीब 76 करोड़ गरीब हैं इनमें भारत में करीब 22.4 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं। भारत के 7 राज्यों छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और यूपी में करीब 60 प्रतिशत गरीब अबादी रहती है। 80 प्रतिशत गरीब भारत के गांवों में रहते हैं। लोकसभा में भारत सरकार द्वारा दी गई एक जानकारी के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या सवा सौ करोड़ से ज्यादा है। इसमें करीब 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) जीवनयापन करते हैं। इनमें से अनुसूचित जनजाति के 45 प्रतिशत और अनुसूचित जाति के 31.5 प्रतिशत के लोग इस रेखा के नीचे आते हैं।
विभिन्न स्तरों पर गरीबी खत्म किये जाने के दावे स्वतंत्र विश्लेषक सही नहीं मानते है। मगर यह अवश्य कहा जा सकता है कि पिछले एक दशक में गरीबी उन्मूलन के प्रयास जरूर सिरे चढ़े है। सरकारी स्तर पर यदि ईमानदारी से प्रयास किये जाये और जनधन का दुरूपयोग नहीं हो तो भारत शीघ्र गरीबी के अभिशाप से मुक्त हो सकता है।
खुली आर्थिकी में सावधानियाँ जरूरी
उन्न्त बीज वाली फसलों.. खासकर सब्जियों में बीमारियों का प्रकोप इतना अधिक है कि न चाहते हुए भी किसान ‘कीटनाशकम् शरणम् गच्छामि’ को मजबूर हो रहा है। भारत की जलविद्युत, नहरी और शहरी जलापूर्ति परियोजनाओं में अन्तरराष्ट्रीय संगठनों की दिलचस्पी जगजाहिर है। अपने पर्यावरण पार्टनरों द्वारा मचाए स्वच्छता, प्रदूषण मुक्ति और कुपोषण के हो-हल्ले के जरिए भी ये अन्तरराष्ट्रीय संगठन ‘आर ओ’, शौचालय, मलशोधन संयन्त्र, दवाइयाँ और टीके ही बेचते हैं। ये कहते हैं कि कुपोषण मुक्ति के सारे नुख्से इनके पास हैं। ये ‘हैंड वाश डे’ के जरिए ‘ब्रेन वाश’ का काम करते हैं। वैश्विक आर्थिकी के लिये भारत के दरवाज़े खोले हुए हमें 25 वर्ष तो हो ही गए। बड़े पैकेज, निवेश, आउटसोर्सिंग के मौके, सेवा क्षेत्र का विस्तार, वैश्विक स्तर पर प्रतिद्वन्दिता के कारण ग्राहक को फायदे जैसे गिनाए तात्कालिक लाभ से तो हम सभी परिचित हैं ही। जरूरी है कि दूरगामी लाभ-हानि के मोर्चे पर भी कुछ मन्थन कर लें। यूँ भी किसी भी प्रयोग के लाभ-हानि के मन्थन के लिये 25 वर्ष पर्याप्त होते हैं। मैं अर्थशास्त्री नहीं हूँ।
ज़मीन पर जो कुछ सहज रूप में देख-सुन पा रहा हूँ, उसी को आधार बनाकर कुछ चुनिन्दा पहलुओं पर आकलन पेश कर रहा हूँ। मकसद है कि हम सभी इन बिन्दुओं पर जरा और गहराई से समझें और फिर लगे कि सावधान होने की जरूरत है, तो खुद भी सावधान हों और दूसरों को भी सावधान करें।
खुली आर्थिकी के चाल चलन
विश्व व्यापार संगठन, विश्व इकोनॉमी फोरम, विश्व बैंक, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि ऐसे कई संगठन, जिनके नाम के साथ ‘विश्व’ अथवा ‘अन्तरराष्ट्रीय’ लगा है, खुली अर्थिकी के हिमायती भी हैं और संचालक भी। यह बात हम सभी जानते हैं। किन्तु बहुत सम्भव है कि खुली आर्थिकी के चाल चलन से हम सभी परिचित न हों। इनसे परिचित होना हितकर भी है और अपनी अर्थव्यवस्था और आदतों को बचाने के लिये जरूरी भी।
गौर कीजिए कि ये अन्तरराष्ट्रीय संगठन कुछ देशों की सरकारों, बहुद्देशीय कम्पनियों और न्यासियों के गठजोड़ हैं, जो दूसरे देशों की पानी-हवा-मिट्टी की परवाह किए बगैर परियोजनाओं को संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? कर्ज और सलाह मुहैया कराते हैं; निवेश करते हैं। ऐसी परियोजनाओं के जरिए लाभ के उदाहरण हैं, तो पर्यावरण के सत्यानाश के उदाहरण भी कई हैं। उन्नत बीज, खरपतवार, कीटनाशक, उर्वरक और ‘पैक्ड फूड’ के जरिए भारत की खेती, खाना और पानी इनके नए शिकार हैं।
बीजों व उर्वरकों में मिलकर खरपतवार की ऐसी खेप आ रही है कि किसान उन्हें खोदते-खोदते परेशान हैं। उन्न्त बीज वाली फसलों.. खासकर सब्जियों में बीमारियों का प्रकोप इतना अधिक है कि न चाहते हुए भी किसान ‘कीटनाशकम् शरणम् गच्छामि’ को मजबूर हो रहा है। भारत की जलविद्युत, नहरी और शहरी जलापूर्ति परियोजनाओं में अन्तरराष्ट्रीय संगठनों की दिलचस्पी जगजाहिर है।
अपने पर्यावरण पार्टनरों द्वारा मचाए स्वच्छता, प्रदूषण मुक्ति और कुपोषण के हो-हल्ले के जरिए भी ये अन्तरराष्ट्रीय संगठन ‘आर ओ’, शौचालय, मलशोधन संयन्त्र, दवाइयाँ और टीके ही बेचते हैं। ये कहते हैं कि कुपोषण मुक्ति के सारे नुख्से इनके पास हैं। ये ‘हैंड वाश डे’ के जरिए ‘ब्रेन वाश’ का काम करते हैं।
ये साधारण नमक को नकार कर, आयोडीन युक्त नमक को कुतर्क परोसते हैं। इस तरह तीन रुपए किलो नमक की जगह, 16 रुपए किलो में नमक का बाजार बनाते हैं। जबकि यह सिद्ध पाया गया कि तराई के इलाके छोड़ दें, तो भारत के अधिकतर इलाकों की परम्परागत खानपान सामग्रियों के जरिए जरूरत भर का आयोडीन शरीर में जाता ही है। आयोडाइज्ड नमक खाने से इसकी अतिरिक्त मात्रा से लाभ के स्थान पर नुकसान की बात ज्यादा कही जा रही है।
कितना फाइन, रिफाइंड?
इसी तर्ज पर याद कीजिए कि करीब दो दशक पहले भारत में साधारण तेल की तुलना में रिफाइंड तेल से सेहत के अनगिनत फायदे गिनाए गए। डॉक्टर और कम्पनियों से लेकर ग्राहकों तक ने इसके अनगिनत गुण गाए। हमारे कोल्हु पर ताला लगाने की कुचक्र इतना सफल हुआ कि हमारी गृहणियों ने भी शान से कहा - “कित्ता ही महंगा हो; हमारे इनको को रिफाइंड ही पसन्द है।’’ इस पसन्द ने हमारे कोल्हुओं को कम-से-कम शहरों में तो ताला लगवा ही दिया।
रिफाइंड को लेकर विज्ञान पर्यावरण केन्द्र की रिपोर्ट को लेकर कुछ वर्ष पूर्व खुली आँखों से हम सब परिचित हैं ही। रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत के बाजार में बिक रहे रिफाइंड तेलों में मानकों की पालना नहीं हो रही। लिये गए नमूनों में तेल को साफ करने में इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन, तय मानक से अधिक स्तर तक मौजूद पाए गए। ऐसे रसायनों को शारीरिक रसायन सन्तुलन को बिगाड़कर, शरीर को खतरनाक बीमारी का शिकार बनाने वाला शिकारी माना गया। दवा करते गए, मर्ज बढ़ता गया। यही हाल है।
पिछले वर्षों एक अमेरिकी शोध आया - ‘कोल्ड ब्रिज ऑयल से अच्छा कोई नहीं।’ ‘कोल्ड ब्रिज ऑयल’ यानी ठंडी पद्धति से निकाला गया तेल। कोल्हु यही तो करता है। कोल्हु में तेल निकालते वक्त आपने पानी के छींटे मारते देखा होगा। यही वह तरीका है, जिसे अब अमेरिका के शोध भी सर्वश्रेष्ठ बता रहे हैं और हमारे डॉक्टर भी।
नए आर्थिक केन्द्रों को डम्प एरिया बनाने की साजिश
इतना ही नहीं, हमारे कुरता-धोती और सलवार-साड़ी कोे पोंगा-पिछड़ा बताकर, दुनिया के देश, पुराने कपड़ों की बड़ी खेप हमारे जैसे मुल्क में खपा रहे हैं। यह हमारी संस्कृति पर भी हमला है और अर्थिकी पर भी। पुर्नोपयोग के नाम पर बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक, प्लास्टिक और दूसरा कचरा विदेशों से आज भारत आ रहा है। गौर कीजिए कि ये कचरा खासकर, एशिया, अफ्रीका और लातिनी अमेरिका के देशों में भेजा जा रहा है। विश्व भूगोल के ये तीनों क्षेत्र, सशक्त होते नए आर्थिक केन्द्र हैं।
दुनिया के परम्परागत आर्थिक शक्ति केन्द्रों को इनसे चुनौती मिलने की सम्भावना सबसे ज्यादा है। पहले किसी देश को कचराघर में तब्दील करना और फिर कचरा निष्पादन के लिये अपनी कम्पनियों को रोज़गार दिलाने का यह खेल कई स्तर पर साफ देखा जा सकता है। इसके जरिए वे अपने कचरे के पुनर्चक्रीकरण का खर्च बचा रहे हैं, सो अलग।
केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्रालय की वर्ष 2015-16 की समिति ने विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को अपने कचरे का डम्प एरिया बनाए जाने पर आपत्ति जताई है और विधायी तथा प्रवर्तन तन्त्र विकसित करने की भी सिफारिश की है। ई-कचरा, इकट्ठा करने के अधिकृत केन्द्रों को पंजीकृत करने को कहा गया है। सिफारिश में ई-कचरे को तोड़कर पुनर्चक्रीकरण प्रक्रिया के जरिये, कचरे के वैज्ञानिक निपटान पर जोर दिया गया है।
खेल खोलती एक रिपोर्ट
जरूरी है कि खुली आर्थिकी के संचालकों की नीयत व हकीक़त का विश्लेषण करते वक्त ‘विश्व इकोनॉमी फोरम रिपोर्ट-जनवरी 2013’ को अवश्य पढ़ें। फोरम रिपोर्ट साफ कहती है कि आर्थिक और भौगोलिक शक्ति के उत्तरी अमेरिका और यूरोप जैसे परम्परागत केन्द्र अब बदल गए हैं। लैटिन अमेरिका, एशिया और दक्षिण अफ्रीका उभरती हुई आर्थिकी के नए केन्द्र हैं। तकनीक के कारण संचार, व्यापार और वित्तीय प्रबन्धन के तौर-तरीके बदले हैं। अब हमें भी बदलना होगा।
फोरम रिपोर्ट सरकारों, कारपोरेट समूहों और अन्तरराष्ट्रीय न्यासियों के करीब 200 विशेषज्ञों ने तैयार की है। सरकार, कारपोरेट और अन्तरराष्ट्रीय न्यासियों के इस त्रिगुट में गैर सरकारी संगठनों को शामिल करने का इरादा जाहिर करते हुए रिपोर्ट ‘एड’ के जरिए ‘ट्रेड’ के मन्त्र सुझाती है।
खुली आर्थिकी में सावधानियाँ जरूरी
छह मई को राज्यसभा में सांसद राजीव शुक्ला ने बताया कि कोलकाता की एक गारमेंट कम्पनी के उत्पाद के नाम, स्टीकर आदि का हुबहू नकली उत्पाद चीन में तैयार हो रहा है। इसमें चिन्ता की बात यह है कि असली कम्पनी करीब 400 करोड़ रुपए का निर्यात कर रही है और चीन, उसी के नाम का नकली उत्पाद तैयार कर लगभग 900 करोड़ का निर्यात कर रहा है। कम्पनी ने तमाम दूतावासों से लेकर भारत सरकार के वाणिज्य मन्त्रालय तक में शिकायत की। नतीजा अब तक सिफर ही है।
कुल मिलाकर कहना यह है कि खुली हुई आर्थिकी के यदि कुछ लाभ हैं तो खतरे भी कम नहीं। ये खतरे अलग-अलग रूप धरकर आ रहे हैं; आगे भी आते रहेंगे। अब सतत् सावधान रहने का वक्त है; सावधान हों। जरूरत, बाजार आधारित गतिविधियों को पूरी सतर्कता व समग्रता के साथ पढ़ने और गुनने की है।
इस समग्रता और सतर्कता के बगैर भ्रम भी होंगे और ग़लतियाँ भी। अतः अपनी जीडीपी का आकलन करते वक्त प्राकृतिक संसाधन, सामाजिक समरसता और ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ जैसेे समग्र विकास के संकेतकों को कभी नहीं भूलना चाहिए। पूछना चाहिए कि पहले खेती पर संकट को आमन्त्रित कर, फिर सब्सिडी देना और खाद्यान्न आयात करना ठीक है या खेती और खाद्यान्न को संजोने की पूर्व व्यवस्था व सावधानी पर काम करना?
स्वयंसेवी संगठनों कोे भी चाहिए कि सामाजिक/प्राकृतिक महत्व की परियोजनाओं को समाज तक ले जाने से पहले उनकी नीति और संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? नीयत को अच्छी तरह जाँच लें, तो बेहतर। ‘गाँधी जी का जन्तर’ याद रख सकें, तो सर्वश्रेष्ठ।
अगर आपको भी दूसरों से ज्यादा काटते हैं मच्छर तो जानिए Mosquitoe को क्यों पसंद है आपका खून
Mosquito Bites Causes: मच्छर अपने शिकार को खोजने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड, दृष्टि, तापमान और आर्द्रता जैसे कई संकेतकों का उपयोग करते हैं.
Causes Of Mosquito Bites: मच्छर अपने शिकार को खोजने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड इस्तेमाल करते हैं
Causes Of Mosquito Bites: मानव त्वचा से निकलने वाली एक सुगंध मच्छरों को आकृर्षित करती है जो जीका, डेंगू और पीले बुखार को फैलाते हैं. यूसी रिवरसाइड के नेतृत्व में किए गए शोध के अनुसार, सुगंध जो मच्छर को अपने शिकार को पहचानने के लिए प्रेरित करती है, कार्बन डाइऑक्साइड और यौगिकों 2-केटोग्लुटेरिक और लैक्टिक एसिड के मिश्रण से पैदा होती है.
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यह रासायनिक मिश्रण मादा एडीज एजिप्टी मच्छरों, जीका के वाहक, चिकनगुनिया, डेंगू, और विशेष रूप से पीले बुखार के वायरस को आकर्षित करता है. यह मच्छर पहली बार अफ्रीका में खोजा गया था, लेकिन तब से यह संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों में फैल गया है.
जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में टीम की नई शोध खोज और इसे कैसे बनाया गया, इसका विस्तार से वर्णन किया गया है. "हालांकि अन्य ने ऐसे पदार्थों की खोज की है जो मच्छरों को आकर्षित करते हैं, उनमें से कई का ध्यान देने योग्य, तत्काल प्रभाव नहीं होता है.
मच्छर अपने शिकार को कैसे पहचानता है?
मच्छर अपने शिकार को खोजने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड, दृष्टि, तापमान और आर्द्रता जैसे कई संकेतकों का उपयोग करते हैं. कार्डे द्वारा हाल के अध्ययनों से संकेत मिलता है कि काटने के स्थान की पहचान करने के लिए त्वचा की गंध महत्वपूर्ण है.
मच्छरों की मनुष्यों पर सफलतापूर्वक फीड करने की क्षमता में गंध के महत्व को देखते हुए, कार्डे ने सटीक यौगिकों की पहचान करने के लिए निर्धारित किया जो मनुष्यों की सुगंध कीड़ों को ऐसी शक्ति प्रदान करते हैं. समीकरण के एक घटक लैक्टिक एसिड को 1968 की शुरुआत में गंध कॉकटेल के रासायनिक घटकों में से एक के रूप में मान्यता दी गई थी.
तब से कई अध्ययनों में पाया गया है कि मानव-निर्मित यौगिक, जैसे कि अमोनिया और कार्बन डाइऑक्साइड, भी इन कीड़ों को आकर्षित करते हैं. कार्डे, जिन्होंने मच्छरों का अध्ययन करते हुए 26 साल बिताए हैं, ने निष्कर्ष निकाला कि ये अतिरिक्त यौगिक शक्तिशाली आकर्षण नहीं थे.
कार्डे ने कहा, "मुझे इस बात का संदेह था कि पीले बुखार के मच्छर को लुभाने वाली गंध के रसायन में कुछ अस्पष्टीकृत पहलू था. मैंने सटीक संयोजन की पहचान करने की कोशिश की.
कार्डे ने बेलो की ओर रुख किया, जो मच्छरों को आकर्षित करने वाले के रूप में उपयोग करने के लिए अपने पैरों पर पसीने से पदार्थ निकाल रहा था. उसने अपने मोजे में कांच को रखा और गंध इकट्ठा करने के लिए चलते-फिरते चार घंटे तक उन्हें पहना.
भविष्य के शोध का उद्देश्य यह पता लगाना है कि क्या एक ही पदार्थ अन्य मच्छर प्रजातियों के खिलाफ काम करता है और अलग-अलग लोगों को अलग-अलग काटने का खतरा क्यों है. कुछ इन मच्छरों के लिए दूसरों की तुलना में अधिक आकर्षक हैं, लेकिन किसी ने अभी तक यह निर्धारित नहीं किया है कि क्यों, कार्डे के अनुसार.
अंत में, हम वास्तव में खुश हैं कि हमने इन रसायनों की खोज की क्योंकि हमें हमेशा विश्वास नहीं था कि हम कर पाएंगे, कार्डे ने कहा.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Gamma-Glutamyl Transpeptidase (GGT) Test : जीजीटी टेस्ट क्या है?
गामा-ग्लूटामाइल ट्रांसपेप्टिडेज़ टेस्ट रक्त में जीजीटी एंजाइम्स की मात्रा को मापता है। एंजाइम अणु होते हैं जो आपके शरीर में केमिकल रिएक्शन के लिए आवश्यक होता हैं। जीजीटी शरीर में परिवहन अणु के रूप में काम करता है जिससे दूसरे अणुओं को शरीर में स्थानांतरित करने में मदद मिलती है। यह लिवर को दवा और अन्य टॉक्सिन् को मेटाबोलाइज़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जीजीटी लिवर में केंद्रित होता है, लेकिन यह गालब्लैडर, स्पलीन, पैनिक्रियाज और किडनी में भी मौजूद होता है। लिवर के डैमेज होने पर जीजीटी ब्लड लेवल हमेशा हाई होता है।लिवर डैमेज की संभावना होने पर लिवर एंजाइम्स को मापने के लिए यह टेस्ट अक्सर दूसरे टेस्ट के साथ किया जाता है।
जीजीटी टेस्ट क्यों किया जाता है?
आपका डॉक्टर जीजीटी टेस्ट की सलाह देता है यदि उसे संदेह है कि आपका लिवर डैमेज हो गया है या आपको लिवर से संबंधित कोई बीमारी है या परेशानी है, खासतौर पर शराब पीने से संबंधित। जीजीटी टेस्ट वर्तमान में लिवर की क्षति और बीमारी का सबसे संवेदनशील एंजाइमेटिक संकेतक है। यह क्षति अक्सर बहुत ज़्यादा शराब के सेवन या अन्य विषाक्त पदार्थ जैसे- ड्रग्स या जहर के सेवन से होती है।
यदि आपने एल्कोहल रिहैब्लिटेशन प्रोग्राम पूरा कर लिया है और आप शराब से दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं, तो आपका डॉक्टर इस टेस्ट का आदेश यह देखने के लिए दे सकता है कि आप उपचार ठीक तरह से करा रहे हैं या नहीं। जिन लोगों का एल्कोहलिक हेपेटाइटिस के लिए इलाज किया गया हो, उनके जीजीटी स्तर की निगरानी के लिए भी यह टेस्ट किया जाता है। इसके साथ ही निम्नलिखित परेशानी होने पर भी GGT टेस्ट की जा सकती है। जैसे
एहतियात/चेतावनी
जीजीटी टेस्ट से पहले मुझे क्या पता होना चाहिए?
जीजीटी टेस्ट के 24 घंटों के भीतर अल्कोहल की थोड़ी मात्रा सें भी जीजीटी अस्थायी रूप से बढ़ सकता है। स्मोकिंग से भी जीजीटी बढ़ सकता है।
जीजीटी का स्तर अधिक होना हृदय रोग या हाई ब्लडप्रेशर का संकेत हो सकता है। कुछ अध्ययन के मुताबिक, जीजीटी के स्तर में वृद्धि से लोगों के हृदय रोग से मरने का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन ऐसा क्यों होता है अभी तक पता नहीं चला है।
जीजीटी स्तर बढ़ाने वाली दवाओं में शामिल है, कार्बामाजेपिन और बार्बिट्यूरेट्स जैसे फेनोबार्बिटल। इसके अलावा अन्य दवाएं नॉनस्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लामेट्री ड्रग्स (NSAIDs), लिपिड-लोअरिंग ड्रग्स, एंटीबायोटिक्स, हिस्टामाइन रिसेप्टर ब्लॉकर्स (पेट में अतिरिक्त एसिड के उत्पादन का इलाज करने के लिए उपयोग किया जाता है), एंटिफंगल, एंटीडिप्रेसेंट्स और टेस्टोस्टेरोन जैसे हार्मोन जीजीटी का स्तर बढ़ा सकते हैं। क्लोफिब्रेट और ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव्स जीजीटी के स्तर को कम कर सकते हैं।
जीजटी का स्तर महिलाओं में उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता है, लेकिन पुरुषों में नहीं। मगर यह पुरुषों में कुछ हद तक अधिक ही होता है
इंजेक्शन लगाने वाली जगह पर थोड़ा रक्तस्राव हो सकता है, दुर्लभ मामलों में ही इससे संक्रमण होता है।
प्रक्रिया
जीजीटी टेस्ट के लिए कैसे तैयारी करें ?
डॉक्टर आपको टेस्ट के 8 घंटे पहले से कुछ नहीं खाने का निर्देश देगा और कुछ दवाइयां भी बंद कर सकता है। यदि आप टेस्ट के 24 घंटे के अंदर एल्कोहॉल का थोड़ा भी सेवन करते हैं, तो इससे टेस्ट रिजल्ट प्रभावित हो सकता है। इसलिए GGT टेस्ट के 8 घंटे पहले से खाद्य पदार्थों का सेवन न करें और इस टेस्ट से पहले एल्कोहॉल का सेवन ही बर्जित है। अगर आपने एल्कोहॉल का सेवन किया है और टेस्ट के लिए जा रहें हैं, तो इसकी जानकारी अपने हेल्थ एक्सपर्ट को दें।
जीजीटी टेस्ट के दौरान क्या होता है ?
नियमित ब्लड टेस्ट से आपका जीजीटी लेवल मापा जा सकता है। आमतौर पर आपकी बांह की नस से ब्लड निकाला जाता है। तकनीशियन आपकी बांह पर एलास्टिक बैंड बांधता है। फिर सिरिंज की मदद से ब्लड निकाला जाता है। जब सुई चुभाई जाती है तो आपको बस चींटी के काटने जितना दर्द होता है और ब्लड निकालने वाली जगह पर थोड़ा निशान बन जाता है।
जीजीटी टेस्ट के बाद क्या होता है ?
इस टेस्ट के बाद किसी तरह की खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है। यदि डॉक्टर किसी तरह के निर्देश नहीं देता है तो आप अपनी सामान्य दिनचर्या शुरू कर सकते हैं।
यदि आपके मन में जीजीटी टेस्ट से जुड़ा कोई सवाल हैै, तो कृपया अधिक जानकारी और निर्देशों को बेहतर तरीके से समझने के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
परिणामों को समझें
मेरे परिणामों का क्या मतलब है?
जीजीटी का सामान्य स्तर 9–48 यूनिट प्रति लीटर (U/L) होता है। सामान्य वैल्यू भी उम्र और लिंग के आधार पर अलग हो सकती है।
जीजीटी का ऊंचा स्तर इस बात का संकेत है कि कोई स्वास्थ्य स्थिति या बीमारी लिवर को नुकसान पहुंचा रही है, लेकिन विशेष रूप से यह नहीं बताता कि क्या। आमतौर पर स्तर जितना अदिक होगा लिवर को उतनी अधिक क्षति होती है। हेपेटाइटिस और सिरोसिस जैसी लिवर की बीमारी के कारण स्तर ऊंचा हो सकता है, मगर यह दूसरी वजहों से भी हो सकता है जैसे- हार्ट फेलियर, डायबिटीज या पैनक्रियाटिस। यह एल्कोहल के सेवन और लिवर को हानि पहुंचाने वाली दवाओं के कारण भी बढ़ सकता है।
कम या सामान्य जीजीटी स्तर संकेत देता है कि किसी व्यक्ति को लिवर की बीमारी नहीं है और उसने एल्कोहल का सेवन नहीं किया है।
जीजीटी का बढ़ा स्तर हड्डियों की बीमारी को बढ़ा देता है, ऐसा बढ़े हुए ALP लेवल के कारण होता है। लेकिन जीजीटी यदि कम या सामान्य है, तो ALP के बढ़ने का कारण हड्डी की बीमारी है।
जीजीटी उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील है। यदि आपके डॉक्टर को लगता है कि किसी दवा या आपके थोड़ा सा एल्कोहल के इस्तेमला से परिणाम प्रभावित हो रहा है, तो वह दोबारा टेस्ट के लिए कहेगा। बार्बिटुरटेस (Barbiturates), फेनोबार्बिटल (Phenobarbital) और कुछ बिना प्रिस्क्रिप्शन वाली दवाएं भी जीजीटी को बढ़ा देती हैं। महिलाओं में जीजीटी का स्तर उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता है, लेकिन पुरुषों में नहीं।
आप बहुत शराब पीते थे और हाल ही में पीना बंद किया है तो आपके जीजीटी लेवल को सामान्य होने में कुछ महीने लगेंगे।
सभी लैब और अस्पताल के आधार पर जीजीटी टेस्ट की सामान्य सीमा अलग-अलग हो सकती है। परीक्षण परिणाम से जुड़े किसी भी सवाल के लिए कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
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